दुनिया भर में अलग-अलग देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिस तरह के खेमों में बंट रहे हैं, जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दे खड़े हो रहे हैं, उसमें लगातार इस बात की आशंका खड़ी हो रही है कि आने वाले वक्त में कहीं युद्ध के मोर्चों का विस्तार न हो जाए! रूस और यूक्रेन या फिर इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध ने इस आशंका को गहरा किया है। ऐसे में भारत ने जिस तरह युद्ध के विरुद्ध खड़े होने और सार्वजनिक रूप से शांति के लिए अपनी नीति घोषित करने का साहस किया है, उसकी अपनी अहमियत है।

पहले रूस और उसके बाद आस्ट्रिया के दौरे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तरह से स्पष्ट रूप से दुनिया भर में युद्ध की परिस्थितियों को खत्म करके शांति की वकालत की। बुधवार को उन्होंने साफ लहजे में कहा कि यह युद्ध का समय नहीं है; भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बल्कि बुद्ध दिया है। यह हर जगह शांति और समृद्धि का आकांक्षी है और इक्कीसवीं सदी में अपनी भूमिका को पहले से ज्यादा मजबूत बनाएगा।

यों दोनों देशों की यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने वहां के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत की और द्विपक्षीय सहयोग की नई संभावनाओं पर विचार किया। मगर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बनते खेमों के बीच जैसे हालात बन रहे हैं, उसमें वैश्विक स्तर पर शांति के पक्ष में भारत का खड़ा होना अहम है। दरअसल, वह रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध हो या फिर इजराइल और हमास के बीच, भारत का यह रुख जगजाहिर रहा है कि वह युद्ध का समर्थन नहीं करता। वहीं आतंकवाद के मसले पर भी भारत की साफ राय है कि यह किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए भी भारत के प्रधानमंत्री ने पहले भी कई बार बातचीत का रास्ता अपनाने की ही सलाह दी है। आस्ट्रिया दौरे में भी अगर उन्होंने भारत के शांति का पक्षधर होने की बात की तो यह स्वाभाविक और अपनी नीतियों पर ही कायम रहना है।

यह छिपा नहीं है कि जहां रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के संकट में कोई कमी नहीं दिख रही है, वहीं अमेरिका और उसके कई सहयोगी देश नाटो की बैठक करके एक अलग ही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह के हालात में भारतीय प्रधानमंत्री की रूस और आस्ट्रिया की यात्रा और इस दौरान दिए गए संदेश का मतलब साफ है। विश्व का जो भी हिस्सा युद्ध या आतंकवाद से प्रभावित है, वहां सामान्य विकास की तो दूर, जनजीवन के बाधित होने और मानव अधिकारों का हनन आम है। ऐसे में दुनिया की महाशक्तियां अगर लोकतंत्र बचाने की बात करती हैं, तो यह अपने आप में एक विरोधाभासी स्थिति है।

युद्ध और आतंकवाद को खत्म किए बिना और शांति कायम किए बगैर कहीं भी मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवन नहीं दिया जा सकता। इस समूचे संदर्भ में भारत का पक्ष हमेशा से स्पष्ट रहा है। यही वजह है कि भारत ने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि यहां के लोग बुद्ध और उनके विचार के रास्ते पर चल कर दुनिया भर में शांति और सौहार्द की उम्मीद करते हैं। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जिस तरह की खेमेबंदी हो रही है, युद्ध के नए मोर्चे खुलने की आशंका खड़ी हो रही है, उसमें भारत ने शांति के पक्ष में अपनी भूमिका की निभाने की जो घोषणा की है, उसकी जरूरत दुनिया भर को है।