Lok Sabha Elections 2024: कुछ राजनीतिज्ञ कुशल नहीं होते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर उनकी अकुशलता का कारण क्या हो सकता है? दरअसल, अकुशल राजनीतिज्ञ वही है, जो यह सोचने लगता है कि पूरी दुनिया मेरे पीछे चल रही है। मैं जहां भी जाऊंगा, दुनिया वहीं जाएगी। यही उसकी सबसे बड़ी गलती होती है, यानी खुद को सर्वेसर्वा मानना। वहीं, कुशल राजनीतिज्ञ वह होता है, जो भांप लेता है कि लोग किस तरफ जा रहे हैं। और उसी के हिसाब से वह अपना भी रास्ता तय करने लगता है। आज देश में चुनावी माहौल चरम पर पहुंच चुका है। इसलिए नेताओं की भीड़ आपको भी आसपास मंडराते नजर आते होंगे। बड़ी मासूमियत से आपके चरणों को स्पर्श करके आपसे अपना उद्देश्य बताते हैं-बस एक वोट। आप उनकी मासूमियत पर फिदा होकर उन्हें अपना प्रतिनिधि चुन लेते हैं और संसद भेज देते हैं।
आज की राजनीति में तेजी से बदल रहा नेताओं का रवैया
अब सिक्के का दूसरा पहलू देखिए कि अगर किस्मत से उस नेता की पार्टी सत्तारूढ़ हो गई, तो फिर दोबारा उनके दर्शन आपके लिए ईश्वर के दर्शन जैसा हो जाएगा। यदि आप उनसे उनके विशेष ‘दरबार’ में मिलने भी जाते हैं, तो वहां उनकी मासूमियत करवट बदल चुकी होती है। अब उनकी इच्छा होती है कि आप उनके चरणों में झुककर उन्हें नमन करें, उनके सामने अपना दुखड़ा रोएं या फिर याचना जताएं। असल में आज की राजनीति में होता यही है, लेकिन स्वीकारना या न मानना, आप पर निर्भर करता है।
संविधान सभी को देता है अपनी बात कहने का अधिकार
चुनावी दौर में जो भी दल चुनावी मैदान में हैं, सभी को अपनी बात कहने का अधिकार भारत का संविधान देता है। इन्हीं बातों को अपनी नजर में रखते हुए सभी दल चुनाव जीतने के बाद उनके द्वारा देशहित में क्या कुछ किया जाएगा, इसका लिखित पत्र देश की जनता को समर्पित करते हैं, जिसे आजादी के बाद से आज तक चुनावी घोषणापत्र कहा जाता रहा है। सभी दलों की भांति अब कांग्रेस भी अपने चुनावी घोषणापत्र जारी करते हुए कहा है कि यदि उसकी सरकार बनी, तो नौकरी, सामाजिक न्याय, युवा-महिला और किसान-मजदूरों के बीच की दूरी को पाटने की दिशा में काम किया जाएगा।
कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि वह सालाना तीस लाख नौकरियां, प्रतिवर्ष अप्रेंटिश अधिकार अधिनियम के तहत एक लाख रुपया, केंद्र सरकार की नौकरियों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण, हर गरीब परिवार की एक महिला सदस्य को प्रतिवर्ष एक लाख रुपये, देश में सभी के लिए पच्चीस लाख रुपये का कैशलैस स्वास्थ्य बीमा, जातिगत जनगणना करने और किसानों को एमएसपी की योजना, राजग (भाजपा) सरकार के दस वर्ष के दौरान पारित विवादित कानूनों की जांच, नोटबंदी, चुनावी बॉण्ड, पेगासस, राफेल जैसे मामलों में भ्रष्टाचार की जांच, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा, मणिपुर सरकार को हटाना, 2025 से ही महिला आरक्षण को अमल में लाना, जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना और दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों में कटौती की जाएगी।
वहीं, राजग (भाजपा) ने अपने घोषणापत्र का नाम बदलकर ‘संकल्प पत्र’ कर दिया है। इसमें प्रधानमंत्री ने कहा है कि हम घोषणापत्र नहीं, संकल्प पत्र लाते हैं और उसे पूरा भी करते हैं, नीयत साफ हो, तो नतीजे सही आते हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और पुष्कर की चुनावी सभाओं में उन्होंने कहा कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की छाप है कांग्रेस के पास देशहित की नीतियां नहीं हैं। उन्होंने कटाक्ष किया कि आज विपक्ष जीत का दावा न कर सिर्फ भाजपा को न्यूनतम सीटों पर रोकने की बात कर रहा है। इसी के साथ उन्होंने देश को याद दिलाया कि अपने तीसरे कार्यकाल के लिए सौ दिन में और फैसले लेने जा रहा हूं जिसके लिए पूरी तैयारी कर चुका हूं।
