कई बार सामान्य लगने वाली कोई पहलकदमी दो देशों के बीच संबंधों के नए आयाम रचती है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके जरिए दोनों देश आगे का कौन-सा रास्ता अख्तियार करते हैं। शनिवार को भारत और श्रीलंका के बीच शुरू हुई नौका सेवा की व्यावहारिक अहमियत यही है कि इससे एक बार फिर दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को नई दिशा मिलेगी। इससे राजनयिक मोर्चे पर भी संबंधों का नया सिरा खुलेगा।

विदेश मंत्रालय ने लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा कदम बताया

गौरतलब है कि तमिलनाडु के नागपट्टिनम से लेकर श्रीलंका के जाफना के पास कांकेसंतुरई तक नौका सेवा की शुरुआत को दोनों देशों के बीच संबंधों में नई शुरुआत माना जा रहा है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा भी कि हम भारत और श्रीलंका के बीच राजनयिक और आर्थिक संबंधों का एक नया अध्याय शुरू कर रहे हैं और यह इस मामले में एक मील का पत्थर साबित होगा। इसके अलावा, विदेश मंत्रालय ने भी नौका सेवा की शुरुआत को लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया।

करीब एक दशक में दोनों देशों के बीच परिवहन संपर्क के स्तर पर सहयोग में बढ़ोतरी हुई

यों भी, संपर्क कायम रखने के मामले में सहजता दोनों देशों के बीच साझेदारी का एक केंद्रीय विषय रही है, क्योंकि यह व्यापार, पर्यटन से लेकर लोगों के बीच संवाद की नई स्थितियों की रचना करती है। वहीं युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने में भी यह काफी सहायक होती है। पड़ोसी होने के नाते भारत और श्रीलंका के लिए यह राजनयिक के साथ-साथ भौगोलिक दृष्टि से भी एक जरूरी पहलू हो जाता है। इस लिहाज से पिछले करीब एक दशक में दोनों देशों के बीच परिवहन संपर्क के स्तर पर सहयोग में बढ़ोतरी हुई है।

सन 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने जब श्रीलंका की यात्रा की थी, तब दिल्ली और कोलंबो के बीच सीधी विमान सेवा की शुरुआत हुई थी। बाद में 2019 में चेन्नई और जाफना के बीच भी सीधी उड़ान शुरू हुई। अब नागपट्टिनम और कांकेसंतुरई के बीच नौका सेवा को इसी दिशा में एक कड़ी माना जा सकता है। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से संस्कृति, सौहार्द और सहयोग आधारित संबंध रहे हैं। बीच में उपजी कुछ आशंकाओं के बाद अब फिर संबंधों में मजबूती के नए दरवाजे खुलते दिख रहे हैं।

दरअसल, बीते कुछ सालों के दौरान अपनी आंतरिक परिस्थितियों और समीकरणों की वजह से श्रीलंका का झुकाव चीन की ओर हुआ था। इस क्रम में चीन ने आर्थिक व्यूह-रचना के बूते श्रीलंका को अपने दायरे में बांधने की पूरी कोशिश की। हालांकि उसके बाद से नतीजा यह होना चाहिए था कि श्रीलंका की माली तस्वीर सुधरती। मगर इसके उलट, भारी कर्ज की वजह से आर्थिक मोर्चे पर उसकी हालत यह हो गई कि पिछले साल वहां एक तरह से जनविद्रोह हो गया और व्यापक अराजकता फैल गई थी। उससे संभलने और उबरने में श्रीलंका को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी।

अब श्रीलंका चीन के जाल से बाहर आने के लिए नए सिरे से खड़ा होने की कोशिश कर रहा है। भारत की ओर उसके बढ़ते कदमों को इसका संकेत माना जा सकता है। कुछ समय पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा के दौरान भी दोनों देशों ने आर्थिक साझेदारी के लिए दृष्टि-पत्र अपनाने की घोषणा की थी। उस दौरान बनी सहमति के बाद अब उम्मीद की जानी चाहिए कि नौका सेवा से भारत-श्रीलंका के बीच संपर्क बढ़ेगा, व्यापार को रफ्तार मिलेगी एवं लंबे समय से कायम रिश्ते और मजबूत होंगे।