अपने सियासी स्वार्थ साधने की कोशिश में अक्सर पार्टियां और सरकारें संवैधानिक मर्यादाओं के परे जाकर भी वादे और फैसले कर जाती हैं। यही किया हरियाणा सरकार ने। तीन साल पहले उसने कानून बना कर तय कर दिया कि उन सभी निजी कंपनियों, संस्थानों और संस्थाओं को अपने यहां नौकरियों में हरियाणा के युवाओं को पचहत्तर फीसद आरक्षण देना होगा, जिनमें दस से अधिक कर्मचारी काम करते हैं और उनका वेतन तीस हजार रुपए से कम है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया कानून

जिस तरह राजनीतिक दल पूरे देश में जातीय और क्षेत्रीय अस्मिता के मुद्दे पर अपना जनाधार बनाने की कोशिश करते देखे जाते हैं, उसमें हरियाणा सरकार का यह कदम नया नहीं कहा जा सकता। अच्छी बात है कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने उस कानून को रद्द कर दिया। दरअसल, इस आरक्षण का वादा विधानसभा चुनाव के वक्त जननायक जनता पार्टी ने किया था। फिर जब सत्ता गठबंधन में शामिल हुई तो उसने यह कानून भी बना दिया। हर कल्याणकारी सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को रोजी-रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए। मगर इसके लिए संविधान में दिए गए समानता और जीवन जीने के अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दूसरों के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। ऐसी कोई सरहद नहीं बनाई जा सकती, जिसमें दूसरे इलाकों के लोगों का प्रवेश वर्जित हो।

दूसरे राज्यों में नौकरी करने पर सरकार रोक नहीं लगा सकती

भारत में संघीय व्यवस्था है और इसमें हर नागरिक को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वह देश के किसी भी हिस्से में जाकर बस और रोजी-रोजगार के अवसर तलाश सकता है। कोई भी राज्य सरकार इस पर पाबंदी नहीं लगा सकती। मगर राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए क्षेत्रीय अस्मिता का हवाला देते हुए कई बार बाहरी लोगों के खिलाफ स्थानीय लोगों को भड़काने का प्रयास करते देखे जा चुके हैं।

असम और महाराष्ट्र में हो चुके हैं दूसरे राज्यों को लेकर विवाद

असम और महाराष्ट्र इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। असम में बिहारी मजदूरों पर यह कह कर हमला किया गया और उन्हें वहां से भगाने का प्रयास हुआ था कि उनकी वजह से असम के युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाता। इसी तर्क पर महाराष्ट्र में भी दूसरे प्रदेशों से जाकर बसे या किसी रोजी-रोजगार में लगे लोगों पर हमले किए गए थे। इस संकीर्ण सोच को रोपने का अवसर उन सभी इलाकों में उपलब्ध होता है, जहां उद्योग-धंधे और रोजी-रोजगार के अवसर अधिक हैं। हालांकि बहुत सारी जगहों पर ऐसी विभेदकारी कोशिशें सफल नहीं हो पातीं।

हरियाणा में भी उद्योग-धंधे बहुत हैं, जहां दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में आकर लोग काम करते हैं। इस तरह जजपा के लिए हरियाणा के लोगों में यह भाव भरना आसान हो गया कि स्थानीय लोगों का हक बाहरी लोग छीन रहे हैं।

निजी कंपनियां और संस्था-संस्थान अपनी जरूरत के हिसाब से कौशल आदि का आकलन करते हुए कर्मचारी नियुक्त करते हैं। उसमें पचहत्तर फीसद स्थानीय लोगों को भरने की अनिवार्यता लागू करने से उन्हें कुशल कर्मचारियों के चुनाव में अड़चन आना स्वाभाविक है। इसलिए कंपनियों ने इस कानून के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया था कि इससे उनकी उत्पादकता और कार्य-कुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे संविधान के मूल उद्देश्य का हनन तो हो ही रहा था। अगर सभी राज्य सरकारें इसी संकुचित सोच के साथ काम करने लगें, तो देश का संघीय ढांचा ही टूट जाएगा। हमारी मिश्र और समावेशी संस्कृति भी खत्म हो जाएगी। रोजगार के लिए योग्यता और कुशलता के बजाय क्षेत्रीयता कोई पैमाना नहीं होना चाहिए।