मामूली रंजिश के चलते भी जब किसी की हत्या कर देने में अपराधियों के हाथ नहीं कांपते, तो इसे कानून-व्यवस्था की बड़ी नाकामी ही माना जाना चाहिए। बिहार में वैसे तो नीतीश कुमार सुशासन का दम भरते नहीं थकते, मगर हकीकत यह है कि वहां हिंसा का सिलसिला अब भी थमा नहीं है। जैसे अपराधियों पर लगाम कसना सरकार के वश की बात नहीं रह गई है।

इसका ताजा उदाहरण अररिया में एक पत्रकार की हत्या है। चार लोगों ने तड़के पत्रकार का दरवाजा खटखटाया और दरवाजा खोलते ही गोली मार कर उसकी हत्या कर दी। अगर अपराधियों में थोड़ा भी कानून-व्यवस्था का भय होता, तो वे निश्चित रूप से ऐसा करने से हिचकते। पुलिस ने उन चारों आरोपियों को पकड़ लिया है।

चार साल पहले पत्रकार के भाई की भी हुई थी हत्या

बताया जा रहा है कि इस हत्या के पीछे दो और लोगों का भी हाथ था, जो पहले से जेल में बंद हैं। जिस पत्रकार की हत्या की गई, उसके पिता ने प्राथमिकी में लिखवाया है कि चार साल पहले उनके बड़े बेटे को भी इन्हीं लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। रंजिश पुरानी है। उस हत्या का एकमात्र चश्मदीद उसका छोटा भाई यानी पत्रकार ही था और उस पर अपना बयान बदलने का लगातार दबाव बन रहा था। वह अपने बयान से नहीं मुकरा, तो उसे रास्ते से ही हटा दिया गया।

इस घटना से आपराधिक वृत्ति के लोगों की दबंगई का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं माना जा सकता कि जब चश्मदीद पर बयान से मुकरने का दबाव बनाया जा रहा था, तो उसकी जानकारी पुलिस को नहीं रही होगी। मगर पुलिस ने उसकी सुरक्षा का कोई इंतजाम क्यों नहीं किया, हैरानी की बात है।

कानून के मुताबिक अगर किसी गवाह को डरा-धमका कर बयान बदलने पर मजबूर किया जाता है, तो उसकी सुरक्षा के इंतजाम करना पुलिस का काम है। मगर वहां पुलिस तो शायद इस इंतजार में थी कि कोई बड़ी घटना हो जाए! ऐसी खबरें आती रही हैं कि बिहार में किस तरह अपराधी जेलों में रहते हुए भी संगठित अपराधों को अंजाम देते हैं!

फिर जो बाहर घूम रहे हैं, उनसे भला किस प्रकार के भय या फिर कानून के पालन की उम्मीद की जा सकती है। यह ठीक है कि कुछ साल पहले जिस तरह बदमाश दिन-दहाड़े रंगदारी वसूलते, अपहरण कर फिरौती मांगते और मामूली बातों पर गोली दाग दिया करते थे, उसमें कुछ कमी आई है, मगर कानून-व्यवस्था का जैसा भय होना चाहिए, वह बिहार में कहीं नहीं है।

जिस पत्रकार की हत्या कर दी गई, वह निश्चित रूप से जागरूक रहा होगा और पुलिस से भी उसके संपर्क रहे होंगे। जरूर उसे अपने ऊपर हमले की आशंका रही होगी। उसने इस संबंध में पुलिस को बताया भी होगा, मगर आखिरकार उसकी सुरक्षा नहीं हो सकी। देश में पुलिस और अपराधियों का गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है।

बिहार में यह कुछ अधिक ही है। इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बदमाशों ने इस भरोसे के साथ पत्रकार की हत्या कर दी कि बाद में मामले को अपने पक्ष में किया जा सकता है। इस घटना के बाद स्वाभाविक ही बिहार में रोष है।

विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। ऐसे में राज्य सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह इसे गंभीरता से लेगी और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर और चौकसी बरतेगी।