कोरोना महामारी और पूर्णबंदी के चलते एक तरफ जहां कई क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम हुए हैं, वहीं पैरामेडिकल के क्षेत्र में देश-विदेश में रोजगार के अनेकों नए अवसर पैदा हो रहे हैं। जो रिपोर्ट सामने आ रही हैं, उनकी माने तो जो विद्यार्थी पैरामेडिकल का पाठ्यक्रम कर रहे थे, उनको पाठ्यक्रम पूरा होने से पहले ही नौकरी मिल गई। दूसरी ओर, कई राज्य सरकारें तो पैरामेडिकल पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों की न केवल संख्या बढ़ाने की सिफारिश की हैं बल्कि नए पैरामेडिकल संस्थान खोलने की मंजूरी भी दी है। इसकी लगातार बढ़ती हुई मांग का कारण यह भी है कि कोई भी विद्यार्थी दसवीं व बारहवीं कक्षा के बाद दो साल का डिप्लोमा करके इस क्षेत्र में नौकरी हासिल कर सकता है। इसके बावजूद नीति आयोग का कहना है कि अभी भी छह लाख प्रतिवर्ष के हिसाब से पैरामेडिकल स्टाफ की कमी अपने देश में हैं।

पैरामेडिकल का पाठ्यक्रम डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाणन स्तर पर उपलब्ध हैं। पाठ्यक्रम की अवधि छह महीने से लेकर चार साल तक भी हो सकती है।
जहां तक पैरामेडिसिन के अंतर्गत किए जाने वाले विभिन्न पाठ्यक्रमों की बात आती है तो इसमें कई प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं। उम्मीदवार स्नातक, डिप्लोमा या प्रमाणन पाठ्यक्रम के लिए जाने का विकल्प चुन सकता है। आमतौर पर डिप्लोमा पाठ्यक्रम की अवधि दो साल और बीएससी की अवधि तीन वर्ष होती है। पैरामेडिकल क्षेत्र के अंतर्गत किसी विद्यार्थी के सामने कई पाठ्यक्रम करने का विकल्प होता है।

भौतिक चिकित्सा : भौतिक चिकित्सा को ‘इलेक्ट्रोथेरेपी’ के नाम से भी जानते हैं। यह स्वास्थ्य सेवा की वह शाखा है जो मानव शरीर की गति से संबंधित है। इस क्षेत्र में विभिन्न तकनीकों जैसे वार्षिक चिकित्सा, व्यायाम चिकित्सा आदि का उपयोग किया जाता है। फिजियोथेरेपिस्ट को दुर्घटना के बाद रोगियों में शरीर के कुछ हिस्सों की गतिशीलता में सुधार करने का काम सौंपा जाता है।

डायलिसिस प्रौद्योगिकी : इस पाठ्यक्रम में नामांकित लोग डायलिसिस की प्रक्रिया में प्रयुक्त विभिन्न मशीनरी के बारे में जानकारी हासिल करते और उन्हें संचालित करना सीखते हैं। वे सीखते हैं कि मशीन द्वारा दिए गए परिणामों की व्याख्या कैसे करें और सही निदान करें। डायलिसिस एक चिकित्सा प्रक्रिया है जो रोगियों के रक्त से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को निकालती है।

एम्बुलेंस परिचारक : ये चिकित्सा पेशेवर हैं जो आमतौर पर आपातस्थिति के मामले में पहले उत्तरदाता होते हैं। वे पेशेवर हैं जो एम्बुलेंस को सौंपे जाते हैं और उन रोगियों की सहायता के लिए आते हैं जो अपने दम पर अस्पताल नहीं पहुंच सकते। उन्हें यह जानने की जरूरत है कि विभिन्न चिकित्सा आपातस्थितियों में क्या करना है और मरीजों को समय पर नजदीकी अस्पताल पहुंचाने का काम सौंपा जाता है।

एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट पैरामेडिक : आमतौर पर, उन्हें गंभीर परिस्थितियों में रोगियों की देखभाल का काम सौंपा जाता है। वे डॉक्टरों की मदद करते हैं और उन्हें मरीज की स्थिति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं। इनके अलावा एक्स-रे प्रौद्योगिकी या रेडियोग्राफी, संज्ञाहरण प्रौद्योगिकी अथवा एनेस्थीसिया आदि भी शामिल हैं।

रोजगार के क्षेत्र : पैरामेडिकल को चिकित्सा विज्ञान की रीढ़ की हड्डी माना जाता हैं। पैरामेडिक्स के बिना, संपूर्ण स्वास्थ्य उद्योग चल ही नहीं सकता है। यदि किसी अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ न हो तो इसके बिना न तो डॉक्टर, न अस्पताल, न निजी क्लीनिक आदि न तो चल सकते हैं और न ही किसी बीमार को ठीक कर सकते है।

इसलिए यह आज एक ऐसा क्षेत्र बन चुका हैं जिसमें रोजगार की अपार संभावनाओं के साथ-साथ, सम्मान और सेवा का भी भाव हैं। इस तरह देखें तो किसी भी पैरामेडिकल स्ट्रीम में बुनियादी पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद एक उम्मीदवार किसी भी अस्पताल में, नर्सिंग होम में अथवा किसी स्वास्थ्य विभाग आदि में नौकरी कर सकता है। हमारे देश में कई बड़े कॉपोर्रेट अस्पतालों के खुलने से यहां भी पेशेवर पैरामेडिकल स्टाफ की मांग बहुत बढ़ी है। एक विद्यार्थी यह पाठ्यक्रम करके शिक्षण को पेशे के रूप में भी चुन सकता है। इसके अलावा, वह अपनी प्रयोगशालाएं या क्लीनिक भी खोल सकते हैं।
वेतनमान : पैरामेडिकल पेशेवर के लिए औसत प्रारंभिक वेतन 18000 से 30,000 प्रति माह रुपए हो सकता है। यह व्यक्तिगत कौशल और अनुभव और अस्पताल के आधार पर 50,000 रुपए या उससे अधिक तक जा सकता है।

यहां से करें पढ़ाई

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली<br />मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली
पीजीआइएमईआर, चंडीगढ़
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर
सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई<br />मद्रास मेडिकल कॉलेज, चेन्नई
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली
किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ</p>

– संजय सिंह बघेल
(शिक्षक, दिल्ली विश्वविद्यालय)