रिजर्व बैंक ने व्यावसायिक बैंकों की बिगड़ती हालत पर गुजरे शुक्रवार को जो रिपोर्ट जारी की, वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि आने वाला समय बैंकों के लिए बहुत ही संकट और चुनौतीभरा है। केद्रीय बैंक की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) में साफ कहा गया है कि बैंकों के सामने इस वक्त सबसे बड़ा खतरा कर्जों के डूबने का है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को जिस तरह से चौपट किया है, उसका प्रभाव वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र सहित अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर पड़ा है।

भारत के ज्यादातर बड़े-छोटे सरकारी बैंक पहले ही से एनपीए के बोझ से कराह रहे हैं और किसी के पास इसका कोई समाधान नहीं है, सिवाय इसके कि बैंकों को संकट से उबारने के लिए सरकार बार-बार बैंकिंग क्षेत्र में पैसे डालती रहे। ऐसे में रिजर्व बैंक की रिपोर्ट जिस खतरे की ओर इशारा कर रही है, वह वाकई गंभीर है। केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि बैंकों के फंसे कर्ज का स्तर इस वित्त वर्ष में साढ़े बारह फीसद तक पहुंच सकता है और अगर बेकाबू हुए तो एनपीए साढ़े चौदह फीसद को भी पार कर जाए। पिछले वित्त वर्ष में यह साढ़े आठ फीसद था।

कोरोना महामारी ने सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठा दिया। तीन महीने की पूर्णबंदी से लाखों उद्योग-धंधे बंद हो गए। अर्थव्यवस्था की जान माने जाने वाले होटल, विमानन, रीयल एस्टेट और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों को भारी धक्का लगा है। निजी क्षेत्र में लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं और वेतन कटौती जैसे कदम ने भी लोगों के पसीने छुड़ा दिए।

ऐसे में पूर्णबंदी के खत्म होने के बाद अब सबसे बड़ा संकट यही बना हुआ है कि बंद कारोबार दोबारा चालू कैसे हों। बाजार में नगदी का प्रवाह एकदम ठहर-सा गया है। बैंकों की हालिया समस्या भी यहीं से शुरू हुई। जो कर्ज पहले दे रखे थे, उनकी वसूली रुक गई।

मकान, वाहन, शिक्षा और कारोबार आदि के लिए दिए गए कर्जों की वसूली अब अनिश्चितता के भंवर में फंस गई है। भारत की अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी का सामना कर रही थी, रही-सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी। कृषि क्षेत्र को छोड़ दें तो अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख क्षेत्रों जैसे विनिर्माण, निर्माण, बिजली, इस्पात, सेवा क्षेत्र आदि की स्थिति बहुत खराब है। इसलिए बैंक चाह कर भी एनपीए को बढ़ने से रोक नहीं पाएंगे।

अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने कई कदम उठाए हैं। बाजार में नगदी का प्रवाह बढ़ाने के लिए केंद्रीय बैंक ने पिछले छह महीनों में कई बार नीतिगत दरों में कटौती की। इसके अलावा कोविड संकट से निपटने के लिए सरकार ने करीब बीस लाख करोड़ रुपए के पैकेज दिए। केंद्रीय बैंक और सरकार ने कारोबारियों को कर्ज देने के लिए व्यावसायिक बैंकों पर दबाव भी बनाया है।

बैंकों के एनपीए संकट को हल्के में इसलिए नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इसकी परिणति बैंकों के डूबने के रूप में सामने आती है और इस दुश्चक्र में खाताधारक ही मारे जाते हैं। लेकिन यह भी बड़ा सवाल है कि अगर कर्ज देने वाले ही डूबते कर्ज के बोझ से दबते जाएंगे, तो बैंकिंग व्यवस्था कैसे चल पाएगी और बैंक कर्ज देने का जोखिम नहीं लेंगे तो कारोबार कैसे करेंगे। इसलिए कर्ज की वसूली और कर्ज देने के जोखिम के बीच रास्ता निकालते हुए संतुलन तो बनाना होगा।