देश के कई इलाकों में इन दिनों लोगों को भारी बरसात की वजह से बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़नी पड़ रही है। वहीं, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत कई क्षेत्रों में मानसून के बादल बरसने में संकोच कर रहे हैं। नतीजतन, उमस भरी गर्मी से लोगों का हाल बेहाल है। ऐसे में सवाल है कि आखिर मौसम प्रणाली में इस कदर असंतुलन क्यों पैदा हो रहा है? भारतीय मौसम विभाग की ताजा रपट में कहा गया है कि उत्तर-पश्चिम भारत में इस वर्ष जून का महीना 31.73 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान के साथ वर्ष 1901 के बाद से सबसे गर्म रहा है।

उमस भरी गर्मी ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं

इस बीच, दिल्ली में मई से जून के बीच बत्तीस दिन ऐसे रहे, जब तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। इसके बाद दिल्ली में मानसून की दस्तक के साथ ही चौबीस घंटों में इतना पानी बरसा कि अट्ठासी वर्षों का रेकार्ड टूट गया। उसके बाद हल्की बारिश ही हो रही है, जिससे उमस भरी गर्मी ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वहीं, पहाड़ी इलाकों में बादल फटने और मैदानी क्षेत्रों में बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इससे पिछले दो-तीन सप्ताह में कई लोगों की जान जा चुकी है।

मौसम के इस बदलते मिजाज के पीछे जलवायु परिवर्तन को कारण माना जाता है। यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास की ताजा रपट के मुताबिक, मौसम में आ रहे बदलाव जलवायु परिवर्तन के खतरों का संकेत हैं। बढ़ती वैश्विक तपिश से भविष्य में और भी भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि मौसम में तेजी से हो रहे बदलावों के पीछे कार्बन उत्सर्जन का बड़ा योगदान है।

कार्बन उत्सर्जन का सीधा प्रभाव मौसम पर पड़ रहा है

दरअसल, पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन बहुत तेजी बढ़ रहा है, जिसका सीधा प्रभाव मौसम पर पड़ रहा है। हवा में बढ़ते ‘एयरोसोल सल्फेट’ की मात्रा भी धरती का तापमान बढ़ा रही है, जिससे अरब और हिंद महासागर का तापमान बढ़ रहा है और इससे मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में साफ है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत समेत दुनिया भर में हो रहे प्रयासों को गति देने की जरूरत है। तभी मौसम में हो रहे असामान्य बदलावों का असर कम हो पाएगा।