2024 का लोकसभा चुनाव करीब है, सियासी समीकरण साधने का काम शुरू हो चुका है और 23 जून को विपक्ष भी एकजुटता वाली तस्वीर दिखाने वाला है। लेकिन क्या ये एकजुटता सही मायनों में जनता को स्वीकार हो जाएगी? क्या इस समझौते को पसंद किया जा सकता है जहां राज्यों में सियासी दुश्मन और मोदी के खिलाफ सब एक हो जाते हैं? इस समय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस के रिश्तों को लेकर भी ऐसी अटकलें चल रही हैं।
ये रिश्ता क्या कहलता है?
कहने को 23 जून को पटना में होने वाली विपक्षी एकता की बैठक में कांग्रेस और टीएमसी दोनों हिस्सा ले रही हैं, लेकिन बंगाल में इस पंचायत चुनाव को लेकर हो रहे बवाल पर ये दोनों पार्टियां ही एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रही हैं। रिश्ते इतने तल्ख चल रहे हैं कि सीएम ममता बनर्जी ने यहां तक कह दिया है कि बंगाल में बीजेपी की बी टीम कांग्रेस है। कुछ बयानों से समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर कैसे कांग्रेस और टीएमसी के रिश्ते बंगाल से दिल्ली जाते वक्त पूरी तरह बदल जाते हैं।
कौन किसका दोस्त, इस पर हो रही बहस
शुक्रवार को ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस बंगाल में बीजेपी की बेस्ट फ्रेंड है। कांग्रेस तो दोनों लेफ्ट और बीजेपी की दोस्त है। आप चाहते हो कि सदन में आपका समर्थन करें, हम बीजेपी के खिलाफ ऐसा कर भी देंगे, लेकिन याद रखिए आप यहां बंगाल में अपना घर सीपीआईएम के साथ चलाते हो। ऐसे में बंगाल में हमसे मदद की कोई उम्मीद ना रखी जाए।
कांग्रेस बोली- हमारी दया से ममता नेता
अब ममता के इस बयान पर पलटवार करते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया। उनकी तरफ से कहा गया कि ममता बीजेपी के साथ खेलती हैं। जब भी विपक्षी एकता की बात होती है, वे हमेश इसे तोड़ने का काम करती हैं। ममता को समझना चाहिए कि वे कांग्रेस की दया की वजह से ही नेता बनी हुई हैं। आखिर कांग्रेस को उनकी मदद क्यों चाहिए होगी।
बंगाल में बीजेपी के साथ कांग्रेस, दिल्ली में क्या हुआ?
वैसे इस पंचायत चुनाव में हुई हिंसा ने एक बात साफ कर दी है, कांग्रेस और टीएमसी के दिल मिले ही नहीं हैं। 2024 के लिए बस एक समझौता किया जा रहा है जहां पर बीजेपी को कैसे हराया जाए, इस पर जोर है। लेकिन ये सारी राजनीति दिल्ली के लिए है, बंगाल में कांग्रेस और टीएमसी तो बड़े वाले प्रतिद्वंदी है। तभी तो जब मुर्शिदाबाद में नामांकन प्रक्रिया के दौरान दो लोगों की मौत हुई, कांग्रेस ने बीजेपी के साथ सेंट्रल फोर्स तैनात करने की मांग उठा दी है।
ममता का ऑफर और कांग्रेस की दुविधा
यानी कि बंगाल में बीजेपी-कांग्रेस साथ मिलकर ममता बनर्जी को घेरने का काम करते हैं, लेकिन दिल्ली में वहीं कांग्रेस और वहीं ममता साथ आ जाते हैं। वैसे कुछ समय पहले सीएम ममता बनर्जी ने कांग्रेस को एक बड़ा ऑफर दिया था। कहा गया था कि कांग्रेस को भी समझौता करना पड़ेगा, उसे क्षेत्रीय पार्टियों को स्पेस देनी होगी। इसी कड़ी में ममता चाहती थीं कि कांग्रेस बंगाल में चुनाव ना लड़े। अब देश की सबसे पुरानी पार्टी ऐसी किसी भी मांग को नहीं मानना चाहती है, इसी वजह से सवाल उठ रहा है कि क्या 23 जून को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक सिर्फ एक फोटोऑप है या फिर सही मायनों में किसी रणनीति पर काम किया जाएगा।
राहुल को नहीं पसंद बंगाल में ममता!
वैसे ये वाली स्थिति मेघालय चुनाव के दौरान भी देखने को मिल गई थी। वहां भी चुनावी मैदान में बीजेपी थी, कांग्रेस थी और ममता की टीएमसी भी अपनी दावेदारी ठोक रही थी। लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी के ज्यादा टीएमसी पर अपना हमला रखा। पार्टी को ये लग रहा था कि गोवा की तरह यहां भी टीएमसी की वजह से वोटों का बंटवारा हो जाएगा और बाजी बीजेपी मार जाएगी। दोनों टीएमसी और कांग्रेस के बीच जारी ये प्रतिस्पर्धा बताने के लिए काफी है कि दोनों ही पार्टियां साथ में सहज नहीं हैं। दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं है।
टीएमसी को नहीं चाहिए राहुल का नेतृत्व?
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कुछ समय पहले ही ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और राहुल गांधी के बीच तगड़ी जुबानी जंग देखने को मिल चुकी है। असल में ये बवाल भी मेघालय चुनाव के दौरान ही हुआ था। तब राहुल गांधी ने टीएमसी पर बड़ा हमले करते हुए कह दिया था कि जब जानते हैं कि बंगाल में टीएमसी ने कितने बड़े घोटाले कर रखे हैं। इसके जवाब में अभिषेक बनर्जी ने कहा था कि राहुल को निजी हमले के बजाए अपनी रणनीति पर काम करना चाहिए।
ये तो कुछ उदाहरण हैं, एक बयान में ममता यहां तक कह चुकी हैं कि यूपीए कौन? ऐसे में जब इन दोनों पार्टियों के रिश्ते बंगाल में इतने तल्ख रहते हैं, दिल्ली में ये दिल कैसे मिलेंगे?