दिल्ली में फिर एक बुजुर्ग दंपति की हत्या की घटना ने पुलिस के दावों की पोल खोल दी है। इस तरह की बढ़ती वारदातें पुलिस और समाज दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। शायद ही कोई महीना ऐसा बीतता हो जब घर में अकेले या परिवार के साथ भी रह रहे बुजुर्ग लोग अपराधियों का शिकार न बनते हों। हाल में ईस्ट आॅफ कैलाश जैसे पॉश इलाके में एक बुजुर्ग दंपति को उन्हीं की घरेलू सहायिका द्वारा मरवा डालने का मामला सामने आया है। आरोप है कि इस महिला ने अपने नाबालिग बेटे की मदद से वृद्ध दंपति की हत्या करवा दी और फिर लाखों रुपए के जेवर और नगदी लूट ली। मामले का पर्दाफाश कई दिनों बाद तब हुआ जब इस दंपति के अमेरिका में रह रहे बेटे ने फोन नहीं उठने पर अपने एक रिश्तेदार को मौके पर भेजा। चौंकाने वाली बात यह है कि इस घटना को कई दिन बीत चुके थे, लेकिन आस-पड़ोस, सोसायटी के सुरक्षा गार्डों और पुलिस तक को इसकी न तो भनक लगी, न ही किसी ने इस दंपति की इतने दिनों नहीं दिखने के बाद कोई खबर लेने की जरूरत समझी।
आज न सिर्फ दिल्ली, बल्कि ज्यादातर शहरों में स्थिति यही है कि जिन बुजुर्गों के बच्चे शहर से या देश से बाहर हैं, वे अकेले ही अपना जीवन गुजारने को मजबूर हैं। ऐसे परिवारों की तादाद दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। पढ़ाई-लिखाई के बाद बच्चे विदेश में बस जाते हैं, या फिर पारिवारिक मजबूरियों की वजह से उसी शहर में तो रहते हैं, लेकिन माता-पिता से अलग। ऐसे में बेसहारा बुजुर्ग अपने सेवादारों पर ही आश्रित हो जाते हैं। बुजुर्गों को निशाना बनाने वाले अपराधी ऐसे परिवारों पर नजर रखते हैं और मौका मिलते ही घटना को अंजाम दे देते हैं। पिछले कुछ सालों में तो इस तरह की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। ज्यादातर मामलों में पकड़े गए लोगों में खास परिचित और घर में काम करने वाले ही शामिल पाए गए हैं। सवाल है कि ऐसे में किस पर भरोसा कर बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए!
बुजुर्गों की सुरक्षा की पहली जिम्मेदारी आवासीय परिसर में तैनात सुरक्षा गार्डों और स्थानीय पुलिस की बनती है। लेकिन अब तक ऐसी जितनी भी वारदात का खुलासा हुआ है, उनसे लगता है कि न तो पुलिस ही अपनी जिम्मेदारी निभाती है और न आवासीय परिसरों के सुरक्षा गार्ड। उक्त घटना के संदर्भ में ही देखें तो करीब दस दिन तक किसी ने भी इस बुजुर्ग दंपति के बारे में जानने की कोशिश नहीं की। बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस में एक अलग सेल बना हुआ है। इस सेल में जो बुजुर्ग पंजीकृत होते हैं पुलिस समय-समय पर उनकी देखभाल का दावा करती है। यह दंपति भी इस बुजुर्ग सेल में दर्ज था। लेकिन दस दिन में किसी पुलिस वाले ने इनका हालचाल जानने की कोशिश नहीं की।
पुलिस का दावा है कि वह घर-घर जाकर अकेले रह रहे बुजुर्गों से मिलती भी है। अगर ऐसा होता तो क्या दस दिन तक फ्लैट में इस दंपति की लाशें सड़ती रहतीं? जाहिर है, बुजुर्गों की सुरक्षा के जो ठोस इंतजाम होने चाहिए वे नहीं हैं और जिनके कंधों पर इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वे लापरवाह हैं। ज्यादातर आवासीय परिसरों में भी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं होते और इन्हें सुनिश्चित करना भी स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी होती है। अपराधी इस हकीकत को अच्छी तरह समझते हैं और इसका फायदा उठाते हैं। ऐसे में सवाल है कि बुजुर्गों की सुरक्षा किसके हवाले की जाए!