उन्होंने जनता पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हुए कहा कि जो डंका बज रहा है, उसकी वजह मैं नहीं, आपका वोट है। उनका कहना था कि भाजपा ने देश की छवि को मजबूत बनाया है। अपनी बातों की पुष्टि के लिए श्रोताओं से पूछा कि इंग्लैंड और अमेरिका में डंका बज रहा है कि नहीं…? अब ‘मोदी की गारंटी’ की बात नहीं करते, अब ‘पंद्रह लाख आपके खाते में आएंगे’ ‘दो करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे’, ‘देश में सौ शहर को जापानी शहर क्योटो बनाएंगे’ नहीं कहते; हां अपना ‘विदेशों में डंका बजता है कि नहीं’ यह जरूर पूछ लेते हैं।
यह ठीक है कि चुनाव में अपनी अपनी बात कहना और एक-दूसरे पर आरोप लगाना सामान्य बात हो गई है। जनता को जो जितना भ्रमित कर ले, उसी की जीत होती है, लेकिन भारत अब वह भारत नहीं है जहां आजादी के बाद के पहले चुनाव में 80% मतदाता ऐसे थे, जिन्हें न लिखना आता था और न वे पढ़ सकते थे, लेकिन इसके बावजूद तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन की देखरेख में चुनाव कम खर्च में संपन्न हुआ था। लेकिन, अब तो देश का मतदाता पढ़ा-लिखा है। यह सही है कि पूरा देश अभी शत प्रतिशत शिक्षित नहीं हो पाया है, लेकिन इतना तो जनता समझ ही चुकी है कि देश का भाग्य किसके हाथों में सुरक्षित है। इसलिए वह झूठे वादों को जुमला समझकर उसे नजरंदाज कर दिया करती है। अब तो जनता प्रधानमंत्री द्वारा सीना ठोक कर इस कथन को कि यह ‘गारंटी’ है, उसे शुद्ध जुमला मानकर हंसी उड़ाती है। अब आपको निर्णय लेना है कि घोषणापत्र आपके उम्मीदों पर खरा उतरेगा या संकल्प-पत्र आपके जीवन को सुखमय बनाने वाला है और भारत का भाग्य निर्माता बनने वाला है।
मतदान करते समय मतदाता को किस बात का रहता है डर
कुछ भी हो, हमेशा ऐसा होता है कि हम मजाक उन्हीं का उड़ते हैं, जिनसे हमारी ईर्ष्या होती है। यूं कहें कि जिससे हमें अघोषित भय होता है। वैसे आप पाएंगे कि सरदारों का मजाक पूरे मुल्क में उड़ाया जाता है। उसके कुछ कारण हैं-सरदारों से ईर्ष्या और भय के। ईर्ष्या के कारण भी साफ हैं, क्योंकि सरदार शारीरिक रूप से अपेक्षाकृत कहीं अधिक अधिक मजबूत होते हैं। गर्दन दबा दें, तो आपकी मौत भी हो सकती है। पूरे भारत में यदि सरदार आपके सामने खड़ा हो, तो आपको बेचैनी होती है कि यह आदमी ज्यादा ताकतवर है, अब इससे भिड़ूं कैसे। इसमें झगड़ा-झंझट करने का भाव नहीं है, तो हम मजाक उड़ाते हैं, हम मखौल करते हैं। वह मखौल झूठ है, मात्र ईर्ष्या व भय के कारण है। यह बात तो सौ प्रतिशत सच है कि ऐसा ही होता है और आज भी ऐसा हो रहा है। लेकिन, कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिसे जानकर भी जनता चुप रहती है, लेकिन क्या ऐसा चुनाव में भी हो सकता है! चुनाव तो गुप्त होता है। मतदाता के मत डालते समय तो सरदार उसके सामने नहीं होता है, फिर उस सरदार का डर कैसा!
हमारा आपका तो कर्तव्य है सोच-समझकर उसे मतदान करना, जो चुनाव के बाद भी आपके मान-सम्मान का ख्याल रखे और समाज और देश के विकास के लिए अपना शत-प्रतिशत योगदान दे। जब तक आप सोच-समझकर मतदान नहीं करेंगे और बहकावे में नहीं आकर अपनी परख को मान्यता देते हुए मतदान करेंगे, तो निश्चित रूप से देश का विकास होगा। और, यदि देश का विकास होता है, तो आपका भी निश्चित ही विकास होगा। आपको रोजगार मिलेगा, जब बाजार में धन आएगा, तो आपका व्यवसाय भी बढ़ेगा और जब ऐसा होगा, तभी विकसित भारत कहलाएगा। व्यक्ति विशेष का नहीं, भारत का डंका बजेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)