Lok Sabha Election 2019 के लिए भोपाल की राजनीतिक चौपाल पर अरसे बाद कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। शहर के सियासी धरातल पर काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव है। शहर के अलग-अलग हिस्सों में माहौल अलग-अलग पक्ष में देखने को मिल रहा है। बड़े तालाब के लिए मशहूर भोपाल में इस बार सियासत समंदर की लहरों के मानिंद हिलोरे ले रही है। 1989 से बीजेपी यहां लगातार जीत रही है, लेकिन इस बार समीकरण बदले-बदले से लग रहे हैं। मुश्किल सीट से चुनाव लड़ने के चैलेंज के बाद कांग्रेस ने यहां से पार्टी के दिग्गज नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने उनके मुकाबले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर दांव खेला है। दोनों ही अपने बयानों के चलते खासे सुर्खियों में रहते हैं। विधानसभा चुनाव का असर लोकसभा पर भी पड़ेगा या नहीं। आइये जानते हैं क्या है भोपाल के लोगों की प्रतिक्रिया…
कैंडिडेट पर क्या बोले पार्टी कार्यकर्ताः बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ता कहते हैं कि दिग्विजय सिंह ने ही ‘भगवा आतंक’ शब्द को बढ़ावा दिया था। ऐसे में साध्वी प्रज्ञा उनके खिलाफ सबसे सही उम्मीदवार हैं। बीजेपी के लिए दशकों से काम कर रहे राकेश समाधिया कहते हैं कि दिग्विजय सिंह विवादित बयान देते रहते हैं और कांग्रेस ने ही भगवा आतंक की थ्योरी को बढ़ावा दिया है। ऐसे में साध्वी प्रज्ञा बड़ा चेहरा हैं और वे भोपाल की सीट को एक बार फिर बीजेपी के खाते में लाने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं। वहीं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि दिग्विजय बड़े नेता हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि काफी मजबूत और अनुभवी नेता की है। ऐसे में उनका पलड़ा भारी है। कांग्रेस कार्यकर्ता डॉ. साकिब अहमद सिद्दीकी कहते हैं, ‘माहौल 100 फीसदी दिग्विजय सिंह के पक्ष में है। वह सर्वमान्य नेता हैं। इस बार जनता कांग्रेस-भाजपा भूलकर सिर्फ दिग्विजय सिंह के पक्ष में वोट देगी।’
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जमीन से जुड़े हैं जनता के मुद्देः भोपाल की आम जनता के मुद्दे भगवा आतंक, हिंदू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद की थ्योरी से थोड़े अलग हैं। हर किसी की अपनी राय है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती भी है। श्यामला हिल्स की सैर पर निकले लोगों में भी सियासत की चर्चा जारी है। पुराने भोपाल से आए तारिक अंसारी कहते हैं, ‘मैं तो सबसे पहले जॉब की बात करना चाहता हूं। पढ़े-लिखे लोग जो बिना जॉब के घूम रहे हैं, परेशान हैं। खासतौर से मध्य प्रदेश की बात करूं तो पिछले पांच साल में जॉब को लेकर कुछ नहीं हुआ। भोपाल में कोई भी बड़ी आईटी कंपनी नहीं है। कुछ चुनिंदा इलाकों का विकास हुआ है। भोपाल शहर को अगर चार हिस्सों में बांटें तो करोंद की तरफ का इलाका बिल्कुल विकसित नहीं है। किसी भी शहर का विकास चारों तरफ से होना चाहिए।’ बहरहाल रोजगार के मसले पर असंतुष्ट तारिक स्वच्छता अभियान को लेकर मोदी सरकार से खुश हैं। उनकी मांग है कि सरकार किसी की भी बने, लेकिन भोपाल की गंगा-जमुनी तहजीब बनी रहे। वह कहते हैं कि यह इस शहर की खूबसूरती है। वह यह भी मानते हैं कि नोटबंदी से परेशानियों के बावजूद कुछ हासिल नहीं हुआ और जीएसटी से महंगाई तो बढ़ी है, लेकिन आगे बेहतरी की उम्मीद है। तारिक को दिग्विजय सिंह के जीतने की ज्यादा संभावना लग रही है।

