अफगानिस्तान के इतिहास में अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ समाप्त हो गया है। अमेरिकी सैन्य विमानों के जरिये काबुल हवाई अड्डे से अमेरिकी सदस्यों और राजनयिकों के अंतिम समूह को वापस लाया जा चुका है। आम अमेरिकियों ने अफगानिस्तान में अराजकता की वैसी ही स्थिति की वापसी होते हुए करीब से देखा, जैसा कि उन्होंने लगभग 20 साल पहले 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद युद्ध की शुरुआत में देखा था।

इस युद्ध में अफगानों, अमेरिकियों और उनके उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) सहयोगियों के मरने वालों की संख्या हजारों में है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के कैनेडी स्कूल के लिंडा बिलम्स और ब्राउन यूनिवर्सिटी कॉस्ट ऑफ वॉर प्रोजेक्ट ने आंकड़े जारी कर बताए हैं कि इस युद्ध में क्या खोया और क्या हासिल किया। अमेरिका ने 2003 और 2011 के बीच एक साथ अफगानिस्तान और इराक में युद्ध लड़े, और कई अमेरिकी सैनिकों ने दोनों युद्धों में हिस्सा लिया, कुछ आंकड़े नौ सितंबर के बाद दोनों युद्धों से संबंधित है।

अफगानिस्तान में अमेरिकी सेवा के 2,461 सदस्य मारे गए। इसके अलावा अप्रैल तक 3,846 अमेरिकी ठेकेदार, 66 हजार अफगान राष्ट्रीय सेना और पुलिस तथा अन्य नाटो सदस्य देशों सहित अन्य संबद्ध सेवा के 1,144 सदस्यों की मौत हुई। अप्रैल तक 47,245 अफगान नागरिक की हत्या हुई। अप्रैल तक 51,191 तालिबान और अन्य विपक्षी लड़ाके मारे गए। इस दौरान 444 सहायता कर्मी भी अपनी जान गंवाए। कुल 72 पत्रकार को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ी।

अमेरिका के लगभग 20 वर्षों तक वहां रहने के बाद अफगानिस्तान अमेरिका, अफगान और अन्य सहयोगी बलों द्वारा तालिबान सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद से शिशु मृत्यु दर में करीब 50 फीसदी की गिरावट आई है।

37 फीसदी अफगान लड़कियां आज पढ़ने में सक्षम हैं। 2005 में 22 फीसदी बिजली तक अफगानों की पहुंच थी। वर्ष 2019 में यह प्रतिशत 98 तक हो गया था, लेकिन अमेरिका की वापसी से कुछ दिन पहले तालिबान ने फिर से नियंत्रण कर लिया और अब यह सिर्फ 15 प्रतिशत है। अमेरिका ने युद्ध में भुगतान के लिए अधिकांश धन उधार लिया था, इसलिए भावी अमेरिकी पीढ़ियां इसकी लागत का खरबों डॉलर भुगतान करने को विवश होंगी।