देश की अर्थव्यवस्था को लेकर आने वाली सकारात्मक खबरें निश्चित तौर पर एक राहत का संदेश होती हैं। खासतौर पर जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुस्तरीय उथल-पुथल के बीच देश कई विपरीत स्थितियों का सामना कर रहा हो, आर्थिक विकास दर में सामान्य से अधिक बढ़ोतरी के आंकड़े बताते हैं कि अगर समाधानमूलक उपायों को लागू करने को लेकर संजीदगी बरती जाए, तो रास्ते निकाले जा सकते हैं।
ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर जुलाई-सितंबर की दूसरी तिमाही में 8.2 फीसद बढ़ी, जो पिछली छह तिमाहियों का उच्चतम स्तर है। यह वृद्धि करीब सात फीसद के अनुमान से अधिक है।
दरअसल, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, कारखाना उत्पादन में तेजी और सेवा क्षेत्र में मजबूत प्रदर्शन के बेहतर नतीजे सामने आए। सही है कि इस समय कृषि क्षेत्र सुस्ती के दौर से गुजर रहा है, लेकिन कारखाना उत्पादन और सेवा क्षेत्र में तेज प्रगति देखी गई, जिसने कृषि क्षेत्र में आई शिथिलता को बेअसर कर दिया।
जाहिर है, जीडीपी वृद्धि दर के ताजा सरकारी आंकड़े को आर्थिक मोर्चे पर एक उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन अगर इसका असर जमीनी स्तर पर भी स्पष्ट दिखे और जनता को उसका लाभ सीधे महसूस हो, तभी इसका कोई अर्थ है।
निश्चित तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई शुल्क नीति के दायरे में भारत भी है और इससे इसके निर्यात क्षेत्र पर खासा प्रभाव पड़ने की आशंका बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग जगहों पर युद्धों और अन्य अनिश्चितताओं के कारण भी बहुत सारे देशों की अर्थव्यवस्थाएं लगातार बचाव या जद्दोजहद की स्थिति से गुजर रही हैं। ऐसे में अगर भारत ने वृद्धि दर के मोर्चे पर अनुमान से अधिक हासिल किया है, तो यह अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत है।
मगर सवाल यह है कि जिस महंगाई दर के आंकड़े के आधार भी वृद्धि दर के आंकड़े में शामिल माने जाते हैं, क्या उसमें वास्तव में इतनी कमी आई है? महंगाई दर के कम होने को लेकर सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के बरक्स यह छिपा नहीं है कि रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की कीमतों के मामले में आम लोगों के सामने किस तरह की चुनौतियां खड़ी हैं।
क्यों उठ रहे सवाल?
यह बेवजह नहीं है कि सरकार के ताजा आंकड़ों पर कुछ सवाल उठ रहे हैं और कहा जा रहा है कि जब तक निजी निवेश और सकल स्थिर पूंजी निर्माण में वास्तविक उछाल नहीं आता, तब तक ऐसे आंकड़े टिकाऊ नहीं हो सकते। दूसरी ओर, सरकार की ओर से जीडीपी वृद्धि दर को लेकर ये आकलन ऐसे समय जारी किए गए, जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आइएमएफ ने अपनी एक रपट में भारत की अर्थव्यवस्था के वार्षिक मूल्यांकन में यहां के राष्ट्रीय खातों के आंकड़ों में गंभीर खामियां बताते हुए इन्हें ‘सी’ श्रेणी में रखने की बात कही है।
आंकड़ों की गुणवत्ता के लिहाज से इसे दूसरा सबसे निचला स्तर माना जाता है। आइएमएफ की रपट चिंता का कारण इसलिए भी है कि इसकी रपटों के आधार पर कई बार उपलब्धियों को सकारात्मक बताया जाता है, तो इसकी ओर से भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में ताजा आकलन को किस संदर्भ में देखा जाएगा। जो हो, जीडीपी वृद्धि दर को लेकर एनएसओ के आंकड़े अगर अर्थव्यवस्था के वास्तविक धरातल पर सही हैं, तो यह देश के लिए राहत की बात है।
यह भी पढ़ें: संपादकीय: कई प्रजातियों का विलुप्त होना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश का सूचक
