मध्य प्रदेश में चुनाव नजदीक आने के साथ भाजपा और कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में लगी हुई हैं। दोनों दलों के बड़े नेता वर्तमान में राज्य के कोने-कोने में यात्राएं कर रहे हैं। जहां भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा इस महीने की शुरुआत में शुरू हुई और अपने आखिरी पड़ाव पर है, वहीं कांग्रेस इस समय जन आक्रोश यात्रा निकाल रही है।
दोनों पार्टियों ने अपनी आउटरीच पहल के लिए बिल्कुल अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाए हैं। सत्तारूढ़ दल बीजेपी ने अपने केंद्रीय नेतृत्व, अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों और कई दिग्गजों को साथ लेकर एक धमाकेदार अभियान पर ध्यान केंद्रित किया है। यात्रा की रणनीति के पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का हाथ है, जो 2 सितंबर को शुरू हुई थी। अंत में यह सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में 10,000 किमी से अधिक की दूरी तय करेगी और 25 सितंबर को भोपाल में एक विशाल रैली में समाप्त होगी। इस रैली को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे।
इस बीच कांग्रेस ने 18 सितंबर को चुपचाप जन आक्रोश यात्रा शुरू कर दी। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अनुपस्थित है और यह यात्रा के लिए अपने स्थानीय कैडर पर निर्भर है, जो 15 दिनों में 11,400 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए तैयार है।
भाजपा की यात्रा का उद्देश्य शिवराज सिंह चौहान सरकार की उपलब्धियों को प्रदर्शित करके और पार्टी की लाडली बहना योजना को प्रचार करके सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करना है। यह योजना हाशिए पर रहने वाले समूहों की महिलाओं को 1,250 रुपये प्रति माह देने का वादा करती है। शिवराज चौहान एक उदारवादी हिंदुत्व नेता की अपनी छवि को और अधिक कट्टर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उन्हें ‘बुलडोजर मामा’ भी कहा रहा है।
भाजपा दावा करती है कि उसकी रैलियों में एक करोड़ से अधिक लोग शामिल हुए हैं। वहीं पार्टी डीएमके नेता और तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन की सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणियों के बाद से कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के खिलाफ आक्रामक हो रही है। बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने सीएम शिवराज चौहान के नेतृत्व में यात्राएं नहीं करने का फैसला किया क्योंकि उसे सत्ता विरोधी लहर का डर है। शिवराज सिंह चौहान वर्तमान में मुख्यमंत्री के रूप में अपने पांचवें कार्यकाल में हैं।
एक बीजेपी नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “फीडबैक प्राप्त करने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने अन्य राज्यों से कई भाजपा नेताओं को लाने का फैसला किया। यहां तक कि अभियान का थीम गीत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है, न कि मुख्यमंत्री पर।”
इस बीच कांग्रेस ज़मीनी स्तर पर राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ असंतोष को भड़काकर काम पूरा करने के लिए अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं पर भरोसा कर रही है। जैसा कि उसने इस साल की शुरुआत में कर्नाटक चुनावों से पहले सफलतापूर्वक किया था। पार्टी अपने चुनावी वादों पर जोर दे रही है, जिसमें महिलाओं के लिए 1,500 रुपये मासिक सहायता, मुफ्त गैस सिलेंडर और 100 यूनिट बिजली शामिल है। यह आदिवासियों और दलितों के खिलाफ कथित अत्याचार, बेरोजगारी और कृषि संकट को लेकर भी सरकार पर निशाना साधती रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा, “भाजपा के स्टार नेता और पूरी सरकारी मशीनरी यात्रा में खाली सीटों को छिपा नहीं सकती। इन यात्राओं में जनता के बीच गुस्सा है जिसे हम प्रसारित करेंगे और हम इसमें सफल हो रहे हैं। हम उन मुद्दों पर भी बात करेंगे जो आम आदमी के लिए मायने रखते हैं और जिनका असर पड़ा है।”
भाजपा की यात्रा को इस महीने की शुरुआत में कुछ लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा जब नीमच जिले के रौली कुड़ी गांव के निवासियों ने कथित तौर पर चीता परियोजना के कार्यान्वयन और कृषि भूमि की बाड़ लगाने के वन विभाग के फैसले से नाराज होकर भाजपा के जुलूस पर पथराव किया था। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रचार में स्थानीय चेहरों और मुद्दों की कमी बीजेपी के लिए समस्या खड़ी कर सकती है। राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यात्रा एक केंद्रीकृत अभियान बन गई है। राज्य के चुनाव स्थानीयकृत होते जा रहे हैं। इसके विपरीत, कांग्रेस का अभियान शांत है और इसमें केंद्रीय नेतृत्व का हस्तक्षेप नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। (पार्टी महासचिव) प्रियंका गांधी वाड्रा कई बार आ चुकी हैं लेकिन कमलनाथ (प्रदेश कांग्रेस प्रमुख) के निमंत्रण पर।”
अन्य लोगों का मानना है कि भाजपा में पार्टी के पुराने नेताओं और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से आने वाले पूर्व कांग्रेस नेताओं के बीच ‘आंतरिक मतभेद’ एक संभावित समस्या हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक देशदीप सक्सेन ने कहा, “कोई नहीं जानता कि वह (ज्योतिरादित्य सिंधिया) कहां भाषण या रैलियां कर रहे हैं। यदि आप मध्य प्रदेश में क्षेत्रीय समाचार पत्रों को देखते हैं, तो आपको सिंधिया की तस्वीरें नहीं दिखती हैं।”
हाल के दिनों में बीजेपी ने अपने प्रचार अभियान में दलित, मुस्लिम या महिला चेहरा नहीं होने को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला है। इसमें पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को शामिल नहीं करने को लेकर भी पार्टी पर निशाना साधा गया। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक है, कुछ जगहों पर अंदरूनी मतभेद भी सामने आए हैं। राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित ने कहा, ”मुद्दा एकता और योजना की कमी का लगता है। कुछ वरिष्ठ नेताओं को यात्रा में शामिल नहीं किया गया है।”
शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी के नेता अरुण यादव के नेतृत्व में छतरपुर जिले में जन आक्रोश रैली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक समूह आपस में भिड़ गया। इसको लेकर भी चर्चा चल रही है।