2014 के लोकसभा चुनाव, 2019 के चुनाव में कांग्रेस को आजादी के बाद की सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। ऐसी हार जिसकी उम्मीद देश की सबसे पुरानी पार्टी ने कभी नहीं की थी। उस हार का एक बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले करना था। जब-जब पीएम मोदी को सीधे निशाने पर लिया गया, मुकाबला बीजेपी से नहीं मोदी से होने लगा। उस स्थिति में कांग्रेस को तो नुकसान हुआ ही, राहुल गांधी को भी सियासी झटके झेलने पड़े। अब उस सबक से कितना सीखा गया, इस पर बहस जारी है, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने एक और बयान से सियासी तूफान लाने का काम जरूर कर दिया है।

पनौती वाला ट्रेंड कहां से शुरू हुआ?

राहुल गांधी ने पीएम मोदी को ‘पनौती’ बता डाला है। ऐसा भी नहीं है कि इशारों में या तंज कसते हुए कहा गया हो. कांग्रेस नेता ने दो टूक कहा पीएम मतलब पनौती मोदी। अब राहुल गांधी के इस बयान का बैकड्रॉप समझना जरूरी हो जाता है। रविवार को हुए विश्व कप फाइनल में भारत की हार हुई, ऑस्ट्रेलिया छठी बार विजेता बन गया। उस मैच को देखने पीएम नरेंद्र मोदी भी स्टेडियम पहुंचे थे। ऐसे में सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने पनौती वर्ड ट्रेंड करवा दिया।

राहुल को क्यों लेना पड़ा पनौती का सहारा?

अब वो सोशल मीडिया वाली सामग्री थी, वहां तक ही रहती तो बेहतर। लेकिन राहुल गांधी ने उस सोशल मीडिया ट्रोलिंग को चुनावी मौसम में अपने भाषण का हिस्सा बना दिया। राजस्थान के बाडमेर में जिस समय राहुल गांधी अपनी रैली कर रहे थे, भीड़ में खड़े कुछ लोगों ने पनौती-पनौती चिल्ला दिया। ये सुन जिस मुद्दे पर राहुल बोल रहे थे, उसे छोड़कर उन्होंने उस ट्रोलिंग वाले ट्रैक को पकड़ लिया और चुनावी मौसम का अपना पहला सबसे बड़ा विवादित बयान दिया।

राहुल को कितना समर्थन?

राहुल ने कहा कि अच्छा भला वहां पर हमारे लड़के वर्ल्ड कप जीत जाते, पनौती हरवा दिया. टीवी वाले ये नहीं कहेंगे, लेकिन जनता जानती है। पीएम मतलब पनौती मोदी। अब राहुल गांधी का ये बयान हर मायने में पीएम मोदी पर सीधा हमला है, बल्कि सिर्फ हमला नहीं अपमान है। देश के प्रधानमंत्री को पनौती कह देना कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं को खुश कर सकता है, राहुल को रैली में तालियां भी मिल गईं। लेकिन सवाल ये उठता है कि सवासों करोड़ वाले इस देश में राहुल के इस अंदाज को कितने लोगों की मुहर मिलने वाली है?

मोदी पर सीधा हमला, कांग्रेस हर बार धराशायी

कांग्रेस और खुद राहुल गांधी का इस मामले में ट्रैक रिकॉर्ड खासा खराब चल रहा है। जब-जब पीएम मोदी पर सीधा हमला कर नेरेटिव सेट करने की कोशिश हुई है, कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है। अब तो इतने उदाहरण सामने आ चुके हैं कि इस बात पर बहस भी नहीं की जा सकती मोदी पर सीधा हमला करना कितना फायदेमंद है। पीएम मोदी पर सीधा हमला करने की शुरुआत साल 2014 में शुरू हुई थी। उस समय मोदी गुजरात की राजनीति में सक्रिय थे, 13 साल तक सीएम की कुर्सी संभाली थी, लेकिन दिल्ली का अनुभव नहीं था।

उनका एक ऐसा बचपन साथ जरूर था जहां कहा गया कि उन्होंने रेलवे स्टेशन पर चाय बेची। अब ये नेरेटिव शुरुआती प्रचार के दौरान बीजेपी के एजेंडे का हिस्सा भी नहीं था, लेकिन कांग्रेस के कद्दावर नेता मणिशंकर अय्यर ने कह दिया था मोदी 21वी सदी में पीएम नहीं बनने वाले हैं। अगर वो चाहें तो कांग्रेस अधिवेशन में चाय वितरण कर सकते हैं। इस बयान को जानकार कांग्रेस के पतन की शुरुआत मानते हैं। असल चाय बेचना कोई गलत काम नहीं था, लेकिन अय्यर की तरफ से ऐसा दिखाया गया कि ये कितना छोटा काम है।

बीजेपी क्यों पसंद करती है राहुल के ऐसे बयान?

