इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि लोग किसी बीमारी या आपात अवस्था में इलाज और जान बचाने की भूख में अस्पताल का रुख करें, लेकिन वहां एक तरह से मौत बंट रही हो! महाराष्ट्र में नांदेड़ के एक सरकारी अस्पताल में बीते दो दिनों में जैसा मंजर सामने आया, वह अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि जहां मरीजों की जान बचाना सबसे बड़ा दायित्व होना चाहिए, वहां लापरवाही का आलम एक त्रासदी खड़ी कर रहा है।

गौरतलब है कि नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में इकतीस लोगों की मौत हो गई, जिनमें सोलह बच्चे थे। एक ओर एक-एक करके मरीजों की जान जाती रही और दूसरी ओर अस्पताल प्रशासन की लापरवाही कायम रही। जिस स्थिति पर अस्पताल प्रशासन को जवाब देना चाहिए, उस पर यह अफसोसनाक प्रतिक्रिया आई कि वहां न दवाइयों की कमी है, न डाक्टरों की। सटीक इलाज के बावजूद मरीजों पर कोई असर नहीं हुआ। बच्चों की मौत के मामले में एक तरह से रटा-रटाया जवाब पेश किया गया कि उनकी स्थिति पहले से ही बेहद कमजोर थी और उनका वजन कम था।

हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि नांदेड़ के बाद नागपुर के भी एक सरकारी अस्पताल में चौबीस घंटों में कई लोगों के मरने की खबर आई। सवाल है कि इतनी बड़ी तादाद में मरीजों की मौत को क्या स्वाभाविक घटना मान लिया जाए? अगर किसी अस्पताल में दो दिनों के भीतर इतनी संख्या में लोगों की मौत होती है तो क्या यह किसी अव्यवस्था और लापरवाही का नतीजा नहीं है? जब मामले ने तूल पकड़ लिया तब सरकार की ओर से इसकी जांच कराने की बात कही गई है।

लेकिन क्या यह राज्य में इस तरह की कोई पहली घटना है? ज्यादा दिन नहीं हुए जब महाराष्ट्र के ही ठाणे जिले के एक अस्पताल में अड़तालीस घंटे में अठारह लोगों की मौत हो गई थी। आखिर सबक लेने के लिए कितनी घटनाओं की जरूरत होती है? इस तरह की हर घटना के बाद यह सफाई दी जाती है कि मरीज की बीमारी गंभीर अवस्था में पहुंच गई थी।

नांदेड़ के जिस अस्पताल में मरीजों के मरने की घटना सामने आई है, वह करीब अस्सी किलोमीटर के दायरे में एकमात्र सरकारी अस्पताल है और वहां दूर-दूर से मरीज इलाज के लिए आते हैं। अगर किसी वजह से मरीजों की संख्या बढ़ जाती है तो दवा और अन्य संसाधनों के मामले में समस्या खड़ी हो जाती है। आरोप यहां तक सामने आए कि तपेदिक के मरीजों को अपने स्तर ही दवा खरीद कर खाने के लिए कहा जाता है।

सवाल है कि ऐसी स्थिति में किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी? यों महाराष्ट्र की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को अपेक्षया बेहतर स्थिति में माना जाता रहा है। लेकिन विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि पिछले एक साल से स्थिति तेजी से बिगड़ती गई है और आज स्वास्थ्य विभाग सबसे उपेक्षित महकमों में गिना जाता है। कोई भी अस्पताल लोगों का जीवन बचाने के लिए होता है।

अगर वहां एक साथ इतनी संख्या में लोगों की जान जाने लगे तो इसके पीछे अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही, संसाधनों का अभाव, डाक्टरों की कमी आदि बहुस्तरीय समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन इस तरह अप्रत्याशित तरीके मरीजों की जान जाने की घटनाएं अक्सर सामने आने के बावजूद सरकार को यह सुनिश्चित करना जरूरी नहीं लगता कि उचित इलाज और जीवन रक्षा की जगहों को ऐसी त्रासद जगहों के रूप में तब्दील होने से हर हाल में बचाया जाए।