यों भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में जिस तरह के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, उसमें कड़वाहट बढ़ने की बातें अब हैरान नहीं करतीं। लेकिन इसका असर किसी बहुपक्षीय सम्मेलन और उसमें दोनों देशों के प्रतिनिधियों के व्यवहार तक पर सार्वजनिक रूप से दिखेगा, इसका अनुमान शायद ही किसी को रहा होगा। यह पहले से तय था कि सार्क देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरह की द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी। लेकिन सार्क के एजेंडे में चूंकि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और दक्षिण एशिया में सुरक्षा संबंधी चुनौतियां जैसे विषय शामिल थे, इसलिए इस मसले पर अकेले भारत नहीं, बल्कि अफगानिस्तान ने भी अपनी बात रखी। लेकिन विचित्र है कि दुनिया भर में काफी गंभीर समस्या बन चुके आतंकवाद पर पाकिस्तान ने अपना पक्ष रखते हुए उसके कारण और निवारण पर बात करने के बजाय कश्मीर का अपना पुराना राग अलापा।

हालांकि भारत से संबंधित किसी मुद्दे के बहाने, बिना संदर्भ के भी, कश्मीर का मसला उठा देना मानो पाकिस्तान की फितरत में शामिल है, लेकिन किसी बहुपक्षीय सम्मेलन में आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या को कश्मीर के सवाल में उलझा देना उसकी मंशा के बारे में बताने के लिए काफी है। भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अगर सार्क सम्मेलन में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई तो ठीक ही किया। उन्होंने दो टूक कहा कि आतंकवादी समूहों को समर्थन देना और उनका महिमामंडन बंद होना चाहिए; आतंकवादी को किसी भी हालत में शहीद का दर्जा नहीं दिया जा सकता। उनकी साफगोई और बेलाग वक्तव्य की संसद में सभी पार्टियों ने तारीफ की।

राजनाथ सिंह के भाषण ने पाकिस्तान को आईना दिखाने का काम किया। इसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान के मंत्री अपने व्यवहार को सहज बनाए नहीं रख सके। राजनाथ सिंह का जब अपने पाकिस्तानी समकक्ष चौधरी निसार अली खान से आमना-सामना हुआ तब औपचारिकता निबाहने के लिए भी ठीक से हाथ नहीं मिले। यही नहीं, सम्मेलन में आए अतिथियों के लिए आयोजित भोज से मेजबान खुद चले गए, इसलिए राजनाथ सिंह ने खाना भी नहीं खाया। यह भी खबर आई कि पाकिस्तान के मीडिया ने सम्मेलन में राजनाथ सिंह के भाषण को ‘ब्लैक आउट’ किया।

हालांकि इस मुद््दे के तूल पकड़ने के बाद भारत की ओर से यह स्पष्टीकरण आया कि सार्क की मानक नीति के मुताबिक उद्घाटन भाषण के सत्र के प्रसारण की इजाजत मीडिया को है, लेकिन आंतरिक बैठकों में मीडिया को अलग रखा जाता है। यानी वहां के मीडिया ने किसी भी देश के मंत्री के भाषण का सीधा प्रसारण नहीं किया। जाहिर है, तल्खी से पैदा माहौल में कुछ गैरजरूरी बातें भी फैलीं। जो हो, दोनों देशों के बीच तनाव अगर उच्च पदों पर बैठे लोगों के औपचारिक व्यवहार तक पर असर डालने लगे तो यह चिंता का विषय है। आखिर जिद, निराधार बातें और बेमानी आरोप आतंकवाद की समस्या का समाधान नहीं हो सकते। भारत के साथ-साथ पाकिस्तान भी जिस तरह आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है, उसमें आपसी बातचीत की ज्यादा से ज्यादा गुंजाइश निकाली जानी चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के रुख को देख कर लगता नहीं कि फिलहाल समस्या के हल की ओर बढ़ने में उसकी कोई दिलचस्पी है!