पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का मुद्दा राजनीतिक रंग लेता रहा है। इस पर काबू पाने के लिए हर स्तर पर कदम उठाए जाने की बातें होती हैं, मगर हकीकत यह है कि यह समस्या इस वर्ष भी प्रदूषण के लिहाज से एक बड़ी चुनौती है। एक ओर ठंड आने के मद्देनजर प्रदूषण में बढ़ोतरी से निपटने के उपायों की घोषणाएं की जा रही हैं, दूसरी ओर पंजाब और हरियाणा में इस महीने पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी से प्रदूषण के और जटिल होने की आशंका खड़ी हो रही है।

दरअसल, इस मसले पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि पंद्रह से पच्चीस सितंबर के बीच पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं पिछले वर्ष की समान अवधि के दौरान दस गुना ज्यादा दर्ज की गईं। वहीं हरियाणा में पिछले वर्ष के मुकाबले इसी अवधि में पांच गुना ज्यादा पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं।

सितंबर से नवंबर में होती है पराली जलाने की घटना

पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पराली जलाने की घटनाओं पर नियंत्रण जरूरी है। शीर्ष अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक निगरानी पर जोर दिया था, ताकि यह समस्या फिर न हो। सवाल है कि अगर दिल्ली और आसपास के इलाकों में हर वर्ष प्रदूषण की वजह से आम जनजीवन बाधित हो जाता है और पराली को उसका एक अहम कारक बताया जाता है तो उस पर काबू पाने को लेकर सिर्फ बातें क्यों होती रही हैं! आखिर क्या वजह है कि जहां इस मसले की गंभीरता को रेखांकित करके इसे कम या खत्म करने की बात होती है, वहीं इसके उलट इसमें और ज्यादा बढ़ोतरी ही दर्ज की जा रही है? हालत यह है कि इस संबंध में अदालतों के निर्देश भी अपने अमल के इंतजार में रह जाते हैं।

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गौरतलब है कि सितंबर से शुरू होकर आमतौर पर नवंबर तक पराली जलाने की घटनाएं सामने आती हैं। इसी के आसपास दिल्ली में प्रदूषण भी गहराने लगता है। अगर समय रहते इस मसले की गंभीरता को नहीं समझा गया तो इससे दिल्ली सहित आसपास के राज्यों में भी जन-स्वास्थ्य संबंधी बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है।