भारत को अपनी सीमाओं पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनमें सामरिक की अपेक्षा आतंकी घुसपैठ, मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध तरीके से प्रवासन आदि की चुनौतियां अधिक जटिल हैं। हालांकि पाकिस्तान की तरफ से ऐसी चुनौतियां ज्यादा मिलती हैं और उस पर निगरानी का तंत्र काफी पुख्ता कर लिया गया है, पर उसे पूरी तरह चाक-चौबंद नहीं कहा जा सकता।
यही वजह है कि अब भी कश्मीर घाटी में आतंकवाद, पंजाब में मादक पदार्थों की तस्करी और पूर्वोत्तर में अवैध प्रवासन पर पूरी तरह अंकुश लगाना संभव नहीं हो पाया है। अब विदेश मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि आतंकवाद की चुनौतियों से निपटने के लिए संपर्क संबंधी कमियों को दूर करने की जरूरत है। वहां अब भी आए दिन घुसपैठ की कोशिशें देखी जाती हैं।
इसकी बड़ी वजह जरूरी संचार तकनीक का उपयोग न हो पाना है। भारत-पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्से में बाड़बंदी है, मगर कई इलाके अब भी ऐसे हैं जहां से उन्हें घुसपैठ का रास्ता बनाने में कामयाबी मिल ही जाती है। उन इलाकों में ड्रोन और अत्याधुनिक निगरानी तकनीकी का सहारा लिया जाता है, मगर वे पूरी तरह कारगर साबित नहीं हो पा रहे।
आतंकवाद पर काबू पाने के लिए जरूरी है कि खुफिया एजंसियों, तमाम सुरक्षाबलों और स्थानीय पुलिस-प्रशासन के बीच परस्पर संपर्क बना रहे। मगर कई जगहों पर इसकी कमी महसूस की जाती है। कई बार देखा गया है कि खुफिया एजंसियों की सूचना पर अमल में कई दिन लग जाते हैं, तब तक आतंकी अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो जाते हैं।
हालांकि घाटी में घुसपैठ पर सख्ती से नजर रखी जाती है, इसके लिए अत्याधुनिक सूचना उपकरणों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है, मगर आतंकवादी संगठन सुरक्षाबलों की रणनीति को भेदने या उनसे बचने के नए-नए तरीके इस्तेमाल करते रहते हैं। पिछले दिनों खुद सेना ने स्वीकार किया था कि आतंकियों ने संचार माध्यमों के बजाय सूचनाएं पहुंचाने के लिए नाबालिगों, महिलाओं आदि का सहारा लेने लगे हैं।
अब उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों में अपने लोगों को प्रवेश दिलाने की कोशिश शुरू की है, ताकि वहां युवाओं को आतंकी संगठनों में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया जा सके। इस तरह आतंकी संगठनों की साजिशों और रणनीतियों का पता लगाने के लिए जिस तरह के सूचना-तंत्र की जरूरत है, वह अभी तक विकसित नहीं हो पाई है।
आतंकवादी और अलगाववादी संगठन प्राय: धन जुटाने के लिए मादक पदार्थों की तस्करी का सहारा लेते हैं। इस मामले में पंजाब से सटी सीमा और पूर्वोत्तर में उनके लिए रास्ता तलाशना आसान हो जाता है। हालांकि सरकार ने दावा किया है कि वह मादक पदार्थों की तस्करी पर काफी कड़ाई की है और आने वाले समय में इस पर पूरी तरह रोक लगाना संभव हो जाएगा। मगर इसका भरोसा नहीं बन पाता।
पिछले कुछ सालों में मादक पदार्थों की भारी-भारी खेप पकड़ी गई हैं, जिससे साबित होता है कि इसका तंत्र काफी जटिल है। इस पर नजर रखने के लिए भी सूचना तंत्र को अत्याधुनिक और ज्यादा भरोसेमंद बनाना जरूरी है। पूर्वोत्तर की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि वहां बांग्लादेश और पाकिस्तान से घुसपैठ करके आना और फिर वहीं बस जाना आसान लगता है। ऐसी गतिविधियों पर पूरी तरह अंकुश लगाना संभव नहीं हो पाया है। ऐसे में संसदीय समिति के सुझावों पर गंभीरता से अमल की उम्मीद की जाती है।