एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न मामले में बंगलुरु की एक अदालत ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ पाक्सो कानून के तहत गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। हालांकि अगली सुनवाई तक उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई है, पर इस प्रकरण से उनके दामन पर जो दाग लगा है, वह धुलेगा या नहीं, कहना मुश्किल है। एक किशोरी की मां ने आरोप लगाया था कि येदियुरप्पा ने अपने आवास पर उसकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया।

येदियुरप्पा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं

हालांकि येदियुरप्पा के वकील का कहना है कि आरोप लगाने वाली महिला आदतन इसी तरह लोगों का भयादोहन करती रही है। येदियुरप्पा के खिलाफ कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण है। चूंकि मामला पाक्सो कानून के तहत दर्ज किया गया है, इसलिए येदियुरप्पा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण बता कर वे इससे बच पाएंगे, कहना मुश्किल है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजनेताओं पर कई बार कुछ ऐसे आरोप उनके प्रतिपक्षियों द्वारा भी साजिशन लगा दिए जाते हैं, ताकि वे उलझे रहें और उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय हो जाए। येदियुरप्पा कर्नाटक के एक प्रभावशाली नेता हैं और उन्होंने वहां भाजपा की जड़ें मजबूत की हैं। बेल्लारी बंधुओं से निकटता और कुछ ठेकों के आबंटन में पक्षपातपूर्ण निर्णयों की वजह से वे विवादों में जरूर आए थे, पर उनका जनाधार बहुत कमजोर नहीं हुआ। इस वक्त कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। इसलिए उनके खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई का तर्क कुछ देर ठहर भी सकता है, मगर आखिर उनके विवेक और आचरण पर तो सवाल रहेंगे ही।

सार्वजनिक जीवन में राजनेता का आचरण बहुत मायने रखता है। कैसे एक किशोरी के साथ उनका व्यवहार ऐसा अमर्यादित रहा, जो यौन उत्पीड़न की श्रेणी में मान लिया गया और अदालत ने भी उसे सही पाया। इस मामले में कितनी सच्चाई है, यह निष्पक्ष रूप से सामने आनी चाहिए। इसे राजनीतिक प्रभाव में दबाने का प्रयास किया जाएगा, तो उस किशोरी के साथ अन्याय होगा। फिर इस तरह के यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाना मुश्किल ही रहेगा।