जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का ताजा घटनाक्रम बेहद चिंताजनक है। इस विश्वविद्यालय की गिनती देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित उच्चशिक्षा संस्थानों में होती रही है। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे मान-सम्मान हासिल है। जेएनयू की एक खासियत वामपंथी सोच वाले परिसर के रूप में भी रही है। दशकों से अमूमन यहां के छात्रसंघ पर वामपंथी छात्र संगठन ही काबिज होते आए हैं। प्रगतिशीलता के साथ-साथ खुलेपन, तेज-तर्रार बहस-मुबाहिसों और वैचारिक टकरावों के बीच हर तरह के विचार और असहमति को यहां खुल कर प्रकट होने का मौका मिलता रहा है और इस सबने जेएनयू की एक विशिष्ट छवि बनाई हुई है। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी, जिसमें असहमत होने का हक निहित है, का यह मतलब नहीं होता कि उसकी कोई मर्यादा ही न हो। इसकी मर्यादा समाज तो तय करता ही आया है, हमारे संविधान ने भी इसकी लक्ष्मणरेखा खींची हुई है। इसलिए अफजल गुरु की फांसी की बरसी आयोजित करना, उसे शहीद बताना घोर आपत्तिजनक तो था ही, आपराधिक भी था।
इस आयोजन की तस्वीरें जिस वीडियो में दर्ज होने की बात कही जा रही है उसमें कश्मीर की आजादी और उसी के साथ-साथ भारत की बर्बादी के नारे लगाने की आवाजें भी दर्ज हैं। फांसी की सजा को लेकर अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन संसद पर हमले के दोषी का महिमामंडन करना और देश की बर्बादी का नारा लगना तो स्तब्ध करने वाली घटना है। अगर रिकार्डिंग सही है, तो निश्चय ही इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पर इसी के साथ यह भी कहना होगा कि चंद सिरफिरे छात्रों की कारगुजारी को पूरे जेएनयू समुदाय पर आरोपित नहीं करना चाहिए। इस घटना से विश्वविद्यालय की छवि पर आंच आई है, और जेएनयू के तमाम लोग भी उतने ही दुखी हैं जितने कि बाहर के लोग।
दिल्ली पुलिस ने बीते शुक्रवार को छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके एक दिन बाद सात और छात्रों की गिरफ्तारी हुई, उन्हीं आरोपों में जिनमें कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया गया था। कुछ कार्रवाई विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी अपने स्तर पर की है। एक अनुशासनात्मक समिति की सिफारिश पर आठ छात्र निलंबित कर दिए गए। कन्हैया कुमार का कहना है कि वे और उनका संगठन कभी राष्ट्र-विरोधी गतिविधि में शामिल नहीं रहे; उन्हें राजनीतिक कारण से फंसाया जा रहा है। सच क्या है, इसकी जांच होनी चाहिए। बारीकी से जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जेएनयू का यह घटनाक्रम तीखे राजनीतिक विवाद का भी विषय हो गया है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने कड़े बयान जारी किए तो दूसरी ओर विपक्ष के कई नेताओं ने दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के तौर-तरीके पर सवाल उठाते हुए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने के आरोप लगाए हैं। तो क्या दिल्ली पुलिस की कार्रवाई गैर-आनुपातिक थी? जो हो, यह जेएनयू के लिए घोर चितांजनक मामला है। उसकी छवि को इन दिनों जैसी क्षति हुई है, शायद ही पहले कभी हुई हो। इसलिए यह विश्वविद्यालय प्रशासन, शिक्षक समुदाय और विद्यार्थी जमात, सबके लिए गहरे मंथन का समय है कि कैसे इस तरह की अवांछित गतिविधि न होने दी जाए। विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक परंपरा और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए भी यह जरूरी है।