यह विडंबना ही रही है कि किसी अपराध के दोषी को जेल में सजा काटने के लिए भेजा जाता है, लेकिन वहां वह कई ऐसी सुविधाएं हासिल कर लेता है, जो गैरकानूनी होती हैं। यानी बाहर कानून को ताक पर रख कर वह किसी अपराध को अंजाम देता है और इसके बदले जब उसे सजा दी जाती है, तो वह जेल में भी वक्त काटने के लिए गैरकानूनी रास्ता ही अख्तियार करता है।

इसे लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं कि कानून को धता बता कर जेल में बंद किसी कैदी को नियमों के खिलाफ मोबाइल फोन या टीवी जैसी अन्य सुविधाएं कैसे मिल जाती हैं और उसके लिए कौन जिम्मेदार है। आखिर जेल के भीतर किसी कैदी के पास अलग से निजी फोन या अन्य साधन पहुंचते कैसे हैं? जाहिर है, जेल की सुरक्षा व्यवस्था के लिए तैनात तंत्र में किसी स्तर पर या तो चूक होती है या फिर किसी कर्मचारी की मिलीभगत, जिसकी वजह से कैदी के पास फोन पहुंचा दिया जाता है। यह स्थिति एक तरह से सुरक्षित चारदिवारी मानी जाने वाली जेलों के निगरानी तंत्र पर सवालिया निशान है।

अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मसले से निपटने के लिए जेल कानून का एक नया मसविदा तैयार किया है, जिसमें कैदियों पर निगरानी के लिए प्रमुख रूप से तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। इस क्रम में एक अहम सुझाव यह है कि अगर किसी कैदी के पास मोबाइल फोन पाया जाता है तो उसे तीन साल के कारावास की सजा दी जाएगी।

जेलों में अपराधियों के बीच हिंसक टकराव की अनेक घटनाओं को देखते हुए मसविदे में विभिन्न अपराध के कुछ दोषियों को उनकी प्रकृति और जोखिम के मुताबिक अलग-अलग रखने की बात भी कही गई है। प्रतिबंधित वस्तुओं की तलाश में कैदी की नियमित तलाशी ली जाएगी। एक प्रावधान यह है कि किसी सजायाफ्ता कैदी को ‘इलेक्ट्रानिक ट्रैकिंग’ उपकरण पहनने की शर्त पर छुट्टी पर बाहर भेजा जा सकता है, ताकि उसकी आवाजाही और अन्य गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।

इसमें नियमों के उल्लंघन पर भविष्य में छुट्टी के अयोग्य घोषित किया जाना और छुट्टी रद्द किया जाना भी शामिल है। देश की जेलों में बंद कैदियों के मोबाइल फोन या अन्य उपकरणों का इस्तेमाल करने से लेकर अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के बारे में जैसी खबरें आती रही हैं, उसके मद्देनजर मंत्रालय के सुझाव महत्त्वपूर्ण हैं।

कहने को जेल में प्रवेश से लेकर बाहर निकलने तक पर सख्त निगरानी होती है। मगर ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहे हैं, जिसमें किसी कैदी के पास से फोन या अन्य सामान जब्त किए गए। फिर जेल में बंद होने के बावजूद किसी कैदी के बाहर गिरोह या आपराधिक गतिविधियों को संचालित करने या उसे अंजाम देने की घटनाएं भी अक्सर चिंता की वजह बनती रही हैं।

आधुनिक तकनीकी तक सजायाफ्ता अपराधियों की पहुंच ने भी कानूनों को ताक पर रखने के मामलों में इजाफा किया है। जेलों के घोषित सुरक्षा तंत्र के बरक्स यह जेलकर्मियों की मिलीभगत के जरिए और अधिकारियों की अनदेखी की वजह से ही संभव हो पाता होगा कि किसी सजायाफ्ता कैदी के पास मोबाइल, अन्य उपकरण या सुविधा के साधन पहुंच जाते हैं।

इसमें अपराधियों के प्रभावशाली लोगों से जुड़े तार और उनके रसूख की भी भूमिका होती है। ऐसी स्थिति में जेलों के भीतर गैरकानूनी गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए कानूनी स्तर पर सख्ती जरूर बरती जाए, लेकिन अगर उनके अमल को लेकर कोताही होगी, जेलों के अपने तंत्र को ईमानदार और दुरुस्त नहीं बनाया जाएगा तो नियम-कायदों की अहमियत सिर्फ कागजों में सिमटी रहेगी।