भारत-बांग्लादेश सीमा पर चौकसी केंद्र की प्राथमिकता रही है। घुसपैठ, मानव तस्करी और नशीले पदार्थों पर अंकुश लगाने में केंद्रीय सुरक्षा बल ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। इस समय दोनों देशों के बीच नौ सौ तेरह किलोमीटर लंबी सीमा की रक्षा निस्संदेह कठिन कार्य है। पारंपरिक तरीके से निगरानी में कई चुनौतियां रही हैं, लेकिन सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने लगातार पैदल गश्त के साथ अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर घुसपैठ पर काफी हद तक लगाम लगाई है। जबकि सीमा के आधे हिस्से पर ही अभी बाड़ लगाई जा सकी है।
सुरक्षा बलों पर सवाल उठाने का औचित्य नहीं
बावजूद इसके, उन हिस्सों पर भी सुरक्षा बल चौबीस घंटे कड़ी निगरानी रख रहे हैं। आश्चर्य है कि उन पर ही घुसपैठ कराने का आरोप लगाया गया है। पिछले दिनों राज्य सचिवालय की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आरोप से विवाद खड़ा हो गया। राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए केंद्र द्वारा सुरक्षा बल के इस्तेमाल का उनका आरोप निराशाजनक है। ऐसे बयानों से जवानों के आत्मबल और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचती है। बंगाल में सीमा पर वे दुर्गम इलाकों और नदी क्षेत्र में अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभा रहे हैं, ऐसे में उन पर सवाल उठाने का औचित्य नहीं बनता।
सुरक्षा बलों को बेवजह राजनीति में घसीटा गलत
यह ठीक है कि राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं, लेकिन यह दुखद है कि सुरक्षा बलों को बेवजह राजनीति में घसीटा गया। जबकि हमारे सुरक्षा बल किसी भी तरह की राजनीति से दूर रह कर वर्षों से सीमा की सुरक्षा करते रहे हैं। उन्होंने हमेशा अपने कर्तव्यों का ईमानदारी निर्वहन किया है। हैरत की बात है कि एक राज्य की प्रमुख ने बिना किसी ठोस आधार के उन पर अतार्किक आरोप लगाया है। अपने ही सुरक्षा बलों पर अविश्वास करने का ऐसा उदाहरण पहले कभी सामने नहीं आया।
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अगर घुसपैठ हो रही है, तो राज्य में वे घुसपैठिए कहां हैं, इसका पता लगाना जिला प्रशासन का काम है। अगर सबूत के साथ पक्ष रखा जाता, तो कहीं बेहतर होता। सीमा सुरक्षा बल ने पिछले कुछ समय से जिस तरह सख्त कार्रवाई की है, उसकी सराहना के बजाय आक्षेप लगाने से कड़वाहट ही बढ़ेगी।