निर्वाचन आयोग की ओर से हाल ही में बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर के बाद अब दूसरे चरण के तहत बारह राज्यों में यही प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की अपनी अहमियत है। दरअसल, बिहार में यह सवाल उठाया गया था कि जब चुनाव के लिए बहुत कम वक्त बचा था, तब आयोग ने अचानक एसआइआर की शुरूआत क्यों कर दी और ऐसा केवल बिहार में क्यों किया गया। तब यह भी कहा गया कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने में पर्याप्त वक्त है, अगर वहां पहले एसआइआर कराया जाए तो बेहतर हो।
मगर निर्वाचन आयोग शायद बिहार विधानसभा के लिए इसी चुनाव में मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करने की इच्छा रखता था, इसलिए काफी सवाल उठने के बावजूद आखिर एसआइआर को अंजाम दिया गया। अब अंडमान और निकोबार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, पुदुुचेरी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु में एसआइआर होगा, जिसके बाद आयोग का मानना है कि इसके जरिए संबंधित राज्यों की मतदाता सूची को त्रुटिहीन बनाया जा सकेगा।
मतदाता सूची से काटे गए थे बहुत नाम
ऐसी शिकायतें आती रही हैं कि चुनाव में कुछ लोगों ने फर्जी तरीके से या फिर किसी का नाम एक से ज्यादा जगहों पर दर्ज था। इस तरह के कई अन्य मामलों के आधार पर मतदाता सूची में अपात्र लोगों के नाम हटाए जाने को लेकर आवाज उठती रही है। मगर बिहार में एसआइआर के क्रम में जिस तरह लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, उसे लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। कई राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया कि एसआइआर के बहाने बड़ी संख्या में वैसे मतदाताओं के नाम भी सूची से हटा दिए गए, जो पात्र थे।
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आयोग की इस दलील से किसी को भी इनकार नहीं होगा कि किसी भी चुनाव में केवल वैध और पात्र मतदाताओं को मतदान करने का अधिकार हो। जिन लोगों का निधन हो गया है, जिनका नाम एक से ज्यादा जगहों पर मौजूद है या फिर जो स्थायी रूप से एक से दूसरे शहर में विस्थापित हो गए हैं, उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाए। मगर यह सवाल बना रहेगा कि मतदाता सूची में से किसी भी ऐसे व्यक्ति का नाम क्यों हटे, जो वैधता की कसौटी पर अपनी पूरी पात्रता रखते हैं।
आधार को कर दिया गया था अमान्य
अब जिन राज्यों में एसआइआर की घोषणा हुई है, उसमें खबरों के मुताबिक, कोई कागज दिखाने की जरूरत नहीं होगी। मुख्य रूप से यह एक बड़ा बिंदु था, जिस पर बिहार में हुए एसआइआर के दौरान काफी सवाल उठाए गए थे। दरअसल, बिहार में एसआइआर के तहत मतदाता सूची में नाम कायम रखने के लिए आयोग ने कुछ दस्तावेज जमा करना अनिवार्य बना दिया था, जिसमें आधार को मान्य नहीं बताया गया। हालांकि इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद निर्वाचन आयोग को एसआइआर की प्रक्रिया में दस्तावेज और प्रक्रिया संबंधी शर्तों में बदलाव करने पड़े।
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इस सबके मद्देनजर आगे यह ध्यान रखने की जरूरत होगी कि एसआइआर की समूची प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता रखी जाए। इस संबंध में बिहार में हुए एसआइआर के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में जो सवाल उठे और उस अदालत की ओर से जो सुझाव या निर्देश सामने आए, उसे देखते हुए निर्वाचन आयोग अब एक ऐसे प्रारूप में एसआइआर की प्रक्रिया को संपन्न करा सकता है, जो पूरी तरह विवादरहित हो और जिससे किसी भी राजनीतिक दल को आपत्ति न हो।
