जीएसटी विधेयक को लेकर चले आ रहे गतिरोध के दूर होने की संभावना से उद्योग-व्यापार जगत ने राहत की सांस ली होगी। यह अप्रत्यक्ष करों की प्रणाली में अब तक के सबसे बड़े बदलाव की कवायद है। आर्थिक सुधार का यह एक बहुत महत्त्वाकांक्षी प्रस्ताव है। इसे लेकर कॉरपोरेट जगत के उत्साह की झलक एक बार फिर दिखी, जब सरकार और विपक्ष के बीच रजामंदी के आसार दिखने पर बीते शुक्रवार को सेंसेक्स चढ़ गया।
अपने अब तक के डेढ़ साल के कार्यकाल में शायद पहला मौका था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी मसले पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधी चर्चा के लिए आमंत्रित किया। दरअसल, सरकार ने अगले साल एक अप्रैल से जीएसटी को लागू करने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। यह तभी संभव है जब जीएसटी से संबंधित विधेयक पर इसी सत्र में संसद की मुहर लगे। लोकसभा में यह विधेयक पारित हो चुका है, पर राज्यसभा में अटका हुआ है। राज्यसभा में राजग का बहुमत नहीं है।
फिर, यह संविधान संशोधन विधेयक है और सरकार जानती है कि विपक्ष के सहयोग के बगैर न यह पारित हो पाएगा न इसे क्रियान्वित किया जा सकेगा। मानसून सत्र के अनुभव से भी यह सबक मिला होगा। पिछले सत्र का काफी समय ललित मोदी प्रकरण और व्यापमं घोटाले पर विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया था। बहरहाल, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से बातचीत करके जीएसटी पर कांग्रेस से तल्खी दूर करने की प्रधानमंत्री की पहल सराहनीय है। अभी तक भाजपा इस तरह पेश आ रही थी जैसे जीएसटी की फिक्र केवल उसे है। जबकि इसकी पहल यूपीए सरकार ने की थी।
बरसों की कवायद के बाद भी जीएसटी को कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सका, क्योंकि राज्यों के कई एतराज थे। भाजपा-शासित गुजरात ने भी कई दफा अपनी आपत्तियां जाहिर कीं, उस वक्त भी जब नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री थे। इसलिए विवाद केंद्र और संसदीय विपक्ष के बीच उतना नहीं, जितना केंद्र और राज्यों के बीच रहा है। जीएसटी के तहत राजस्व का नुकसान होने की राज्यों की आशंका दूर करने के लिए विधेयक में शुरू में उसकी भरपाई की व्यवस्था की गई। फिर भी तमाम राज्य राजी नहीं हुए तो भरपाई की अवधि बढ़ाई गई।
उनकी जिद पर कई वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से बाहर करना पड़ा। प्रस्तावित कर-प्रणाली के तहत निर्णय प्रक्रिया में राज्यों को भी शामिल करने का केंद्र ने भरोसा दिलाया और इसके लिए विधेयक में जीएसटी परिषद के गठन का प्रावधान किया। लेकिन अब भी कई मसले अनसुलझे हैं, जैसा कि कांग्रेस की शिकायत से जाहिर है। कांग्रेस चाहती है कि जीएसटी की दर अठारह फीसद से अधिक न की जाए, एक फीसद अतिरिक्त कर का प्रावधान समाप्त कर दिया जाए और विवाद निपटारा प्राधिकरण स्थापित किया जाए।
इन मांगों को राजनीतिक वितंडा कह कर खारिज नहीं किया जा सकता। इन पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। कॉरपोरेट जगत को उम्मीद है कि जीएसटी से कोराबार में सहूलियत होगी। यह दावा भी किया जाता रहा है कि जीडीपी की दर बढ़ाने में जीएसटी मददगार साबित होगा। मगर महंगाई और राज्यों के राजस्व के कोण से भी इस पर विचार करना जरूरी है।