हमारी राजनीति की सबसे बड़ी खामी शायद यही है कि इसमें दिनोंदिन गंभीर मसलों का लोप होता जा रहा है। इसी का दूसरा पहलू यह है कि जब-तब गैर-जरूरी मुद्दों को तूल दिया जाता है। इसका ताजा उदाहरण प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर खड़ा किया गया विवाद है। इसका शुरुआती छोर कहीं भी रहा हो, पर इसे हवा दी आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने। उन्होंने खुलेआम प्रधानमंत्री की शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाए, कहा कि उनकी डिग्री के बारे में स्थिति साफ की जानी चाहिए। इसके लिए उन्होंने सूचना आयोग का भी दरवाजा खटखटाया। आयोग ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया यानी कहा कि प्रधानमंत्री की शैक्षिक योग्यता के बारे में जानकारी मुहैया कराई जाए। आरोप या मांग को बार-बार दोहराए जाने से पैदा हुए शक का निवारण जरूरी था। कुछ दिन पहले गुजरात विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी कर बताया कि प्रधानमंत्री यानी नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने उसके यहां से राजनीति शास्त्र में एमए किया था। यह बयान आते ही केजरीवाल ने कहा था कि स्थिति स्पष्ट कर दी गई है, लिहाजा अब विवाद को यहीं समाप्त मान लिया जाना चाहिए।
मगर फिर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने प्रधानमंत्री की बीए की डिग्री को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए, कहा कि मोदी ने एमए किया था तो बीए भी कहीं से किया होगा, उसके प्रमाणपत्र कहां हैं! आखिरकार भाजपा की तरफ से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोर्चा संभाला और संवाददाता सम्मेलन बुला कर प्रधानमंत्री की एमए तथा बीए की डिग्रियां व अंकपत्र दिखाए। सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों के मुताबिक मोदी ने बीए दिल्ली विश्वविद्यालय से किया था। पर इतने से आप नेताओं को संतोष नहीं है। बाद में नाम में कुछ बदलाव हो जाने या अंकपत्र और डिग्री में वर्ष का फर्क बता कर वे अब भी इस चर्चा को गरमाए रखना चाहते हैं। अगर उनका मकसद प्रधानमंत्री को घेरना ही है तो वे सूखे और पाठ्यपुस्तकों से हो रहे खिलवाड़ जैसे ज्यादा गंभीर मुद्दे उठा सकते थे।
यह अफसोस की बात है कि राजनीति की दिशा बदलने के घोषित उद्देश्य के साथ वजूद में आई पार्टी जन-सरोकार वाले मसलों को लेकर माहौल गरमाने के बजाय निजी हमलों में कहीं ज्यादा मुब्तिला है। केजरीवाल और नीतीश कुमार अमूमन एक दूसरे के बारे में अच्छी राय रखते हैं। पर नीतीश कुमार ने भी प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर उठाए गए सवाल को ‘नॉन-इश्यू’ करार दिया है। अलबत्ता उन्होंने केजरीवाल को माफी मांगने के लिए कहने के भाजपा के बयान का मखौल उड़ाते हुए कहा कि भाजपा को पहले मोदी के ‘डीएनए’ वाले बयान के लिए बिहार के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। यह दिलचस्प है कि इस मामले को सबसे ज्यादा गंभीरता से खुद भाजपा ने लिया और उसके दो वरिष्ठ नेताओं ने मोदी का बचाव करने के लिए संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर डाला। यह प्रधानमंत्री के बचाव में बेकार की कवायद थी। इस तरह दिल्ली विश्वविद्यालय के स्पष्टीकरण के बाद जो विवाद अपने आप शांत हो जाता, अब भी कायम है। सार्वजनिक जीवन में डिग्री मायने नहीं रखती। दरअसल, राजनीति में जो बात सबसे अधिक मूल्य रखती है वह है विश्वसनीयता तथा जनता पर प्रभाव। इसलिए प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर रोज-रोज क्यों चर्चा होती रहे?