यह एक स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है कि जब भी राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला उठता है, तो सभी राजनीतिक दल अपने नफे-नुकसान से ऊपर उठ कर एकजुटता दिखाते और सार्थक समाधान के उपाय तलाशते हैं। पहलगाम आतंकी हमले पर राजनीतिक दलों की एकजुटता और सरकार को खुले मन से समर्थन इस अर्थ में सराहनीय है। इस मामले में सरकार ने भी लचीला रुख दिखाया और स्वीकार किया कि सुरक्षा व्यवस्था में उसकी तरफ से चूक हुई है। दरअसल, विपक्षी दल इसी मुद्दे पर लगातार सवाल पूछ रहे थे। सरकार ने उसे टालने का प्रयास नहीं किया और अपनी कमजोरी को स्वीकार किया। इससे आगे की रणनीति पर काम करने में आसानी होगी।

सरकार ने इस मसले पर देश के सभी राजनीतिक दलों को अपने साथ जोड़ लिया

सबसे बड़े विपक्षी दल के अध्यक्ष ने कहा कि इस मसले पर सरकार जो भी फैसला करेगी और कदम उठाएगी, उसमें उनकी पार्टी उसके साथ खड़ी रहेगी। अन्य सभी विपक्षी दलों ने भी सरकार को यही भरोसा दिलाया। निस्संदेह इससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक सशक्त संदेश गया और इस आतंकी हमले को लेकर सियासत करने का सिलसिला भी समाप्त हो गया है। अच्छी बात है कि सरकार ने इस मसले पर देश के सभी राजनीतिक दलों को अपने साथ जोड़ लिया।

हालांकि ऐसे नाजुक मामलों में सूचनाएं और संसाधन सरकार के पास ही होते हैं और आगे के कदम उसे ही उठाने होते हैं, पर वह विपक्षी दलों को नजरअंदाज नहीं कर सकती। जिन मामलों में पूरे देश के प्रतिनिधित्व की जरूरत होती है, उनमें उन्हें साथ लेना ही चाहिए।

यही परंपरा भी रही है। अगर ऐसा न होता, तो बेवजह सियासी रस्साकशी शुरू होती, जो कि किसी भी रूप में अच्छा नहीं कहा जा सकता। विपक्षी दलों ने अपनी लोकतांत्रिक मर्यादा निभाई है, अब सरकार पर है कि वह किस तरह उनकी भावनाओं का मान रखती है। यों, ऐसे मौकों पर सरकार के ऊपर कई अतिवादी किस्म के दबाव भी बनते हैं, जो कि बन भी रहे हैं। पर क्या देश के हित में है, उसका फैसला अंतिम रूप से सरकार को ही करना पड़ता है।

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विपक्षी दलों की तरफ से एक सुझाव आया कि सरकार को सीमा पार आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की कोशिश करनी चाहिए। सभी ने पाकिस्तान पर शिकंजा कसने के लिए सरकार के फौरी फैसलों की सराहना की है। पर देश के बहुत सारे लोगों की भावना पाकिस्तान के खिलाफ सख्त और निर्णायक कदम उठाने की है। भारत के फैसलों के जवाब में पाकिस्तान ने जो कदम उठाए हैं, उससे जाहिर है कि वह रार लेना चाहता है।

भारत के सामने पाकिस्तान की हैसियत बहुत मामूली है। वह इस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। जबकि भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और दुनिया के देश इसकी तरफ सम्मान की नजर से देखते हैं। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ा हुआ है। वहां की हुकूमत खुद अपनी अहमियत के लिए जूझ रही है। ऐसे में भारत को उसे सबक सिखाने के लिए बहुत ठंडे दिमाग से फैसला करना होगा। पुलवामा की घटना के बाद जिस तरह उस पर निरंतर दबाव बनाए रखने की जरूरत थी, उस पर फिर से विचार किया जा सकता है। आतंकवाद से निपटने के मसले पर भारत को दुनिया के अनेक देशों का समर्थन हासिल है, इसलिए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को खत्म करने को लेकर रणनीति बनाना महत्त्वपूर्ण हो सकता है। सर्वदलीय बैठक में सुझाए गए बिंदुओं को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।