जम्मू-कश्मीर में साढ़े चार सौ आतंकियों के सक्रिय होने की खबर चौंकाने वाली है। पिछले कुछ समय में सेना ने आतंकियों के खिलाफ जिस तरह से बड़े अभियान चलाए, उससे लग रहा था कि अब आतंकियों का सफाया हो रहा है और आने वाले वक्त में घाटी आतंकियों से मुक्त होगी। लेकिन अब सेना ने ही बताया है कि सबसे ज्यादा आतंकवादी पीर पंजाल के उत्तरी इलाके में सक्रिय हैं। सेना का यह खुलासा बताता है कि आतंकियों का नेटवर्क पूरे राज्य में खासतौर से कश्मीर घाटी के जिलों में फैल चुका है और इसका सफाया अभी भी सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। आए दिन की आतंकी घटनाएं और हमले भी इसकी पुष्टि करते हैं कि राज्य में आतंकी सक्रिय हैं और अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि रोजाना आतंकियों को ढेर किए जाने की खबरें भी आती हैं, लेकिन समस्या यह है कि जितने आतंकी ढेर होते हैं, उससे कहीं ज्यादा पैदा हो जाते हैं। जाहिर है, आतंकी गुट स्थानीय युवाओं को अपने संगठन में भर्ती कर रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण आतंकियों की गांव-गांव तक में पैठ होना है। इन आतंकी संगठनों का स्थानीय लोगों के बीच ऐसा खौफ है कि जो नौजवान आतंकी गुट में शामिल होने से इनकार करता है, उसकी फिर खैर नहीं।
सेना पिछले तीन दशक से घाटी में आतंकवाद से जूझ रही है। पड़ोसी देश पाकिस्तान से आतंकियों की घुसपैठ का सिलसिला थमा नहीं है। मौका पाते ही पाकिस्तान आतंकियों को भारत की सीमा में घुसा देता है। सीमापार आतंकवाद पाकिस्तान का भारत के खिलाफ छद्म युद्ध ही है। हालांकि जब नियंत्रण रेखा पर सख्ती ज्यादा होती है और घुसपैठ मुश्किल हो जाती है तो आतंकी हथियारों के साथ नेपाल के रास्ते कश्मीर घाटी पहुंचते हैं। घाटी में जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन, अल बदर सहित कई छोटे-बड़े संगठन सक्रिय हैं। इन संगठनों के मुख्यालय पाकिस्तान में हैं और इनकी कमान सेना और आइएसआइ के हाथ में रहती है। ये आतंकी संगठन बड़े हमलों को अंजाम देने के लिए भाड़े के आतंकियों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन सेना के लिए सबसे बड़ी परेशानी और चिंता की बात यह है कि स्थानीय स्तर पर आतंकियों की भर्ती को कैसे रोका जाए। पिछले साल स्थानीय स्तर पर भर्ती किए गए और विदेशी आतंकियों का अनुपात साठ-चालीस का था। स्थानीय नौजवानों का आतंकवादी संगठनों में भर्ती होना आतंकवाद से निपटने के सरकार के प्रयासों के लिए बड़े झटके से कम नहीं है।
पिछले साल जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों ने ऑपरेशन ऑल आउट चलाया था और दो सौ बासठ आतंकवादियों का सफाया किया था। इनमें लश्कर, जैश और हिजबुल के शीर्ष कमांडर भी थे। इसके बावजूद अगर आतंकियों की संख्या बढ़ रही है तो स्पष्ट है कि कश्मीर घाटी में पाक समर्थित आतंकवाद को पनाह मिल रही है और इसे रोक पाने में राज्य और केंद्र सरकार की नीतियां नाकाम साबित हो रही हैं। संसद में पेश की गई गृह मंत्रालय की रिपोर्ट और सेना ने इस बात की पुष्टि की है कि पाक अधिकृत कश्मीर में आइएसआइ की मदद से सोलह आतंकी शिविर चल रहे हैं। सेना एक बार पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकी शिविरों को ध्वस्त कर चुकी है और पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे चुकी है। लेकिन अब फिर से वहां सोलह आतंकी शिविर चल रहे हैं। सवाल है कि सरकार क्यों चुप बैठी है? सेना को फिर से सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कड़ा कदम उठाना चाहिए।