पाकिस्तान में रूस के राजदूत एलेक्सी वाई डेडोव ने कहा है कि वर्ष 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ की दखलअंदाजी एक महाभूल थी लेकिन उन्होंने यह भी दावा किया कि यह सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के वैध शासन के प्रति रूस के समर्थन के समान नहीं है। पेशावर में पेशावर विश्वविद्यालय के एरिया स्टडी सेंटर में ‘अफगानिस्तान और सीरिया पर रूस का रुख’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डेडोव ने कहा कि दमिश्क के प्रति रूसी सेना के सहयोग का लक्ष्य हिंसक जिहादियों को निशाना बनाना है, इन जिहादियों में इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) और अलकायदा से संबंद्ध जाभा अल नूसरा भी हैं।

अफगानिस्तान में सोवियत दखलअंदाजी को महाभूल करार देते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में हस्तक्षेप और बशर अल असद के वैध शासन के प्रति रूसी समर्थन में कोई साम्यता नहीं है। वर्ष 1979 में सोवियत संघ ने मुजाहिदीनों के खिलाफ लड़ाई में अफगानिस्तान की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की मार्क्सवादी सरकार का साथ देने के लिए अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया था, इन मुजाहिदीनों को अमेरिकी सीआईए और पाकिस्तान का संयुक्त सहयोग प्राप्त था।

डेडोव ने कहा कि रूस आईएसआईएस को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है क्योंकि उसके करीब तीन हजार नागरिक उससे जुड़ चुके हैं और डजेस्टन एवं अन्य रूसी स्थानों पर समस्या पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनका देश अफगानिस्तान में सुहल को बढावा देने के लिए अफगान तालिबान के संपर्क में है। उन्होंने दर्शकों से कहा, ‘‘अफगान तालिबान के साथ सीमित सपंर्क रहा है।’’ उन्हें इस खबर पर हंसी आयी कि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने तालिबान नेता मुल्ला अख्तर मानसौर से भेंट की है।