जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठनों को पाकिस्तान का प्रश्रय छिपी बात नहीं है। इसके अनेक प्रमाण न केवल पाकिस्तान को सौंपे जा चुके हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उन्हें रखा गया है। मगर पाकिस्तान के रवैए में जरा भी बदलाव नजर नहीं आता। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सेना की सख्ती, सतत सघन तलाशी और सीमा पर कड़ी चौकसी से आतंकी घुसपैठ में कमी आई है।

सीमा पार से आने वाले हथियारों और वित्तीय मदद पर रोक लगी है। मगर कुछ इलाकों में वह अपनी पैठ बनाने में कामयाब देखा जा रहा है। इसी का नतीजा है कि कश्मीर के पुंछ और राजौरी इलाके में पिछले दिनों आतंकवादी हमले बढ़े हैं। यह बात सेना दिवस पर भारतीय सेना प्रमुख ने भी स्वीकार की। मगर पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों ने जिस तरह अपनी रणनीति बदली है और वे घात लगा कर सुरक्षाबलों पर हमला करते देखे जा रहे हैं, वह ज्यादा चिंता की बात है।

उनके हमलों की प्रकृति और उनमें इस्तेमाल हुए हथियारों आदि को देखते हुए स्पष्ट है कि दहशतगर्द सुरक्षाबलों को न केवल चकमा देने में सफल रहे हैं, बल्कि अधिक मारक हथियारों का इस्तेमाल करने लगे हैं। अगर इसके लिए उन्हें पाकिस्तान से मदद मिल पा रही है, तो उस पर लगाम लगाने के क्या उपाय हो सकते हैं, इस पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।

घाटी में दहशतगर्दों को मदद पहुंचाने वालों पर नकेल कसने की हर कोशिश की गई है। हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठनों के नेताओं को सलाखों के पीछे डाला और उनके संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उनके बैंक खाते बंद कर दिए गए। घाटी में जहां से भी आतंकी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंच सकती है, उन सब पर अंकुश लगाने के प्रयास हुए हैं।

पाकिस्तान के साथ सड़क मार्ग से होने वाली तिजारत लंबे समय से बंद है। इस तरह उधर से आने वाली हथियारों आदि की खेप रुक गई है। इसके बावजूद अगर आतंकवादी न केवल घाटी में सक्रिय हैं, बल्कि थोड़े-थोड़े समय बाद सुरक्षाबलों को चुनौती पेश कर देते हैं, तो स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि उनसे पार पाने की पुख्ता रणनीति क्यों नहीं बनाई जा पा रही।

इस हकीकत से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि अब भी स्थानीय लोगों में दहशतगर्दों को पनाह देने की प्रवृत्ति समाप्त नहीं हुई है। अनेक शैक्षणिक संगठनों और प्रतिष्ठानों में छानबीन के बाद मिले तथ्यों से स्पष्ट है कि स्थानीय युवाओं का आतंकी संगठनों के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ है।

आतंकवाद किसी भी देश और समाज की तरक्की के लिए बहुत बड़ी बाधा होता है। निस्संदेह उस पर काबू पाने के लिए सेना की चौकसी अनिवार्य है। मगर यह भी सही है कि केवल सेना के सहारे इस समस्या पर काबू नहीं पाया जा सकता। इसके लिए राजनीतिक प्रयास भी जरूरी हैं। सब जानते हैं कि पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजंसी आइएसआइ, भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे हैं।

वहां का राजनीतिक नेतृत्व भी इसे अपने लिए मुफीद पाता है। दोनों देशों के बीच राजनीतिक स्तर पर शांति प्रयास लंबे समय से रुके हुए हैं। ऐसे में भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके खिलाफ दहशतगर्दी के सबूत पेश करता रहा है। मगर चीन जैसे उसके समर्थक देश ऐसे सबूतों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। जरूरत है कि घाटी में स्थानीय लोगों का भरोसा जीता और पाकिस्तान पर दहशतगर्दों को पनाह देने से रोकने का दबाव बनाया जाए।