पिछले महीने जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई आतंकी हमले के एक अहम आरोपी तहव्वुर राणा की भारत को प्रत्यर्पित करने के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था, तभी यह साफ हो गया था कि उसे भारत लाने के दिन अब करीब आ गए हैं। हालांकि उसके अपराधों की गंभीरता के मद्देनजर यह पहले भी स्पष्ट था कि उसके लिए राहत की कोई सूरत नहीं बनने जा रही है। मगर अब गुरुवार को आखिरकार उसे भारत प्रत्यर्पित कर दिया गया और इसी के साथ मुंबई में 26 नवंबर, 2008 को हुए आतंकी हमले में मारे गए लोगों और अन्य पीड़ितों के परिजनों के लिए इंसाफ की एक और उम्मीद मजबूत हुई है।

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण कराने के लिए भारत की ओर से काफी समय से लगातार कोशिशें जारी थीं और उसमें निरंतरता का ही यह नतीजा है कि इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली। जाहिर है, अब भारतीय कानूनों के तहत राणा को न्याय के कठघरे में खड़ा होना पड़ेगा, जिससे बचने के लिए उसने अमेरिका में अपने सभी दांव आजमा लिए थे।

राणा के पास है कनाडाई नागरिकता

गौरतलब है कि लश्कर-ए-तैयबा की योजना के मुताबिक जिस गिरोह ने मुंबई में बड़े पैमाने पर एक साथ आतंकी हमला किया था और उसमें एक सौ चौंसठ लोग मारे गए थे, तहव्वुर राणा ने उसमें मुख्य साजिशकर्ता की भूमिका निभाई थी। लेकिन तब उसे पकड़ा नहीं जा सका। पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक राणा उसके बाद भी अपने आतंकी साथी डेविड कोलमैन हेडली के साथ अन्य देशों में आतंकी हमले करने की योजना में सक्रिय रहा।

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मगर डेनमार्क में हमले की योजना को अंजाम देने के पहले ही जब वह अमेरिकी एजंसियों की पकड़ में आया, तब जाकर उसकी आतंकी करतूतों का रास्ता रुका। वरना यह कहना मुश्किल है कि मुंबई में आतंकी हमलों की तरह वह और कितने आम लोगों की जान लेने का सूत्रधार बनता। पकड़ में आने के बाद अमेरिका में वर्ष 2013 में उसे डेविड कोलमैन हेडली के साथ मुंबई में आतंकी हमले को अंजाम देने और डेनमार्क में इसी तरह का बड़ा हमला करने की योजना बनाने का दोषी करार दिया गया। तब वहां की अदालत ने राणा को चौदह वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। मगर जब भारत की ओर से अपने कानूनों के तहत कठघरे में खड़ा करने के लिए उसके प्रत्यर्पण की कोशिशें चल रही थीं, तब उसने इसे रोकने के लिए अपना पूरा जोर लगा दिया था।

राणा को भारत को प्रत्यर्पित कराने के लिए डेढ़ दशक तक लगातार प्रयास करना पड़ा

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संबंध में कहा था कि मुंबई आतंकी हमलों के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा। मगर यह जिस स्तर का संवेदनशील मामला था, उसमें कई बार आखिरी समय में अड़चन खड़ी होने की आशंका बनी रहती है। शायद इसीलिए राणा को भारत लाने में कामयाबी को केंद्रीय एजंसियों के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रत्यर्पण और भारत की एक अहम कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

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मगर यह भी सच है कि इसके लिए भारतीय खुफिया एजंसियों को करीब डेढ़ दशक तक लगातार प्रयास करना पड़ा। इस मसले पर पाकिस्तान ने भले ही तहव्वुर राणा के पिछले दो दशकों से कनाडाई नागरिक होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की है, इसके बावजूद अब यह उम्मीद की जा सकती है कि मुंबई हमलों में पाकिस्तान स्थित ठिकानों से काम करने वाले आतंकी संगठनों और उनसे जुड़े आतंकवादियों की भूमिका कुछ और साफ होकर उभरेगी।