Shreya Baldwa, Sonakshi Awasthi
लखनऊ की रहने वालीं एक 33 साल की मुस्लिम महिला ने तीन तलाक देने की वजह से अपने पति के खिलाफ कोर्ट केस किया था। यह पहला मौका था, जब उसने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ कोई फैसला लिया था। ब्यूटीशियन का काम करने वाली इस महिला का कहना है कि वह एक बार फिर परिवार की इच्छा के खिलाफ कदम उठाने वाली है। वह 6 मई को भारतीय जनता पार्टी को वोट देगी। इस महिला ने कहा, ‘मोदी सरकार ने तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दिखाई है। कोई दूसरी पार्टी तो इस बारे में बात भी नहीं कर रही।’ बता दें कि इस महिला ने पिछली बार कांग्रेस के लिए प्रचार किया था।
2014 में इस महिला को उसके पति ने बिना कोई कारण बताए शादी के महज 22 दिन बाद तलाक दे दिया था। महिला के मुताबिक, उसने पिछले चुनाव में कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के लिए प्रचार किया था। उसने सवाल उठाया, ‘उन्होंने हमारे लिए क्या किया? बीजेपी ने कम से कम हमारी खराब स्थिति को लोगों के सामने रखा।’ महिला ने यह भी कहा, ”मोदी सरकार ने पेंशन स्कीम से लेकर एलपीजी कनेक्शन तक, हमारे लिए बहुत कुछ किया है।” क्या उसके परिवार या किसी जानने वाले को इन योजना का फायदा मिला है? इस सवाल के जवाब में महिला ने कहा, ‘नहीं, लेकिन इससे क्या, मैंने पढ़ा है कि सरकार ने क्या किया है। मैं जरूर उनको ही वोट दूंगी।’
इस महिला की तरह ही 26 साल की निशात फातिमा ने भी ट्रिपल तलाक बिल की वजह से इस बार बीजेपी को वोट देने का मन बनाया है। दो बच्चों की मां निशात को शादी के 5 बरस बाद उनके पति से फोन पर तीन तलाक दे दिया था। निशात ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से टि्वटर पर मदद मांगी थी। वह बीजेपी की ओर से तीन तलाक पर कराए गए सेमिनार में भी मौजूद रही हैं। इस कार्यक्रम में गवर्नर राम नाइक भी मौजूद थे। बता दें कि यूपी में कम से कम 20 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है। मजबूत हिंदुत्ववादी छवि के साथ बीजेपी इस बार ट्रिपल तलाक बिल के जरिए मुस्लिम वोट में भी सेंध लगाने की तैयारी में है।
हालांकि, इन दो महिलाओं से उलट मुस्लिम समुदाय की कई अन्य महिलाएं ऐसी भी हैं, जिनहें ट्रिपल तलाक या तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा तक की भी जानकारी नहीं है। indianexpress.com ने ऐसी महिलाओं से लखनऊ में बातचीत की। ऐसी महिलाएं इससे जुड़े सवालों पर हल्के से हंस देती हैं, नजरें फेर लेती हैं या फिर बहस का टॉपिक बदल देती हैं। जो बात करने के लिए तैयार भी हैं, उनके मुताबिक, उन्हें पता ही नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 में इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। इनमें से कुछ ने बीजेपी पर धार्मिक मामलों में दखलंदाजी का आरोप भी लगाया। 23 साल की फरजाना अहमद का कहना है कि मोदी सरकार अपने फायदे के लिए इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है।
उन्होंने पूछा, ‘इसे अपराध के दायरे में लाने का क्या फायदा, जब पति मेरे साथ रहना ही नहीं चाहता। क्या कानून के डर से उसे मेरे साथ रहने के लिए मजबूर करने से मकसद हल होगा?’ फरजाना शिक्षा और स्कॉलरशिप को चुनावी मुद्दा मानते हुए आरोप लगाती हैं कि वर्तमान सरकार सिर्फ हिंदू और मुसलमानों की लड़ाई पर बातें करती है। पूर्व की अखिलेश यादव सरकार द्वारा लैपटॉप दिए जाने का जिक्र करते हुए वह कहती हैं कि वह सपा को वोट देंगी। डालीगंज की रहने वालीं 60 साल की सूफिया रहमान कहती हैं, ‘हम कौन होते हैं मियां-बीवी के बीच में दखल देके, किसी को सजा देने वाले।’ लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हुसैन का मानना है कि बीजेपी इस संवेदनशील मुद्दे का गलत इस्तेमाल कर रही है और इस पर बिल लाने से पहले समुदाय की राय नहीं ली गई। ताहिरा ही नहीं, रिटायर्ड आईआरएस अफसर परवीन तल्हा और ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड की डायरेक्टर शाइस्ता अंबर भी मानती हैं कि बीजेपी को मुसलमानों की कोई परवाह नहीं है।