मौजूदा समय देश में राज्यसभा चुनाव को लेकर जबरदस्त माहौल बना हुआ है। अब से दो दिन बाद यानि कि 10 जून को 57 सीटों पर राज्यसभा चुनाव होने हैं। राजनीतिक पार्टी और मीडिया से लेकर जनता तक सब इस बात के कयास लगाने में जुटे हैं कि कौन उच्च सदन पहुंचेगा और किसका पत्ता कटेगा। हालांकि राज्यसभा चुनाव में पहले से ही तय होता है कि किसको सांसद बनना है। लेकिन कुछ सीटों को लेकर स्थिति असमंजस की होती है और तब शुरू होती है विधायकों की खींचतान ऐसे में सियासी दलों को सबसे ज्यादा क्रॉस वोटिंग का डर सताता है।

2 जून से ही तीन राज्यों के विधायक रिसॉर्ट, 5 स्टार होटलों में बंद हैं। सियासी दलों को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनके विधायक किसी प्रलोभन में पड़कर क्रॉस वोटिंग ना कर जाएं। ऐसी स्थिति में दूसरे सियासी दल अपने उम्मीदवार को जितवाने के लिए अन्य दलों के विधायकों को तमाम तरह के प्रलोभन देते रहते हैं। इन्हीं प्रलोभनों के डर से पार्टियों ने अपने विधायकों को एक जगह ही रखा है ताकि वो किसी अन्य सियासी दलों के नेताओं से मुलाकात ना कर सकें।

क्यों महत्वपूर्ण है राज्यसभा में बहुमत
देश की संसद में दो सदन हैं लोकसभा जिसे निचला सदन कहते हैं और राज्यसभा जिसे उच्च सदन कहा जाता है। देश में कोई भी बिल, कानून, विधेयक पारित करवाने के लिए इसे दोनों सदनों में से भेजा जाता है पहले लोकसभा में बिल रखा जाएगा जहां से पारित हो जाने के बाद उसे राज्यसभा भेजा जाएगा वहां से भी पारित हो जाने के बाद इसे राष्ट्रपति से अनुमोदन के लिए भेजा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद ही कोई नया कानून, नियम या बिल बनता है। एनडीए सरकार अब तक कई महत्वपूर्ण विधेयक प्राप्त करने में कामयाब रही है इनमें से कृषि कानून, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, या नागरिकता संशोधन अधिनियम – सहयोगी दलों और अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस जैसे अन्य दलों के समर्थन से पारित किया गया।

राज्यसभा चुनाव क्यों महत्वपूर्ण हैं?
सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों के लिए प्रत्येक राज्यसभा सीट को किसी भी विधेयक के रूप में गिना जाता है लोकसभा अध्यक्ष द्वारा धन विधेयकों के रूप में नामित को छोड़कर कानून बनने के लिए दूसरे सदन की सहमति की आवश्यकता होती है। संसद में उच्च सदन या राज्यसभा की 245 सीटें हैं। इनमें से 123 सीटें पाने वाले दल को बहुमत मिल जाती है लेकिन पिछले 35 सालों से किसी भी सत्ताधारी राजनीतिक दल ने कभी भी राज्यसभा की 100 सीटों के आंकड़े को नहीं छू पाई हैं। अप्रैल के महीने में बीजेपी नीत एनडीए ने 100 के आंकड़े को छू लिया था। लेकिन 5 राज्यसभा सांसदों के रिटायरमेंट के साथ ही ये संख्या घटकर 95 ही रह गई। धन विधेयकों के मामले में राज्य सभा की सीमित भूमिका होती है। यह धन विधेयक में संशोधन नहीं कर सकता है, लेकिन एक निर्धारित समय के भीतर संशोधन की सिफारिश कर सकता है, और लोकसभा इनमें से सभी या इनमें से किसी को भी स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।

राज्यसभा चुनाव कितनी बार होते हैं?
राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता है। निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, इसके एक तिहाई सदस्य संविधान के अनुच्छेद 83(1) के तहत हर दूसरे वर्ष के बाद सेवानिवृत्त होते हैं, और इन रिक्तियों को भरने के लिए “द्विवार्षिक चुनाव” होते हैं। एक सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष का होता है। 245 सदस्यों में से 12 राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं और 233 दिल्ली और पुडुचेरी के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि हैं।

इन वजहों से राज्यसभा में भी होता है उपचुनाव
किसी सांसद का इस्तीफा या किसी सांसद की मृत्यु या उसे अयोग्यता के कारण हटाए जाने के बाद होने वाली रिक्तियों को उपचुनावों के माध्यम से भरा जाता है और जो चुने जाते हैं वे अपने पूर्ववर्तियों के शेष कार्यकाल को पूरा करते हैं। अनुच्छेद 80(3) के तहत, 12 मनोनीत सदस्यों को साहित्य, कला, विज्ञान आदि जैसे मामलों में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए। एक मनोनीत सदस्य सीट लेने के छह महीने के भीतर पार्टी में शामिल हो सकता है।

राज्यसभा चुनाव में कौन होता है वोटर और कैसे करता है वोटिंग?
राज्यसभा सांसदों को विधायकों द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुना जाता है। अनुच्छेद 80(4) में प्रावधान है कि सदस्य राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है। इसमें एक वोटर एक बार ही वोट कर सकता है। विशेष परिस्थितियों में ये वोट ट्रांसफर किया जा सकता है जो कि पहले से तय होता है। संविधान की चौथी अनुसूची राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर राज्यसभा सीटों के आवंटन का प्रावधान करती है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 31 और गोवा में 1 सीट ही है। राज्यसभा में वैकेंसी की तुलना में ज्यादा उम्मीदवार होते हैं नहीं तो उम्मीदवारों को निर्विरोध ही चुन लिया जाता है।

