कुवैत के मंगफ क्षेत्र में अग्निकांड के बाद खाड़ी देशों में काम कर रहे भारतीय मजदूरों की बदहाली को लेकर सवाल उठने लगे हैं। मध्य पूर्व के इस देश में रोजगार की तलाश में गए 40 से अधिक भारतीय मजदूरों की मौत की घटना स्तब्ध करने वाली है। अग्निकांड के बाद भारत एवं कुवैत सरकार की तमाम एजंसियां सक्रिय हो गई हैं, लेकिन यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि वहां मजदूरों की जीवन दशा बेहद खराब है और इस बारे में अक्सर सवाल उठते रहे हैं, जिन्हें अनसुना किया जाता रहा है।
विदेश मंत्रालय के आंकड़े हैं कि खाड़ी देशों में स्थित भारतीय दूतावासों में मजदूरों की 48095 शिकायतें मिलीं, जिनमें सबसे ज्यादा कुवैत में ही 23020 शिकायतें प्राप्त हुईं। इन शिकायतों पर क्या कदम उठाए गए, इस बारे में तथ्य उपलब्ध नहीं हैं। यह साफ है कि कुवैत में मजदूरों के लिए हालात अच्छे नहीं हैं। वहां पर खराब स्थिति और कम संसाधनों के बीच उन्हें रहने को मजबूर किया जाता है। जबकि, कुवैत की अर्थव्यवस्था जो इस समय आगे बढ़ रही है, उसमें भारतीयों की भूमिका सबसे ज्यादा है।
आरोप तो यहां तक लगते हैं कि कुवैत के स्थानीय लोग भारतीय मजदूरों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते। नियोक्ता तय वेतन से कम भुगतान करते हैं। सुविधाएं ना के बराबर हैं। एक-एक कमरे में 15 से 20 मजदूरों को ठूंस कर रखा जाता है। मंगफ क्षेत्र की जिस इमारत में आग लगी, उसकी सुरक्षा और सरकारी प्राधिकारों की अनुमति को लेकर भी सवाल उठे हैं। वहां जांच बिठा दी गई है। लेकिन अहम सवाल यह है कि व्यवस्था में सुधार को लेकर कोई पहल पहले क्यों नहीं दिखी। सवाल यह भी उठता है कि बदहाली के बावजूद कुवैत समेत खाड़ी देशों में मजदूरों की संख्या क्यों बढ़ रही है।
एक रपट के मुताबिक, एक भारतीय मजदूर वहां चालीस से पचास हजार रुपए हर महीने कमा लेता है। जाहिर है, कुवैत में ज्यादा कमाई का लालच तो है ही। विदेश मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 1990-91 के खाड़ी युद्ध में कुवैत में भारतीय समुदाय पर बड़ा प्रभाव पड़ा। भारतीयों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। 1.7 लाख से ज्यादा भारतीयों ने देश छोड़ा। लेकिन इसके बाद ज्यादा कमाई के लालच में वहां संख्या बढ़ी। साथ ही, वहां की कंपनियों का सस्ते श्रम का लालच भी बढ़ा।
कुवैत में कई बार दुर्व्यवहार और धोखाधड़ी के मामले आए हैं। शोषण की शिकायतें इतनी ज्यादा मिलने लगी हैं कि भारतीय दूतावास में एक शिकायत निपटान केंद्र खोलना पड़ा। वहां अधिकतर मजदूर केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार से जाते हैं और उनके अनुभव आमतौर पर ठीक नहीं होते। मंगफ हादसे में मरे मजदूरों के बारे में ऐसी भी जानकारियां सामने आई हैं कि उनमें से कई को पर्यटक वीजा पर ले जाया गया। अब कुवैत सरकार ऐसे मजदूरों को अवैध मजदूूर के तौर पर चिह्नित करने में जुटी है। पर्यटक वीजा पर भेजे गए मजदूरों का कोई रेकार्ड न तो दूतावास में होता है और न ही भारत सरकार के पास। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि भारत सरकार उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल का गठन करके अपनी ओर से भी जांच बिठाए।