जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान नौ फरवरी को कुछ छात्रों द्वारा राष्ट्र-विरोधी नारे लगाने की पुष्टि अब सीबीआइ की फोरेंसिक प्रयोगशाला ने कर दी है। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि वह वीडियो असली है, जिसमें विद्यार्थियों का एक झुंड भारत-विरोधी नारे लगाते हुए दिखता है। एक टीवी चैनल के कैमरे से ये वीडियो तस्वीरें उतारी गई थीं। इसी आधार पर दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उमर खालिद और कुछ अन्य छात्रों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी। तब तर्क दिया गया था कि उस वीडियो फुटेज के साथ छेड़छाड़ की गई है और छात्र नेताओं को नाहक परेशान करने के मकसद से पुलिस ने यह मुकदमा दर्ज किया है। केंद्र सरकार पर भी जेएनयू को बदनाम करने का आरोप लगा था। तब इन छात्र नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर देश भर में विरोध के स्वर उभरे थे। दरअसल, जेएनयू में विद्यार्थियों के एक संगठन ने फांसी की सजा के औचित्य को लेकर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया था, जिसमें आतंकवाद रोकने के नाम पर हो रहे पुलिस और सेना के कथित अत्याचारों के विरोध में आवाजें उठीं। उसी में अफजल गुरु आदि के पोस्टर दिखाते हुए आपत्तिजनक नारे भी लगाए गए। जेएनयू छात्रसंघ का कहना था कि वहां भारत-विरोधी नारे लगे जरूर थे, पर नारे लगाने वाले बाहर से आए शरारती तत्त्व थे। उनका मकसद आयोजन को विफल बनाना था।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्र-राजनीति दूसरे विश्वविद्यालयों और संस्थानों की अपेक्षा अधिक बौद्धिक रही है। देश-विदेश के तमाम संवेदनशील विषयों पर वहां के छात्र वैचारिक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं। मगर नौ फरवरी को जो कुछ वहां हुआ, उसे शायद ही कोई उचित कहे। किसी मसले पर तीखी वैचारिक प्रतिक्रिया देने का यह अर्थ कतई नहीं हो सकता कि ऐसे आपत्तिजनक नारे लगाए जाएं। किसी नियम-कायदे, सरकारी फैसले को लेकर छात्रों या नागरिकों को अपनी राय जाहिर करने का अधिकार है, मगर उसका तरीका संवैधानिक मर्यादा को तोड़ते हुए अभिव्यक्त करने का कतई नहीं होना चाहिए। कोई भी ऐसी हरकतों को कैसे जायज ठहरा सकता है, जो अलगाववाद का समर्थन करती हों।

विश्वविद्यालयों में अलग-अलग विचारधारा के संगठन होते हैं और विभिन्न विषयों पर वे अपने-अपने ढंग से राय रखते, आंदोलन वगैरह चलाते हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और समाज में यह स्वाभाविक ही है। मगर किसी विश्वविद्यालय में ऐसे किसी संगठन के लिए जगह नहीं हो सकती जिसे देश का वजूद ही गवारा न हो। देश की सरकार या सत्ता से विरोध अलग बात है, वह लोकतांत्रिक अधिकार के दायरे में आता है, पर देश के खिलाफ नारे लगाना या ऐसी कोई और गतिविधि एक आपराधिक कृत्य है। हालांकि अभी दिल्ली पुलिस की आतंकवाद निरोधक शाखा इस मामले की जांच कर रही है और उसके बाद ही पता चल पाएगा कि दोषी कौन थे और उनका मकसद क्या था। देश भर में विवाद का विषय रहे इस मामले में यह बहुत जरूरी है कि जांच निष्पक्ष तरीके से अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचे। यह भी कहना होगा कि छात्र संगठन इस घटना से सबक लें।