भारतीय जनता पार्टी को उसके ही एक सांसद की बयानबाजी ने सांसत में डाल रखा है। सुब्रमण्यम स्वामी ने अब सीधे वित्तमंत्री पर निशाना साधा है, और पार्टी इस बात को लेकर दुविधा में दिखती है कि क्या कार्रवाई करे। जब तक दूसरे लोग स्वामी के निशाने पर थे, पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता था। पर जब अपनों पर स्वामी कीचड़ उछालने लगे तो पार्टी को फिलहाल सूझ नहीं रहा है कि इससे कैसे निपटे। यह उस पार्टी का हाल है जो अनुशासन का दम भरती आई है। कुछ दिन पहले स्वामी रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के पीछे हाथ धोकर पड़े थे। वे बराबर यह आरोप दोहराते रहे कि राजन ने जान-बूझ कर ब्याज दरें घटाने से इनकार किया, और इस तरह इरादतन भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया। राजन के कार्यकाल में जब भी मौद्रिक नीति घोषित हुई, आर्थिक विश्लेषकों की अलग-अलग राय सामने आई, पर किसी ने भी उनकी नीयत में खोट नहीं निकाला।
यही सही है कि राजन की नियुक्ति यूपीए सरकार ने की थी, पर रिजर्व बैंक के गवर्नर की प्रतिष्ठा की फिक्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को भी होनी चाहिए। क्यों सुब्रमण्यम स्वामी को राजन के खिलाफ जहर उगलने दिया गया? तब पार्टी की दलील थी कि यह उनका निजी विचार है। जब वे गांधी परिवार के खिलाफ जहर उगलते हैं, या अरविंद केजरीवाल पर कुछ भी आरोप मढ़ देते हैं, तब तो यह भी कहने की जरूरत नहीं महसूस की जाती कि यह उनका निजी विचार है। लेकिन अब शायद भाजपा को लगता है कि अपने ही एक सांसद के बयानों से वह कैसे पल्ला झाड़ती रह सकती है?
दूसरा कार्यकाल नहीं लेने की रघुराम राजन की घोषणा के बाद सुब्रमण्यम स्वामी भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के खिलाफ निंदा अभियान में लग गए, फिर उन्हें और आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास को भी हटाने की मांग कर डाली, जिनकी नियुक्तियां भाजपा सरकार ने ही की हैं। और अब अपनी ही पार्टी की सरकार के वित्तमंत्री को भी स्वामी ने नहीं बख्शा है।
बीते सप्ताह जेटली की चीन यात्रा के दौरान उन पर स्वामी ने ट्विटर के जरिए ऐसी टिप्पणी की, जो अभद्र ही कही जाएगी। इस पर जेटली ने अनुशासन और संयम की सलाह दी, तो उस पर गौर करने के बजाय स्वामी और भी कुपित हो गए। फिर, ट्वीट कर कहा कि जिस दिन वे अनुशासन की सीमा पार कर जाएंगे, तूफान आ जाएगा। मानो अभी तक वे जो कुछ और जिस अंदाज में बोलते रहे हैं वह सब अनुशासन के दायरे में आता है!
यह ठीक-ठीक जान पाना मुश्किल है कि इस सारी ओछी बयानबाजी के पीछे आखिर उनकी मंशा क्या है। शायद किसी न किसी पर निशाना साधते रहने और इस तरह खबरों में बने रहने की चाहत उनकी फितरत हो। पर हाल में उन्हें राज्यसभा में भेज कर उनका सियासी कद किसने बढ़ाया? जेटली पर हमला भाजपा को नागवार गुजरना ही था, पर यह दिलचस्प है कि भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना को यह रास आया है। यह कैसा ‘गठबंधन धर्म’ है, जिसका ईजाद करने का दावा भाजपा करती आई है! पर अगर स्वामी नहीं थमे, और शिवसेना ने अपना यह रुख कायम रखा, तो भाजपा से उसके गठबंधन पर आंच आ सकती है।