जानिए कैसे होती है राज्यसभा चुनाव में वोटों की गिनती?
एक उम्मीदवार को जितने वोटों की आवश्यकता होती है वह खाली सीटों की संख्या और सदन की ताकत पर निर्भर करता है। यदि केवल एक सीट खाली है है, तो चुनाव आयोग के चुनाव आचरण नियम, 1961 के तहत आवश्यक कोटा की गणना डाले गए वोटों की संख्या को 2 से विभाजित करके जो आएगा उसमें 1 जोड़कर की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि एक सीटी की वोटिंग के लिए 100 वोट डाले जाते हैं, तो सदन में राज्यसभा उम्मीदवार की आवश्यकता होगी।

100/2 + 1 = 51 वोट

यदि एक से सीटों पर चुनाव होने हैं तो समीकरण प्रत्येक प्रथम-वरीयता वोट के लिए 100 के नियत मान पर आधारित करती है। सभी उम्मीदवारों को क्रेडिट किए गए वोटों का मूल्य जोड़ कर कुल को वैकेंट सीटों की संख्या और एक से जोड़कर विभाजिद कर दिया जाता है और इस भागफल में फिर एक जोड़ दिया जाता है।

उदाहरण के लिए, यदि एक विधानसभा के 100 सदस्य राज्यसभा की 3 रिक्तियों के लिए मतदान करते हैं, तो किसी भी उम्मीदवार द्वारा आवश्यक कोटा होगा

(100 × 100)/(3 + 1) + 1 = 2501

यदि किसी सीट के लिए कैंडिडेट स्पेसिफिक नंबर पाने में फेल हो जाता है तो दूसरी वरीयता के वोटों को ध्यान में रखा जाएगा लेकिन इन वोटों की वैल्यू भी कम होती है।

जानिए कितनी सीटों पर हैं राज्यसभा सांसदों के चुनाव
इस साल देश के 15 राज्यों की 57 सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव होने थे लेकिन 41 उम्मीदवारों को पिछले सप्ताह निर्विरोध ही चुन लिया गया था जिसमें कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, कांग्रेस के पूर्व नेता कपिल सिब्बल, आरएलडी के जयंत चौधरी और आरजेडी की मीसा भारती शामिल हैं। वहीं चार राज्यों हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र की कुल 16 सीटों पर चुनाव करवाने पड़ रहे हैं।

हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में चुनाव
हरियाणा में दो सीटों पर चुनाव हैं। तीसरे उम्मीदवार के तौर पर कार्तिकेय शर्मा हैं की एंट्री हो रही है वहीं राजस्थान में चार सीटों पर चुनाव होने हैं पांचवें उम्मीदवार के तौर पर जी ग्रुप के संस्थापक और एस्सेल ग्रुप के प्रमुख सुभाष चंद्रा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर आ रहे हैं उन्हें बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। वहीं अगर कर्नाटक की बात करें तो सत्तारूढ़ बीजेपी, कांग्रेस और जद (एस) ने चौथी सीट के लिए अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, जिससे चुनाव के लिए मजबूर होना पड़ा है। महाराष्ट्र में भी छह सीटों के लिए सात उम्मीदवार हैं।

परिणाम एनडीए और विपक्ष की ताकत को किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं?
रिटायर हो रहे 57 राज्यसभा सांसदों में से 24 बीजेपी के हैं इनमें से पार्टी ने पहले ही 14 सीटें जीत ली हैं। अब बीजेपी के पास वोटिंग के दम पर 16 में से 6 सीटें जीतने की ताकत है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में अपने अतिरिक्त उम्मीदवारों की गिनती नहीं करते हुए चुनाव के बाद बीजेपी की ताकत 91 सांसदों की हो जाएगी। इसके अलावा 7 नामांकित सीटें खाली हो जाएंगी जिन पर बीजेपी भरोसा कर सकती है।

आप और वाईएसआर की बढ़ेगी ताकत
कांग्रेस के उच्च सदन में मौजूदा समय 29 सदस्य हैं। इसके 7 सदस्य सेवानिवृत्त हो रहे हैं और इसके 4 उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए हैं। पार्टी को 4 और जीत सुनिश्चित है जबकि 2 अन्य के भाग्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है ऐसे में कांग्रेस की ताकत 30 से 32 सांसदों तक सीमित रह जाएगी।
राज्यसभा चुनाव में सबसे ज्यादा लाभ आम आदमी पार्टी को होने जा रहा है। आप ने पंजाब में क्लीन स्वीप के बाद राज्यसभा में बड़ी छलांग लगाई है। आप की संख्या अब 3 सांसदों से बढ़कर 10 तक पहुंच जाएगी जबकि वाईएसआरसीपी की ताकत भी 6 सांसदों से बढ़कर 9 हो जाएगी।

विधेयकों को पारित करने के अलावा, राज्यसभा के नंबर क्यों मायने रखते हैं?
राज्यसभा को कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त हैं। यदि वो सदन में यह उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से यह कहते हुए एक प्रस्ताव पारित करता है कि यह “राष्ट्रीय हित में आवश्यक” है तो संसद को उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। ये अधिकतम एक वर्ष तक के लिए रहता है वहीं इसकी अवधि को एक समान प्रस्ताव पारित करके एक बार फिर एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। संघ और राज्यों के लिए एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के निर्माण की सिफारिश करने के लिए एक जैसा रास्ता अपनाया जा सकता है। संसद ऐसी सेवाओं को बनाने के लिए सशक्त हो जाती है।