दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए माना जाता है कि यहां हर व्यवस्था दूसरे शहरों के लिए आदर्श होगी, पर वास्तविकता इसके उलट है। दिल्ली की सड़कों का हाल यह है कि यहां पैदल या साइकिल से चलने वालों के लिए हर समय जान का खतरा बना रहता है। बहुत सारी जगहों पर पैदल चलने वालों के लिए अलग से जगह छोड़ी ही नहीं गई है। इसका नतीजा यह होता है कि अक्सर पैदल या साइकिल से चलने वाले किसी वाहन की चपेट में आकर गंभीर रूप से घायल हो जाते या फिर जान गंवा बैठते हैं। कुछ साल पहले यहां की सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादाद के मद्देनजर अपील की गई थी कि लोग साइकिल का उपयोग करें। इसी को ध्यान में रख कर तय किया गया था कि सड़कों के दोनों तरफ पैदल और साइकिल से चलने वालों के लिए अलग से जगह छोड़ी जाए। इन रास्तों पर अगर कोई दूसरा वाहन चलाता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाए। पर उस योजना पर ठीक से अमल नहीं हो पाया। अब दिल्ली सरकार ने दिल्ली की पांच सड़कों को मॉडल सड़कों के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव तैयार किया है।
हालांकि दिल्ली सरकार ने जिन सड़कों के सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव तैयार किया है उनकी कुल लंबाई करीब तीस किलोमीटर है। प्रस्ताव के मुताबिक इन सड़कों के किनारे पैदल चलने वालों के लिए पर्याप्त जगह होगी। अगर कोई वहां बैठ कर सुस्ताना चाहे, तो फर्नीचर लगेंगे। उनके किनारे के पेड़-पौधों की देखभाल का समुचित प्रबंध होगा। यह अच्छी बात है कि सड़कों के किनारे ऐसी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा है। मगर केवल कुछ जगहों पर ऐसा होने से दिल्ली जैसे बड़े शहर में समस्याएं खत्म नहीं हो पाएंगी। हालत यह है कि यहां की बहुत सारी सड़कों के किनारे पैदल चलने वालों के विश्राम का इंतजाम तो दूर, चलने के लिए जगह तक नहीं छोड़ी गई है। जहां फुटपाथ छोड़े भी गए हैं, वहां उनकी समुचित देखभाल न होने की वजह से या तो वे कचरे से पटे पड़े रहते हैं या रोशनी वगैरह की समुचित व्यवस्था न होने के कारण लोग उन पर चलने से बचते हैं। जहां फुटपाथ ठीकठाक हालत में हैं, उन पर भीड़भाड़ से बचने के लिए मोटरसाइकिलें और कारें घुस आती हैं। इस वजह से भी कई गंभीर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। कायदे से फुटपाथ या साइकिल चालकों के लिए बने रास्तों पर दूसरे वाहन चलाने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए, पर यातायात पुलिस इस तरफ से प्राय: आंखें मूंदे ही नजर आती है।
दिल्ली में सड़कों पर सुचारु और सुरक्षित यातायात बनाने के अलावा सबसे बड़ी जरूरत लोगों में यातायात-संस्कृति का विकास करने की है। जब तक लोग यातायात नियमों का पालन करना और गाड़ी चलाने का सलीका नहीं सीखेंगे, तब तक मुश्किलें बनी रहेंगी। जहां सुरक्षा के मद्देनजर सड़कों पर लोहे की छड़ों से बाड़ लगाई गई है, वहां लोग सड़कें पार करने के लिए बने उपरिगामी पुलों से जाने के बजाय अपनी आसानी के लिए छड़ें तोड़ कर रास्ता बना लेते हैं। इसी तरह फुटपाथों और साइकिल पथों के अवरोधों को तोड़ कर उन पर वाहन चलाने लगते हैं। इसलिए लोगों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए कड़े दंडात्मक प्रावधान के अलावा उनमें यातायात-संस्कृति विकसित करने के लिए अभियान भी चलाए जाने चाहिए। सड़कों को मॉडल के तौर पर विकसित करने का प्रयास तभी कारगर साबित होगा।