AQI 500+ Dangerous Effects on the Human Body: दिल्ली, नोएडा समेत उत्तर भारत के कई बड़े शहरों में हवा की हालत बेहद खराब हो चुकी है। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली-NCR में स्मॉग की मोटी चादर छाई हुई है। हालात ऐसे हैं कि सुबह के समय कई इलाकों में विजिबिलिटी लगभग जीरो तक पहुंच गई है। इसका असर सिर्फ ट्रैफिक पर ही नहीं, बल्कि लोगों की सेहत पर भी साफ नजर आ रहा है। सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन और खांसी जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में आइए मैक्स हॉस्पिटल, गुरुग्राम में एसोसिएट डायरेक्टर और यूनिट हेड, पल्मोनोलॉजी, रेस्पिरेटरी और स्लीप मेडिसिन डॉ. शिवांशु राज गोयल से समझते हैं कि इतनी प्रदूषित हवा में सांस लेने से शरीर पर क्या-क्या प्रभाव पड़ सकते हैं।

AQI क्या होता है और 500 के पार जाने का मतलब क्या है

एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI हवा की गुणवत्ता को मापने का पैमाना है। जब AQI 50 से 100 के बीच होता है, तब हवा सामान्य मानी जाती है। 200 के ऊपर पहुंचते ही यह खराब और 300 के पार जाते ही बेहद खराब स्थिति में पहुंच जाती है। लेकिन जब AQI 500 के ऊपर चला जाए, तो इसे खतरनाक श्रेणी में रखा जाता है। इस स्तर पर कुछ मिनट तक सांस लेना भी शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है, खासकर बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और पहले से बीमार लोगों के लिए।

हाई AQI के साइड इफेक्ट

फेफड़ों पर सीधा हमला

AQI 500 से ऊपर होने पर हवा में PM2.5 और PM10 जैसे बेहद महीन जहरीले कण भर जाते हैं। ये कण सांस के जरिए सीधे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और सूजन पैदा करते हैं। इससे सांस फूलना, खांसी, सीने में जकड़न और दम घुटने जैसा एहसास होने लगता है। अस्थमा और COPD के मरीजों के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक हो सकती है। लंबे समय तक ऐसी हवा में रहने से फेफड़ों की काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है।

दिल की बीमारियों का बढ़ता खतरा

प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता। जहरीले कण खून में मिलकर दिल की नसों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, दिल की धड़कन अनियमित हो सकती है और हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। रिसर्च बताती हैं कि ज्यादा प्रदूषण वाले दिनों में हार्ट पेशेंट्स को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत ज्यादा आती है।

आंख, नाक और गले में जलन

इतने खराब AQI में आंखों में जलन, पानी आना, नाक बहना और गले में खराश होना आम समस्या बन जाती है। कई लोगों को सिरदर्द और चक्कर आने लगते हैं। इससे रोजमर्रा के काम करना भी मुश्किल हो जाता है और शरीर में लगातार थकान महसूस होती है।

दिमाग और मानसिक सेहत पर असर

वायु प्रदूषण का असर दिमाग पर भी पड़ता है। AQI 500 के पार होने पर चिड़चिड़ापन, बेचैनी, नींद न आना और ध्यान लगाने में परेशानी बढ़ जाती है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से याददाश्त कमजोर हो सकती है और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।

बच्चों और बुजुर्गों के लिए सबसे ज्यादा खतरा

बच्चों के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते, इसलिए प्रदूषण का असर उन पर ज्यादा होता है। वहीं बुजुर्गों की इम्यूनिटी कमजोर होती है, जिससे संक्रमण और सांस से जुड़ी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

प्रदूषण से जुड़ी लंबे समय की स्वास्थ्य समस्याएं

इम्युनिटी कमजोर होना

हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व रेस्पिरेटरी सिस्टम को धीरे-धीरे कमजोर कर देते हैं। इसका असर शरीर की इम्युनिटी पर पड़ता है, जिससे व्यक्ति निमोनिया सहित वायरल और बैक्टीरियल संक्रमणों की चपेट में जल्दी आ सकता है।

सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियां

लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से रेस्पिरेटरी से जुड़ी क्रॉनिक बीमारियां हो सकती हैं। कई मामलों में यह समस्या उन लोगों में भी देखी गई है, जिन्हें पहले किसी तरह की सांस संबंधी परेशानी नहीं थी।

शरीर की सेहत पर गंभीर असर

खराब हवा में मौजूद सूक्ष्म कण केवल फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि खून के जरिए पूरे शरीर में फैलकर सूजन पैदा कर सकते हैं। लगातार प्रदूषण झेलने से हार्ट अटैक और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है।

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