सत्ता में दूसरी बार वापसी के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कई फैसलों का जहां पूरी दुनिया में दबी जुबान से विरोध हुआ, वहीं अब वहां के लोग भी मुखर हो रहे हैं। देश के कई राजनीतिक पहले से ही राष्ट्रपति से नाराज दिख रहे थे। पिछले दिनों कई शहरों में ट्रंप के खिलाफ करीब सत्तर लाख अमेरिकी नागरिक सड़कों पर उतर आए। उनका दावा था कि ट्रंप प्रशासन अधिनायकवादी रुख अख्तियार कर रहा है। राष्ट्रपति के कई विवादित फैसलों से न केवल कई देशों के, बल्कि खुद अमेरिका के लाखों नागरिक प्रभावित हुए हैं।

प्रदर्शन में शामिल लोगों ने ये नारे लगाए कि विरोध करने से अधिक देशभक्ति कुछ नहीं। ट्रंप के आलोचकों का तो यहां तक कहना है कि राष्ट्रपति के कुछ कदम अमेरिका के लोकतंत्र के लिए न केवल खतरा हैं, बल्कि पूरी तरह असंवैधानिक भी हैं। ट्रंप का न सिर्फ अमेरिका में विरोध हुआ है, बल्कि यूरोप में भी उनके खिलाफ प्रदर्शन हुए। अमेरिका के हित में कदम उठाने और नीतियां बनाने के तमाम दावों के बावजूद लोग ट्रंप के फैसलों को सवालों के कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।

कायदे से देखा जाए तो अमेरिकी लोगों के बीच फैले इस आक्रोश का संदेश बहुत बड़ा है। अमेरिका में हुए हालिया सर्वे में राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर नागरिकों के बीच एकराय नहीं हैं। महज चालीस फीसद लोगों ने ही उनके कामकाज के प्रति समर्थन जताया है। जबकि अट्ठावन फीसद लोग राष्ट्रपति से असहमत हैं।

दरअसल, स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती, कई अमेरिकी शहरों में राष्ट्रीय गार्ड की तैनाती, सख्त आप्रवासन नीति, कई देशों पर भारी-भरकम शुल्क थोपने और अरबपतियों की मदद करने से भी वहां के लोग खासे नाराज हैं। उनको लगने लगा है कि ट्रंप के कार्यकाल में लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला हो रहा है। अब राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ अभियान का नाम ही ‘नो किंग्स’ रखा गया है। ऐसा लगता है कि लोकतंत्र के पक्ष में आवाज उठाने वाले अमेरिकी लोग ‘राजा’ जैसा बर्ताव कर रहे राष्ट्रपति को स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं।