थाईलैंड और म्यांमा में शुक्रवार को आए भूकम्प और उससे हुई तबाही ने एक बार फिर दुनिया के सामने इस चुनौती से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर ठोस उपाय करने की जरूरत को रेखांकित किया है। म्यांमा में रिक्टर स्केल पर इस भूकम्प की तीव्रता 7.7 मापी गई। अमेरिकी जियोलाजिकल सर्वे के मुताबिक म्यांमा में पहले झटके के बारह मिनट के बाद दूसरा झटका आया, जिसकी तीव्रता 6.4 थी। खबरों के मुताबिक, इस भूकम्प से भारी तबाही हुई है और हजारों लोगों के मरने की आशंका है। वहीं थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में भी कई इलाकों से इमारतों के गिरने, सड़कों में दरारें आने और पुल के धराशायी होने सहित बड़े पैमाने पर नुकसान होने की खबरें आईं।
बताया जा रहा है कि बीते एक दशक के दौरान यह पहली बार है जब बैंकाक में इतना तेज भूकम्प महसूस किया गया। हालांकि थाईलैंड को भूकम्प के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील नहीं माना जाता है, शायद इसीलिए वहां भवनों को बनाने के क्रम में भूकम्परोधी तकनीक का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी नहीं माना जाता। मगर चूंकि थाईलैंड के पड़ोस में स्थित म्यांमा में अधिक भूकम्प आते हैं, इसलिए उसके असर से इस बार नुकसान का दायरा ज्यादा होने की आशंका है।
दरअसल, इस स्तर के भूकम्प के तुरंत बाद उससे हुई क्षति का आकलन नहीं हो पाता है, लेकिन बाद में आमतौर पर तबाही का दायरा बड़ा दर्ज किया जाता है। यही वजह है कि म्यांमा के बड़े हिस्से में आपातकाल का एलान कर दिया गया। इस तरह की किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में स्वाभाविक ही सबसे पहली जरूरत प्रभावित इलाकों में तुरंत पीड़ितों के लिए हर जरूरी चीजों की सहायता पहुंचाना होती है। इसी के मद्देनजर भारत ने बिना देर किए तबाही पर चिंता जाहिर करते हुए मदद की पेशकश की।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर संभव सहायता देने और अधिकारियों को तैयार रहने को कहा। पिछले कुछ दशकों से कुदरती आपदाओं के स्वरूप में तेजी से बदलाव आता दिख रहा है। भारत में भी आए दिन भूकम्प के झटके किसी बड़ी आशंका के संकेत हो सकते हैं। प्राकृतिक आपदा को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उससे बचाव के पुख्ता इंतजाम करके उससे होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है।