एक बार फिर किसान अपनी मांगों के साथ आंदोलन करने सड़क पर उतर आए हैं। साफ है कि यह प्रश्न और उससे उपजी स्थितियों के प्रति सरकार बहुत ज्यादा सरोकार नहीं रखती। वरना क्या वजह है कि लंबे समय से अपने सवालों पर किसानों के सामने आंदोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है और सरकार इस मसले पर कोई हल निकालने के आश्वासन से आगे कुछ ठोस करती नहीं दिखती। क्या सरकार की नजर में किसानों के मुद्दे विचार के लायक नहीं हैं या फिर वह इसे सुलझाने के लिए ईमानदारी से कुछ करना नहीं चाहती!
गौरतलब है कि पंजाब और हरियाणा की शंभू सीमा से एक सौ एक किसानों के जत्थे ने शुक्रवार को दिल्ली के लिए पैदल मार्च करना शुरू किया था, लेकिन वहां उन्हें पुलिस ने निषेधाज्ञा लागू होने का हवाला देकर रोक दिया। इसके बाद हुए हंगामे के बीच पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े, जिसमें कुछ किसानों के घायल होने की खबर आई। फिलहाल किसानों ने जत्थे को रोकने की बात कही है। कई इलाकों में इंटरनेट भी निलंबित किया गया। जाहिर है, किसान और सरकार फिर आमने-सामने हैं।
हालांकि किसानों के प्रदर्शन के बीच राज्यसभा में सरकार की ओर से इस बात का भरोसा दिलाया गया है कि वह सभी कृषि उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी। दरअसल, कर्जमाफी, किसान और खेत मजदूरों के लिए पेंशन और बिजली की दरों में बढ़ोतरी न करने के अलावा किसानों की एक मुख्य मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी लागू करने को लेकर है। इस लिहाज से सरकार की घोषणा महत्त्वपूर्ण है। मगर क्या केवल आश्वासनों के बूते समस्या का समाधान निकाला जा सकता है? यह समझना मुश्किल है कि किसानों की मांगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य का सवाल पिछले कई वर्षों से बना हुआ है, मगर अब भी सरकार की ओर से कोई स्थायी हल निकालने के बजाय व्यावहारिक कदम उठाने का सिर्फ भरोसा दिया जाता है। जबकि तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर महीनों चले आंदोलन के समय भी इस समस्या के समाधान का आश्वासन दिया गया था। यही वजह है कि किसान अब इस मसले पर कानूनी गारंटी चाहते हैं।
यह जगजाहिर है कि सरकार और किसानों के बीच खींचतान से जो हालात पैदा होते हैं, उससे आम लोग भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। किसानों के दिल्ली कूच करने या फिर उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिए पुलिस की ओर से किए इंतजामों की वजह से सड़कें बाधित होती हैं। इसका खमियाजा वैसे तमाम लोगों को भुगतना पड़ता है, जो अपने जरूरी काम से गंतव्य की ओर जा रहे होते हैं। सरकार यह सफाई दे सकती है कि आम लोगों का रास्ता किसानों के आंदोलन की वजह से बाधित होता है, लेकिन आखिर किसानों को बार-बार सड़क पर उतरने की नौबत क्यों आती है?
क्या सरकार और आंदोलनकारी किसानों की ओर से ऐसे उपाय नहीं किए जा सकते कि रास्ता और आम लोगों की आवाजाही बाधित न हो? सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि किसानों को अपनी मांग रखने का हक है, लेकिन आम लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में कोई ऐसी जगह निर्धारित की जा सकती है, जहां किसान भी अपने मुद्दों के साथ प्रदर्शन कर सकें। मगर सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि सरकार अब किसानों की मांगों को लेकर अपनी ईमानदार इच्छाशक्ति दिखाए और सबकी सहमति पर आधारित कोई स्थायी हल निकाले।