जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने संबंधी प्रस्ताव पास होना एक तरह से सत्तारूढ़ दल का अपने वादे का निर्वाह करना ही है। इस बार वहां के विधानसभा चुनाव में अनुच्छेद 370 की बहाली प्रमुख मुद्दा था। इसे नैशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के अलावा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने भी अपने वादों में शामिल किया था। दरअसल, अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा स्वत: समाप्त हो गया था।
राज्य की शक्तियां उपराज्यपाल के पास
फिलहाल जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश है। इसलिए वहां शासन संबंधी बहुत सारी शक्तियां उपराज्यपाल में निहित हैं। जबकि वहां की सरकार का वादा है कि वह लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसा तभी संभव होगा जब उसका विशेष राज्य का दर्जा बहाल हो।
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प्रस्ताव में भी कहा गया है कि विधानसभा विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटियों को बहाल करने की मांग करती है। इनसे जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा होती है। हम इसे एकतरफा हटाए जाने से चिंतित हैं। विधानसभा केंद्र सरकार से अनुरोध करती है कि वह विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने के बारे में जम्मू-कश्मीर के निर्वाचित प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करे और एक संवैधानिक रास्ता निकाले।
विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग
प्रस्ताव में कहीं भी अनुच्छेद 370 की बहाली की बात नहीं कही गई है। यानी जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस मसले को तूल देने के बजाय विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग उठाई है। उधर, जम्मू-कश्मीर मंत्रिमंडल ने पूर्ण राज्य के दर्जा बहाल करने का प्रस्ताव उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र को पहले ही भेज दिया था। केंद्र सरकार भी कहती आ रही है कि बहुत जल्दी पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा।
चुनाव की तारीखों में बदलाव से निर्वाचन आयोग पर उठ रहे सवाल
मगर असल अड़चन इसी मसले पर आ सकती है कि उसके विशेष राज्य के दर्जे को किस रूप में सुरक्षित रखा जाए। जिस कश्मीरियत की बात की जाती रही है, उसे इसी के जरिए सुरक्षित रखने का भरोसा दिलाया जा सकता है। इस संवैधानिक पहलू पर केंद्र और राज्य सरकार किस तरह तालमेल बिठा पाती हैं, देखने की बात है। इस मसले को मिल-बैठ कर ही हल किया जाना चाहिए, बेवजह राजनीतिक रंग देने से यह और उलझ सकता है।