पिछले कई वर्षों से रेल सेवाओं को सुंदर, सुरक्षित और सुविधानजक बनाने के दावे बढ़-चढ़ कर किए जाते रहे हैं, मगर रेल हादसों को रोकना अब भी चुनौती है। वर्ष भर पहले ही ओड़ीशा के बालासोर में तीन गाड़ियां आपस में टकरा गई थीं, जिसमें दो सौ नब्बे से अधिक लोग मारे गए। अब पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक मालगाड़ी ने कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से टक्कर मार दी। इसमें करीब पंद्रह लोगों के मरने और साठ से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है। पीछे के जिन डिब्बों में टक्कर लगी और वे पटरी से उतर गए उनमें से दो सामान और गार्ड के डिब्बे थे। अगर उनमें भी मुसाफिर रहे होते तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि हादसा कितना बड़ा होता।
स्वचालित सिग्नल प्रणाली का खराब होना हादसे की वजह
इस दुर्घटना के पीछे स्वचालित सिग्नल प्रणाली का खराब होना कारण बताया जा रहा है। जैसा कि हर दुर्घटना के बाद मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा की जाती है, वह औपचारिकता निभा दी गई है, मगर असली वजह का पता नहीं चल पाया है। जिस रेल लाइन पर यह हादसा हुआ, वह पूर्वोत्तर का सबसे व्यस्त मार्ग है। कहा जा रहा है कि इस मार्ग पर अभी टक्कररोधी उपकरण कवच नहीं लगा है, वरना यह हादसा न होने पाता।
ट्रेनों में टक्कररोधी उपकरण लगाने का प्रस्ताव 25 साल पुराना
हर रेल हादसे के बाद नियम-कायदों के उल्लंघन, तकनीकी खामियों आदि को लेकर मंथन चलता रहता है और आखिरकार उस पर पर्दा डाल कर किनारे कर दिया जाता है। अगर रेल विभाग सचमुच रेल दुर्घटनाएं रोकने को लेकर गंभीर होता, तो ऐसी मामूली लापरवाहियों और तकनीकी खामियों की वजह से ऐसे बड़े हादसे न होने पाते। ट्रेनों में टक्कररोधी उपकरण लगाने का प्रस्ताव करीब पच्चीस साल पुराना है। वर्तमान सरकार ने इसके लिए कवच नामक उपकरण विकसित किया और बढ़-चढ़ कर दावा किया गया कि इस उपकरण से रेल हादसे पूरी तरह रोके जा सकेंगे।
मगर हकीकत यह है कि अभी तक केवल डेढ़ हजार किलोमीटर रास्ते में इस उपकरण को लगाया जा सका है। हालांकि रेल हादसे केवल गाड़ियों के टकराने से नहीं होते। कभी रेल की पटरियां उखड़ जाने से डिब्बे उतर जाते हैं, तो कभी गलत पटरी पर गाड़ियों को रवाना कर दिया जाता है, कभी सिग्नल प्रणाली ठीक न होने से गाड़ियां स्टेशन छोड़ कर आगे बढ़ जाती हैं। ज्यादातर हादसे व्यस्त मार्गों और तेज रफ्तार गाड़ियों में ही देखे जाते हैं।
विचित्र है कि देश में बुलेट ट्रेन चलाने का नक्शा खींचा जा रहा है, वंदेभारत जैसी तेज रफ्तार गाड़ियां बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, मगर पटरियों को सुगम बनाने के लिए जो जरूरी संसाधन चाहिए, वे नहीं जुटाए जा रहे। असुरक्षित पटरियों और कमजोर संचालन प्रणाली के जरिए मुसाफिरों को सुरक्षित सफर मुहैया कराना चुनौती ही रहेगा। लगातार हादसों के बाद जिस तरह रेलमंत्री के कामकाज के तरीके पर गंभीर सवाल उठे थे, अपेक्षा की जाती थी कि उसमें सुधार किया जाएगा।
मगर नई सरकार में भी उन्हीं को रेलवे की जिम्मेदारी सौंपी गई। अब भी सब कुछ पुराने ढर्रे पर दिख रहा है। हालांकि वे तुरंत दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए, पर इतने भर से सरकार की संजीदगी साबित नहीं होती, जब तक कि वह रेल सुरक्षा से जुड़े बुनियादी पहलुओं पर गंभीरता नहीं दिखाती। देश में एक रेल हादसे के बाद रेलमंत्री के इस्तीफा देने का भी उदाहरण रहा है। लोग भरोसा करके रेलगाड़ी से अपने गंतव्य के लिए चलते हैं, मगर किसी की लापरवाही की वजह से उन्हें जान गंवानी पड़ती है।