चुनाव आयोग समय-समय पर मतदाता सूची को दुरुस्त करने का काम करता रहता है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पूर्व मतदाता सूची को अंतिम रूप देने का कार्य इसलिए जरूरी होता है, ताकि नए मतदाताओं को जोड़ा जा सके और मृत लोगों के नाम हटाए जा सकें। इस प्रक्रिया में उम्मीद की जाती है कि सूची की शुचिता बनी रहेगी। निष्पक्ष चुनाव भी तभी संभव है, जब मतदाता सूची पूरी तरह सही और विश्वसनीय हो। इसकी असली परीक्षा चुनाव के समय होती है, जब पात्र मतदाता वोट डाल रहे होते हैं। ऐसे में निर्वाचन आयोग का दायित्व बढ़ जाता है।

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इसी क्रम में आयोग ने कुछ महीने बाद बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण किया था, जिस पर काफी विवाद भी हुआ। मगर इस बीच पश्चिम बंगाल में तमाम सतर्कता के बावजूद मतदाता सूची तैयार करने में जो लापरवाही सामने आई है, वह चिंता पैदा करती है। गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गलत तरीके से नाम जोड़ने के मामले में चार पंजीकरण अधिकारियों सहित पांच कर्मियों को निलंबित किया गया है। इन पर प्राथमिकी दर्ज करने के भी निर्देश दिए गए हैं।

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पश्चिम बंगाल में निर्वाचन आयोग की कार्रवाई बताती है कि मतदाता सूचियों को सुधारने के काम में गड़बड़ी की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। सूचियों को दुरुस्त करते समय अगर कर्मचारी ही आयोग के निर्देशों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो ऐसे में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

अब पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों से छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं, तो ऐसे में आयोग को न केवल ज्यादा सतर्क रहना होगा, बल्कि राजनीतिक दलों और नागरिकों की शंकाओं को दूर करने के लिए भी कदम उठाने होंगे। यह केवल एक राज्य का मसला नहीं है। गलत तरीके से नाम जोड़ने के मामले दूसरे राज्यों में भी सामने आते रहते हैं। मतदाता सूचियों को दुरुस्त करने का एकमात्र उद्देश्य अनियमितताएं दूर करना होना चाहिए, ताकि मतदाताओं का चुनाव आयोग और लोकतंत्र में भरोसा बना रहे।