वन विहार के पास तैनात सिक्योरिटी गार्ड लखन यादव चौकीदार को चोर बताए जाने को गलत मानते हैं। लखन अपनी नौकरी के घंटों और उसकी तुलना में मिलने वाले मेहनताने से थोड़े नाखुश हैं। हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना में अपने रिश्तेदारों को घर मिलने की तारीफ करते हुए वह कहते हैं कि मोदी सरकार को जीत मिलेगी। उन्हें स्थानीय उम्मीदवारों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन उन्हें लगता है कि बीजेपी उनके लिए बेहतर काम कर सकती है।
पुराने भोपाल में दिन हो या रात इन दिनों सिर्फ सियासत की बात है। इतवारा के रहने वाले अब्दुल समद नोटबंदी से थोड़े नाराज दिखाई दिए। उन्हें दिग्विजय सिंह का पलड़ा भारी लग रहा है। वह कहते हैं कि जिसकी भी सरकार बने, बस भोपाल शहर को और अच्छा बनाए।

जुमेराती चौक और लक्ष्मी टॉकीज पर माहौल मिलाजुला है। रात के समय यहां के पटिये पर खूब चर्चाएं होती हैं। दिन में भी लोगों में चुनावी चर्चा को लेकर खासा उत्साह है। लक्ष्मी टॉकीज के पास जनरल स्टोर चलाने वाले अवनीश चतुर्वेदी भी नोटबंदी से हुई परेशानियों को भूले नहीं हैं। हालांकि उन्हें मोदी सरकार से आगे भी खासी उम्मीदें हैं।
लालघाटी में रहने वाली अक्षय जैन पेशे से टैक्स कंसल्टेंट हैं। अक्षय का मानना है कि जीएसटी से हर वर्ग को फायदा ही होगा। हालांकि वे कुछ और संशोधनों की उम्मीद लगा रहे हैं और कहते हैं कि सरकार लगातार कोशिश तो कर रही है। अक्षय भी रोजगार के मुद्दे पर सरकार के प्रयासों से संतुष्ट नहीं है लेकिन बीजेपी का समर्थन करते हुए कहते हैं प्रधानमंत्री पद के लिए फिलहाल मोदी से बेहतर विकल्प नहीं है।

दिग्विजय या साध्वी कौन मजबूतः पुराने भोपाल के कुछ इलाकों में दिग्विजय का समर्थन ज्यादा दिख रहा है। वहीं नये भोपाल में साध्वी के समर्थक ज्यादा मिले। दिग्विजय को लोग अनुभव के नाम पर तरजीह दे रहे हैं। वहीं साध्वी प्रज्ञा को पार्टी के नाम पर ज्यादा समर्थन देखने को मिल रहा है। आम जनता को अपने मुद्दों और पार्टी से ज्यादा सरोकार है वे मोटेतौर पर लोग भगवा आतंक बनाम हिंदू राष्ट्रवाद की लड़ाई में उलझना ही नहीं चाहते। युवाओं में नरेंद्र मोदी को लेकर ज्यादा क्रेज देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री के रूप में अमूमन दो तिहाई लोगों की पहली च्वॉइस नरेंद्र मोदी ही दिख रहे हैं। दिग्विजय का करियर मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद फिर से ऊंचाई पर है तो मालेगांव विस्फोट मामले से उबरने के बाद साध्वी के लिए नई शुरुआत है। यह उनका पहला चुनाव है।
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ऐसा है सियासी समीकरणः भोपाल बीजेपी का गढ़ माना जाता है। 1989 के बाद से यहां कांग्रेस को हर बार हार ही मिली है। इस सीट से राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और कैलाश जोशी भी सांसद रह चुके हैं। फिलहाल आलोक संजर यहां से सांसद हैं। लगातार आठ चुनाव यहां बीजेपी ने जीते हैं, लेकिन इस बार लड़ाई दिलचस्प हो गई है। भोपाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें बैरसिया (बीजेपी), भोपाल दक्षिण-पश्चिम (कांग्रेस), हुजूर (बीजेपी), भोपाल उत्तर (कांग्रेस), भोपाल मध्य (कांग्रेस), सीहोर (बीजेपी), नरेला (बीजेपी) और गोविंदपुरा (बीजेपी) शामिल हैं। यानी 5 विधानसभा सीटें बीजेपी और 3 कांग्रेस के पास हैं। इस मामले में बीजेपी का पलड़ा भारी है।
क्या है जातीय समीकरणः भोपाल लोकसभा क्षेत्र की जनसंख्या 26,79,574 है। 23.71 फीसदी आबादी ग्रामीण और 76.29 फीसदी शहरी है। यहां की 15.38 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति और 2.79 फीसदी अनुसूचित जनजाति की है। पिछले चुनाव में यहां 19,56,936 मतदाता थे। यहां करीब 25 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। वहीं, करीब 15 फीसदी अनुसूचित जाति और 2.56 फीसदी अनुसूचित जनजाति के हैं।