यह वाकई चिंताजनक है कि पूरा उत्तर प्रदेश जहरीला पानी पीने को मजबूर है। हाल में इस राज्य में चौवन जिलों का पानी जांच में इतना ज्यादा विषैला पाया गया है कि इसका उपयोग करने वालों पर कैंसर जैसी घातक बीमारी का खतरा मंडरा रहा है। यह एक ऐसा डरावना तथ्य है जिसे सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। हालांकि यह कोई नया खुलासा नहीं है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब उत्तर प्रदेश के जिलों में जहरीले पानी की खबरें आई हैं। पिछले कई सालों से पूरे राज्य में जल संबंधी परीक्षणों की रिपोर्टें इस बारे में चेताती रही हैं। लेकिन सरकारी तंत्र के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किसी भी सरकार ने इस दिशा में ऐसा कोई काम नहीं किया जो भू-जल को जहरीला होने से बचाता। सरकारों की इसी लापरवाही का नतीजा है कि जमीन का पानी और विषैला होता गया और प्रदेश की जनता यह जहरीला पानी पीने को विवश है। जो लोग पानी खरीद कर पी सकते हैं, वे इस समस्या से कुछ हद तक तो बचे रहेंगे, लेकिन अधिसंख्य आबादी के लिए तो पानी खरीद कर पीना संभव नहीं है।
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की हाल में जो रिपोर्ट आई है, उससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में जमीन के भीतर पानी कितनी तेजी से जहरीला होता जा रहा है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि एक निश्चित गहराई तक तो नलकूपों का पानी प्रदूषित है ही, उससे ज्यादा गहराई पर खोदे गए नलकूपों का पानी भी कम जहरीला नहीं है। जांच में पता चला है कि इस पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, सीसा, मरकरी, निकल, कैडमियम, तांबे और लोहे की मात्रा खतरनाक स्तर से भी कई गुना ज्यादा निकली और हानिकारक कीटाणु पाए गए। हालत यह है कि राजधानी लखनऊ और मुख्यमंत्री का गृह जिला गोरखपुर तक गंदे और जहरीले पानी की समस्या से अछूता नहीं है। ऐसे में दूसरे शहरों की हालत का अंदाजा सहज ही लग जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छह जिलों के एक सौ चौवन गांवों का पानी जांच में इतना जहरीला निकला कि राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) को इन सभी गांवों में हैंडपंप सील करने का आदेश देना पड़ा। ऐसे में इन गांवों के बांशिदों के सामने यही रास्ता है कि जहरीला पानी पीने को मजबूर हों या फिर गांव छोड़ दें।
जहरीले पानी की वजह से लोगों की जिंदगी खतरे में है। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन के तहत देश भर में हर महीने गांवों में पानी के नमूनों की जांच की जाती है। इसके लिए मंत्रालय सभी राज्यों को पानी की जांच के लिए किट जारी करता है। लेकिन पानी की जांच के मामले में भी उत्तर प्रदेश की स्थिति अच्छी नहीं पाई गई और सरकार ने इस काम में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली। राज्य में जहरीले पानी की समस्या इसलिए भी गंभीर रूप धारण कर रही है कि नदियों में अपशिष्ट और कारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायनों को प्रवाहित करने पर रोक लगा पाने में सरकारी तंत्र नाकाम रहा है। भारत जल गुणवत्ता के मामले में दुनिया के एक सौ बाईस देशों में से एक सौ बीसवें स्थान पर आता है। पीने का साफ पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। सरकारें स्वच्छ जल मुहैया कराने के नाम पर अरबों रुपए फूंकती भी हैं। लेकिन सरकार इसमें नाकाम इसलिए रहती है कि यह काम उसकी प्राथमिकता में नजर नहीं आता।