बीजेपी ने उसी समय कांग्रेस के उस पॉलिटिकल ब्लंडर को ऐसा लपका कि जनता का ज्यादा से ज्यादा वोट मोदी के खाते में गया। नेरेटिव सेट हुआ कि लड़ाई तो चाय वाले बनाम शहजादे की है। नतीजा ये रहा कि बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से अपनी सरकार बनाई। अब कांग्रेस चाहती तो उस सबक से सीख सकती थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में अय्यर की कमी को खुद राहुल गांधी ने पूरा किया। नेरेटिव सेट किया ‘चौकीदार चोर है’। वे बीजेपी को चोर कह सकते थे, पार्टी पर जितने चाहते हमले करते, लेकिन देश के प्रधानमंत्री को उन्होंने चोर कहा और ये सीधा हमला कांग्रेस को सीधा नुकसान दे गया। 2014 से भी बुरी हार मिली और बीजेपी का जनादेश और ज्यादा प्रचंड हो चला।

अब राहुल वहां भी रुक जाते तो कांग्रेस एक अलग रणनीति पर काम कर सकती थी। लेकिन 19 के ही चुनाव में उन्होंने मोदी सरनेम को लेकर ऐसा बयान दे डाला कि उनकी लोकसभा की सदस्यता तक कुछ समय के लिए छीन ली गई। एक बयान में कह गए ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है’। उनके इस एक बयान की कीमत कांग्रेस को बहुत भारी पड़ गई थी, कुछ समय के लिए सदस्यता तो गई ही, इसके अलावा पीएम रेस में राहुल को पछाड़ते हुए कई दूसरे प्रबल दावेदार भी सामने आ गए।

पनौती बयान क्यों बनेगा बड़ी सिरदर्दी?

अब उन तमाम विवादों के बाद राहुल गांधी ने अपने पिटारे से एक और विवाद निकाला है। इस बार देश के प्रधानमंत्री को पनौती कहा है। वो भी इसलिए क्योंकि भारत वर्ल्ड कप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार गया। ये हाल तब है जब पहली बार देश में ऐसा माहौल बना है जहां पर हार के बावजूद भी देश के ज्यादातर लोग पूरी मजबूती के साथ टीम इंडिया के साथ खड़े हैं। उन्हें जितना दर्द हार का नहीं है, उससे ज्यादा रोहित शर्मा की आंखों में दिखे आसुंओं का है। तभी तो #WeStandbyIndia खूब ट्रेंड किया, फैन्स के दिल में आक्रोश नहीं सपोर्ट था, उस भारतीय टीम के लिए जिसने लगातार 10 मैच जीते, जिसने नजाने इस बार कितने रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले।

लेकिन समाज के एक वर्ग ने मजाकिया अंदाज में पीएम मोदी की स्टेडियम से तस्वीर शेयर कर पनौती लिख दिया। ये बात सच है कि वो मीम वायरल हुआ, शेयर भी किया गया, लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि भारतीय टीम को मिल रहा सपोर्ट फीका पड़ जाए या उस नेरेटिव को कमजोर कर जाए। लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी यहां चूक गए, उन्होंने उस ‘सस्ते’ से मीम को अपना पॉलिटिकल हथियार बना लिया। रैली में उसका इस्तेमाल भी किया बिना ये सोचे कि बीजेपी आगे क्या करने वाली है।

जिसका कांग्रेस को डर, राहुल ने वो कर दिया!

बीजेपी किसी कारण से हर बार चुनावी मौसम में मुकाबला मोदी बनाम राहुल गांधी का चाहती है। कारण स्पष्ट है, एक वर्ग ने कांग्रेस नेता की जैसी छवि बना रखी है, उससे बीजेपी को सीधा फायदा पहुंचता है और जब भी चुनने की बात आती है, पीएम मोदी की शख्सियत ज्यादा सशक्त दिखाई पड़ती है। इसी वजह से जानकार कहते हैं कि कांग्रेस को कभी भी सीधा पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना नहीं साधना चाहिए, किसी भी सूरत में मुकाबले को चेहरा नहीं होने देना चाहिए। अब कांग्रेस के दूसरे नेता ऐसा कर भी रहे हैं, स्थानीय मुद्दों के जरिए बीजेपी को घेरने की पूरी तैयारी दिख रही है, राजस्थान में गहलोत तो एमपी में कमलनाथ जमीन पर एक तगड़ा सियासी चक्रव्यूह तैयार कर रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी ने उस मेहनत पर कुछ समय के लिए पानी फेर दिया है।

बीजेपी कुछ बड़ा करेगी, फिर 2014 रिपीट?

बीजेपी ने राहुल के पनौती वाले बयान को आड़े हाथों लिया है। रविशंकर प्रसाद ने राहुल के बयान को सिर्फ शर्मनाक नहीं बताया है, बल्कि चेतावनी दे डाली है कि अगर माफी नहीं मांगी तो इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाएगा। अब प्रसाद के इस बयान ने बता दिया है कि राजस्थान चुनाव में और इसके बाद आगामी लोकसभा रण में किस मुद्दे के जरिअ नेरेटिव सेट करने की तैयारी रहने वाली है। इस नेरेटिव में विक्टिम कार्ड हावी रहेगा, एक बार फिर खुद को बेचारा दिखाने की कोशिश रहेगी। अगर दांव सफल हुआ तो कहना गलत नहीं होगा कि चुनावी मौसम में राहुल गांधी का साबित हुआ एक और पॉलिटिकल ब्लंडर!