नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की भारत यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों में आई खटास दूर करने में अहम भूमिका निभाई है। यद दावा करना शायद सही नहीं हो कि सारे मतभेद दूर हो गए हैं, पर कुछ महीनों से तनातनी का जो सिलसिला चल रहा था उस पर जरूर विराम लग गया है। इस पर स्वाभाविक ही दोनों पक्षों ने संतोष जताया है। दरअसल, भारत और नेपाल के संबंध इतने विशिष्ट हैं कि अन्य देशों से उनकी तुलना नहीं की जा सकती।

भारत और नेपाल पड़ोसी तो हैं ही, सभ्यता और संस्कृति के लिहाज से उनमें गहरी साझेदारी भी रही है। दोनों तरफ के नागरिकों के स्तर पर संपर्क और संबंध का ऐसा ताना-बाना किसी और देश के साथ नहीं है। दोनों देशों के आपसी रिश्तों को गहराई देती एक मैत्री संधि है जो दशकों से चली आ रही है। दोनों की आपस की सीमाएं खुली हुई हैं। भारत ने नेपाल के लोगों को अपने यहां शिक्षा ग्रहण करने, रहने और काम करने की छूट दे रखी है।

यह परंपरा रही है कि नेपाल के प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनते हैं। यह भी आपसी संबंधों की विशिष्टता का ही एक परिचायक है। ओली ने पिछले साल अक्तूबर में प्रधानमंत्री का पद संभाला था। वे और पहले भारत आ सकते थे। देरी हुई तो नेपाल के नए संविधान के खिलाफ मधेसियों के आंदोलन और नाकाबंदी की वजह से। बीच में यह खबर भी आई कि अगर नाकेबंदी जारी रही तो ओली अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के बजाय चीन को चुन सकते हैं। पर अंतत: नाकेबंदी खत्म हो गई, और ओली के लिए परिपाटी के मुताबिक पहले भारत को गंतव्य बनाने का रास्ता साफ हो गया।

दरअसल, पिछले महीने नेपाल की संसद ने संविधान में संशोधन का प्रस्ताव पारित कर मधेसियों की प्रमुख शिकायत दूर कर दी। मधेसी इस बात से नाराज थे कि नए संविधान के तहत नेपाल के प्रांतों का जो स्वरूप सोचा गया है और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का जो तरीका तय किया गया है, वह उनके प्रति न्यायसंगत नहीं है। नाकेबंदी खत्म करने में इस संविधान संशोधन के अलावा, हो सकता है भारत की दिलचस्पी ने भी कुछ भूमिका निभाई हो, क्योंकि भारत हरगिज नहीं चाहता रहा होगा कि ओली पहले चीन का रुख करें।

बहरहाल, दिल्ली में दिए एक व्याख्यान में ओली ने कहा कि उनका देश भारत या चीन ‘कार्ड’ नहीं खेलता, और एक देश की तुलना में दूसरे का पक्ष लेने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि यह व्यावहारिक नीतिगत विकल्प नहीं है। फिर ओली ने यह भी दोहराया कि भारत और नेपाल के बीच अब कोई गलतफहमी नहीं है। यानी नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद पिछले पांच महीनों में आपसी संबंधों में जो तनाव तारी रहा वह अब दूर हो गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ओली की मुलाकात में भी इसके संकेत मिले। भारत ने नेपाल के नए संविधान का स्वागत नहीं किया था, पर ओली से भेंट के दौरान मोदी ने उसे एक बड़ी उपलब्धि बताया। दोनों देशों के रिश्ते फिर से पटरी पर आने का एक प्रमाण इस मौके पर हुए सात समझौते भी हैं, जिनमें भूकम्प से हुई तबाही के मद्देनजर पुनर्निर्माण और तराई क्षेत्र में सड़कों की हालत सुधारने के लिए भारत की ओर से दी जाने वाली वित्तीय मदद भी शामिल है।