सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट में पर्चाफोड़ हुआ है, मगर इसमें देखना होगा कि इसका दायरा कितना बड़ा है। दरअसल, विद्यार्थियों की तरफ से दायर याचिकाओं में दुबारा नीट परीक्षा कराने की मांग की गई है। इस संबंध में अदालत ने एनटीए और सीबीआइ से पूछा है कि इसका दायरा कितना बड़ा है। अगर दो छात्रों को इसका लाभ मिला है, तो पूरी परीक्षा को रद्द करने का आदेश नहीं दिया जा सकता, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से पर्चाफोड़ हुआ है तो यह जंगल की आग की तरह है। अगर परीक्षा की शुचिता ‘नष्ट’ हुई है तो दुबारा परीक्षा का आदेश देना होगा। हालांकि एनटीए और सरकार अंत तक अपनी दलील पर अड़े रहे कि जिन अभ्यर्थियों को कृपांक दिया गया था, उन्हें दुबारा परीक्षा देने का विकल्प दिया गया और अब नतीजे दुरुस्त हैं। मगर अदालत ने एनटीए से पर्चाफोड़ की प्रकृति और उन केंद्रों के नाम बताने को कहा है, जहां पर्चाफोड़ हुआ। सीबीआइ से पूछा है कि उसकी जांच में क्या तथ्य हाथ लगे हैं। दुबारा परीक्षा की मांग करने वाले छात्रों से भी अपने पक्ष में तर्क देने को कहा है।

इस मामले में अगली सुनवाई गुरुवार को होनी है। लगता नहीं कि एनटीए के पास अपने बचाव में कोई पुख्ता दलील बची है। वह शुरू से यही कहती आ रही है कि इस परीक्षा में पर्चाफोड़ हुआ ही नहीं। केंद्रीय शिक्षामंत्री भी कहते रहे कि परीक्षा से पहले पर्चे बाहर नहीं गए। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि पर्चाफोड़ तो हुआ है। परीक्षा के दिन से ही विद्यार्थी आरोप लगा रहे हैं कि इसमें नकल कराई गई, मगर एनटीए उसे खारिज करता रहा। फिर जब नतीजे आए तो अभूतपूर्व ढंग से सड़सठ विद्यार्थियों को पूरे अंक मिले देखे गए। यह भी तथ्य उजागर हो गया कि कुछ केंद्रों पर ही ऐसे विद्यार्थियों की संख्या अधिक थी। एनटीए दलील देता रहा कि चूंकि जिन विद्यार्थियों को पर्चा मिलने में देर हुई उन्हें कृपांक दिए गए, इसलिए उनके अंक बढ़ गए। मगर इस सवाल का उसके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था कि कृपांक देने का उसका आधार क्या था। फिर दबाव बना, तो पंद्रह सौ से अधिक कृपांक पाए विद्यार्थियों की दुबारा परीक्षा ली गई।

इस परीक्षा में करीब चौबीस लाख विद्यार्थी बैठे थे। इसके लिए उन्होंने महीनों कड़ी मेहनत से तैयारी की थी। अगर दुबारा परीक्षा होगी, तो उन्हें फिर से उसी प्रक्रिया से गुजरना होगा। मगर विडंबना है कि न तो एनटीए ने इस मामले को गंभीरता से लिया और न सरकार ने। कहां तो सरकार को यह भरोसा कायम करना चाहिए कि इस तरह की किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में कोई धांधली हो ही नहीं, वह खुद इस पर पर्दा डालने में जुटी रही। अगर वह सचमुच इसे लेकर गंभीर होती, तो मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाने ही न पाता। सरकार के इस रवैए से पर्चाफोड़ करने वाले नकल माफिया को प्रश्रय ही मिलेगा और वे काबिल छात्रों की हकमारी कर पैसे के बल पर अयोग्य विद्यार्थियों को चिकित्सा जैसे संवेदनशील महकमे में प्रवेश दिलाते रहेंगे। जब तक सरकार सच्चाई स्वीकार करने का साहस नहीं दिखाती और नकल कराने वालों के खिलाफ गंभीरता से सख्ती नहीं बरतती, तब तक ऐसी समस्याओं से पार पाना कठिन बना रहेगा।