पानी और उससे जुड़ी नासमझी या मनमानी का नतीजा आज एक तरफ जहां जलवायु असंतुलन के तौर पर दिख रहा है तो वहीं शारीरिक तौर पर भी पानी का असंतुलन सेहत की गंभीर समस्या बनकर सामने आ रहा है। फिलहाल गर्मी और उमस के कारण लोग बार-बार पानी जरूर पी रहे हैं, पर इतना भर पर्याप्त नहीं। दरअसल पानी पीने से लेकर उसकी मात्रा तक के बारे में जो आम समझ है, वह काफी हद तक अवैज्ञानिक है। मसलन, पानी खूब पीना चाहिए और गर्मी में तो यह मात्रा अधिकतम होनी चाहिए या कि दिनभर में किसी व्यक्ति को कम से कम दो लीटर या आठ लीटर पानी जरूर पीना चाहिए, ऐसे मशविरे देने वाले खूब मिलेंगे। ऐसे किसी सुझाव पर अमल से ज्यादा जरूरी है कि हम इस बात को समझें कि पानी और हमारे शरीर का संबंध क्या है और स्वास्थ्य के लिहाज से वास्तव में हमें कितना पानी पीना चाहिए। इस लिहाज से उन दो अहम शोध अध्ययनों की चर्चा जरूरी है जो पानी की शरीर की जरूरत को रेखांकित करते हैं।
शोध और दावे
1945 में अमेरिका के फूड एंड न्यूट्रिशन बोर्ड ऑफ नेशनल रिसर्च काउंसिल (एफएनबीएनआरसी) ने वयस्कों को सलाह दी कि वो हर कैलोरी खाने को पचाने के लिए एक मिलीलीटर पानी पिएं। इसका अर्थ यह हुआ कि आप अगर दो हजार कैलोरी लेने वाली महिला हैं तो आप को दो लीटर पानी पीना चाहिए। 2500 कैलोरी लेने वाले पुरुषों को दो लीटर से भी ज्यादा पानी पीना होगा। इसमें सिर्फ सादा पानी नहीं, बल्कि फलों, सब्जियों और दूसरे पेय पदार्थ से मिलने वाला पानी शामिल है।
इसी तरह 1974 में मारर्गेट मैक्लिलियम्स और फ्रेडरिक स्टेयर की आई किताब ‘न्यूट्रिशन फॉर गुड हेल्थ’ की खूब चर्चा हुई। दरअसल, इस किताब में ही यह सुझाया गया था कि हर वयस्क को रोज आठ गिलास पानी पीना चाहिए। माना जाता है कि हर दिन आठ गिलास पानी पीने का सुझाव इस किताब से ही पूरी दुनिया में पहुंचा। पर यह इस किताब को लेकर आधी-अधूरी सूचना थी, जो हर तरफ प्रचारित हो गई। इस किताब के लेखकों ने कहा था कि पानी की इस मात्रा में फलों और सब्जियों से मिलने वाले पानी के अलावा शीतल पेय और यहां तक कि बीयर से हासिल होने वाला पानी भी शामिल है।
जरूरी मात्रा
हमारे शरीर के कुल वजन का दो तिहाई हिस्सा पानी ही होता है। पानी के जरिए हमें पोषक तत्व मिलते हैं। यह शरीर से खराब तत्वों को बाहर निकालने में भी मुख्य भूमिका निभाता है। साथ ही शरीर का तापमान नियमित करने से लेकर, जोड़ों की मुलायमियत बरकरार रखने तक पानी बहुत सारे काम करता है। इसके अलावा हम पसीने, पेशाब और सांस के जरिए पानी को शरीर से निकालते भी रहते हैं। गौरतलब है शरीर में एक से दो फीसद पानी कम हो जाने पर हम ‘डिहाइड्रेशन’ की कमी के शिकार हो सकते हैं।
सुनें शरीर की
दिनभर में दो लीटर या आठ गिलास पानी पीने के लोकप्रिय सुझाव के जरिए दुनिया में पानी पीने को लेकर एक जागरूकता भले आई पर यह सुझाव न तो पूरी तरह शोध सम्मत है और न ही पानी की यह मात्रा हर आदमी के लिए सही। दरअसल, किसी भी स्वस्थ शरीर में पानी की जरूरत होते ही दिमाग को पता चल जाता है और इस तरह इंसान के अंदर पानी की तलब होती है। ब्रिटेन की डॉक्टर और खिलाड़ियों की सलाहकार कोर्टनी किप्स कहती हैं, ‘अगर आप अपने शरीर की बात सुनेंगे, तो यह बता देता है कि आप को प्यास कब लगी है।’
प्यास लगने पर पानी पीना सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि इसमे कैलोरी नहीं होती। वैसे हम प्यास लगने पर चाय, कॉफी, शीतल या दूसरे पेय पदार्थ लेकर भी पानी की कमी पूरी कर सकते हैं। कैफीन के कुछ दुष्प्रभाव भले हों, पर चाय-कॉफी से भी हमारे शरीर को पानी तो मिलता ही है।
वैज्ञानिकों को अब तक ऐसे सबूत नहीं मिले, जो ये कहें कि अच्छी सेहत के लिए खूब पानी पीना चाहिए। इसका सीधा अर्थ यह है कि जब प्यास महसूस हो, तभी आप पानी पीजिए। हालांकि थोड़ा-बहुत पानी ज्यादा पीने से कोई नुकसान नहीं है। यह भी कि पर्याप्त मात्रा में पानी को शरीर में बनाए रखने से हम सेहत से जुड़ी कई चुनौतियों का हल आसानी से ढूंढ लेते हैं।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)