हरियाणा के महेंद्रगढ़ में एक तेज रफ्तार स्कूल बस के पलटने की घटना दरअसल घोर लापरवाही का नतीजा है, जिसमें आठ बच्चों की जान चली गई और बीस बच्चे घायल हो गए। कहने को इसे एक हादसे के तौर पर ही देखा जाएगा और उसी मुताबिक कानून अपना काम करेगा, मगर सच यह है कि इसका कारण हर स्तर पर बरती गई बहुस्तरीय और आपराधिक लापरवाही है। खबरों के मुताबिक, ईद की छुट्टी का दिन होने के बावजूद स्कूल को खुला रखा गया था और जैसा कि बच्चों और स्थानीय लोगों ने बताया कि ड्राइवर नशे में बेलगाम रफ्तार से बस चला रहा था।

वाहन के फिटनेस प्रमाण पत्र के भी कई वर्ष पहले खत्म हो जाने का तथ्य सामने आया है। सवाल है कि स्कूल प्रबंधन को बस की स्थिति, ड्राइवर की प्रकृति आदि के बारे में सही जानकारी रखना जरूरी क्यों नहीं लगा? सड़क पर लगाम खोकर कोई वाहन इतनी तेज रफ्तार में चल रहा था तो उसे रोकने-टोकने वाला कोई क्यों नहीं था?

शुरुआती जांच के बाद यह जानकारी सामने आई कि बस के दुरुस्त होने या फिटनेस का प्रमाण पत्र करीब छह वर्ष पहले ही समाप्त हो गया था। यानी इतने समय से यह बस इसी हालत में बेरोकटोक बच्चों को लेकर चल रही थी। स्कूल प्रबंधन को इस बारे में क्यों नहीं पता था कि बच्चों को लाने-ले जाने वाली बस लगातार एक जोखिम में ही चल रही थी। कई बार लोग संयोग के पहलू को अहम मानते हैं। इस लिहाज से देखें तो अगर स्कूल प्रबंधन ने आधिकारिक रूप से छुट्टी के दिन स्कूल बंद रखा होता, तो बच्चे कम से कम घटना वाले दिन सुरक्षित रह पाते।

यों भी किसी सार्वजनिक छुट्टी के दिन स्कूल को खुला रखने और बच्चों को बुलाने की तुक या वजह क्या थी? हादसे के बाद अब प्रशासन की ओर से सभी जिम्मेदार पक्षों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही गई है, मगर सवाल है कि बीते कई वर्षों से बिना फिटनेस प्रमाण पत्र के कोई बस कैसे निर्बाध चल रही थी? सड़क पर वाहनों के बेलगाम रफ्तार में चलने रोकने वाला तंत्र क्या कर रहा था? कायदे से इस हादसे के लिए बस चालक के साथ-साथ स्कूल प्रबंधन और प्रशासन सबकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।