पश्चिम बंगाल में दंगों पर खुल कर सियासत शुरू हो गई है। वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में मुर्शिदाबाद में हुआ प्रदर्शन हिंसक हो उठा, उसमें तीन लोग मारे गए, कई दुकानों में तोड़-फोड़ की गईं, कई जला दी गईं। उसे लेकर बंगाल में राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वहां हिंसा करने वाले बाहर से लाए गए थे। उसके जवाब में भाजपा ने कथित खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया कि दंगा फैलाने वाले बांग्लादेश से आए थे। उसके वीडियो भी जारी किए गए।

फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं ने दंगाइयों और ममता बनर्जी के खिलाफ तल्ख बयानबाजी शुरू कर दी। मगर ममता बनर्जी का कहना है कि भाजपा उत्तर प्रदेश और दूसरी जगहों के वीडियो प्रसारित कर राज्य में अशांति फैलाना चाहती है। इस तरह की सियासी बयानबाजियों के शोर में यह हकीकत परदे की ओट में खिसकती जा रही है कि आखिर दंगा किन लोगों ने भड़काया था। उन लोगों की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई की कोशिश धीमी पड़ती नजर आने लगी है। हालांकि राज्य सरकार और पुलिस का दावा है कि वह जल्दी दोषियों की पहचान कर उचित कार्रवाई करेगी।

सीमावर्ती इलाकों में अधिक देखने को मिल रही है हिंसक घटनाएं

पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम बंगाल में राजनीतिक संघर्ष और इस तरह सांप्रदायिक आधार पर हिंसक झड़पों का सिलसिला कुछ बढ़ गया है। चिंता की बात यह है कि ऐसे प्रयास पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में अधिक देखने को मिल रहे हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते, जब संदेशखाली में भी लंबे समय तक सांप्रदायिक तनाव बना रहा। कुछ महिलाओं ने आरोप लगाया था कि तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के आदमी उन्हें उठा कर ले जाते थे और उनका यौन शोषण किया जाता था।

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मगर बाद में वह आरोप गलत साबित हुआ। चुनावों के वक्त तो वहां खूनी संघर्ष हमेशा बढ़ जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव के समय अदालत के निर्देश पर निर्वाचन आयोग को अतिरिक्त सुरक्षा के इंतजाम करने पड़े थे। अब फिर विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, ऐसे में कई लोगों का यह कहना गलत नहीं ठहराया जा सकता कि उसी के मद्देनजर रणनीति बनाई जा रही है। मगर सवाल है कि किसी भी राज्य में इस तरह अगर कुछ उपद्रवी कानून-व्यवस्था को चुनौती देते हैं, तो सरकार कैसे अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ सकती है। मुर्शिदाबाद और आसपास के इलाकों में जो लोग मारे गए, घायल हुए, जिन लोगों की दुकानें जला दी गईं, जिनके रोजी-रोजगार के जरिया प्रभावित हुए हैं, उनके प्रति आखिरकार किसकी जवाबदेही बनती है।

सियासी रंग देकर मामले को भटकाने का प्रयास

सांप्रदायिक तनाव किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र और जिम्मेदार सरकार की निशानी नहीं माना जा सकता। जिस तरह वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर पूरे देश में विरोध का वातावरण था और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में इसका विरोध उग्र होने की संभावना अधिक थी, उसमें सरकार से अपेक्षा की जाती थी कि अतिरिक्त सजगता बरते। मगर ऐसा नहीं हुआ, और अब उसे सियासी रंग देकर मामले को भटकाने का प्रयास किया जा रहा है।

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यह ठीक है कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की नाकामियों पर अंगुली उठाने का अधिकार है, मगर उससे भी सांप्रदायिक मामलों में संयम बरतने और सांविधानिक मूल्यों के पालन की अपेक्षा की जाती है। अगर सियासी फायदे के लिए ऐसे बयान दिए जाते हैं, जिससे सांप्रदायिक उन्माद की स्थिति बनती है, तो उसे भी जायज नहीं ठहराया जा सकता।